भारत की आजादी के लिए लड़ी गई लंबी लड़ाई का जिक्र हो और शहीद-ए-आजम भगत सिंह(Bhagat Singh)और उनके साथियों के जिक्र न हो तो यह बात अधूरी होगी। भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को लायलपुर जिला के गांव बंगा (मौजूदा पाकिस्तान),Present Pakistan में हुआ था। उनका पैतृक घर आज भी सही अवस्था में भारतीय पंजाब(Punjab) के नवांशहर जिला के खटकड़ कलां में मौजूद है।
वह पढ़ने का बहुत शौक रखते थे। वे उर्दू के विद्वान थे,साथ ही उन्हें हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी और संस्कृत भी अच्छी तरह से आतीं थी। वे अपने पिताजी को उर्दू में ही पत्र लिखते थे। 1923 में उन्होंने लाहौर(Lahore) के नेशनल कॉलेज(National college) में दाखिला ले लिया और कॉलेज की नाटक मंडली के सक्रिय सदस्य बनें।कुछ समय पश्चात कॉलेज छोड़ कर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’(Hindustan Socialist Republican Association) का हिस्सा बने और क्रांतिकारी संगठन के साथ जुड़ गए।
आज उनकी जयंती पर उनके कुछ क्रांतिकारी विचार पढ़िए जिन्हें सुनकर सबकी रूह कांप गई थी।
*राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है. मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में आजाद है।
*जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।
• व्यक्तियों को कुचलकर भी आप उनके विचार नहीं मार सकते हैं।
• अगर बहरों को अपनी बात सुनानी है तो आवाज़ को जोरदार होना होगा। जब हमने बम फेंका तो हमारा उद्देश्य किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था। अंग्रेजों को भारत छोड़ना और उसे आजाद करना चाहिए।'
• दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उलफत,मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आएगी।