भारत में निर्मित ट्रेन टक्कर सुरक्षा प्रणाली का हुआ सफल परिक्षण, रेल मंत्री Ashwini Vaishnaw रहे मौजूद

भारत में निर्मित ट्रेन टक्कर सुरक्षा प्रणाली का हुआ सफल परिक्षण, रेल मंत्री Ashwini Vaishnaw रहे मौजूद
भारत में निर्मित ट्रेन टक्कर सुरक्षा प्रणाली का हुआ सफल परिक्षण, रेल मंत्री Ashwini Vaishnaw रहे मौजूद

भारतीय रेल(Indian Railways) के सुरक्षा इतिहास में आज का दिन एक नया लेखन दिवस साबित हुआ। शुक्रवार को दो ट्रेनों को चंद मीटर की दूरी से आपस में टकराने से रोक दिया गया। दरअसल ऐसा रेलवे की नई स्वदेशी सुरक्षा तकनीक 'कवच'(Kavach) के दम पर हुआ।

इस इतिहास के साक्षी स्वयं रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव(Ashwini Vaishnaw) बने। कवच ने रेल मंत्री की ट्रेन को आगे से आ रही ट्रेन से टकराने से 380 मीटर पहले ही रोक दिया. तेलंगाना के सिकंदराबाद में ट्रेनों के बीच कवच का परीक्षण किया गया। एक ट्रेन के इंजन पर रेल मंत्री वैष्णव सवार थे, जबकि सामने से आ रही दूसरी ट्रेन में रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष व अन्य वरिष्ठ अधिकारी सवार थे. परीक्षण सनतनगर-शंकरपल्ली खंड पर आयोजित किया गया था।

रेल मंत्री ने इस टेस्ट का एक मिनट का वीडियो शेयर किया है। इसमें रेल मंत्री वैष्णव और अन्य अधिकारी इंजन के केबिन में नजर आ रहे हैं। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ट्वीट किया, "रियर-एंड टक्कर परीक्षण सफल। कवच ने अन्य इंजनों से 380 मीटर पहले स्वचालित रूप से लोको को रोक दिया'। कवच एक ऐसी स्वदेशी तकनीक है, जिसके इस्तेमाल से दो ट्रेनों की टक्कर को रोका जा सकता है। यह दुनिया की सबसे सस्ती रेल सुरक्षा तकनीक। इस कवच को 'शून्य ट्रेन दुर्घटना' के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विकसित किया गया है।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ट्वीट किया, "रियर-एंड टक्कर परीक्षण सफल। (Wikimedia Commons)

कवच क्या है, यह कैसे काम करता है?

यह एक स्वदेश में विकसित स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली है। कवच को एक ट्रेन को स्वचालित रूप से रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

जब डिजिटल सिस्टम किसी भी मैनुअल त्रुटि जैसे रेड सिग्नल या किसी अन्य गलती का पता लगाता है, तो इस तकनीक के माध्यम से संबंधित मार्ग से गुजरने वाली ट्रेन अपने आप रुक जाती है।

इस तकनीक को लागू करने के बाद इसके संचालन पर 50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च आएगा।


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यह अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। दुनिया भर में इस तरह की तकनीक पर करीब दो करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं।

इस तकनीक में जब ट्रेन ऐसे सिग्नल से गुजरती है, जहां उसे पास नहीं होने दिया जाता है, तो इसके जरिए एक खतरे का सिग्नल भेजा जाता है।

यदि लोको पायलट ट्रेन को रोकने में असफल साबित होता है, तो 'कवच' तकनीक के माध्यम से ट्रेन के ब्रेक अपने आप लग जाते हैं और ट्रेन दुर्घटना से बच जाती है।

कवच टेक्नोलॉजी हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो कम्युनिकेशन पर काम करती है। यह SIL-4 (सिस्टम इंटीग्रिटी लेवल -4) को भी सत्यापित करता है। यह रेलवे सुरक्षा प्रमाणन का उच्चतम स्तर है।

बजट में किया गया था ऐलान

इस तकनीक के कार्यान्वयन की घोषणा बजट में की गई थी। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत दो हजार किलोमीटर के रेलवे नेटवर्क को कवच तकनीक के दायरे में लाया जाएगा। दक्षिण मध्य रेलवे की चल रही परियोजनाओं में अब तक 1098 किलोमीटर से अधिक मार्ग और 65 इंजनों पर कवच स्थापित किया जा चुका है। इस तकनीक को दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा कॉरिडोर पर लागू करने की योजना है। इस मार्ग की लंबाई करीब 3000 किमी है।

Input-Various Source ; Edited By-Saksham Nagar

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