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बुंदेलखंड में दफन होते जल स्रोत

NewsGram Desk

By: संदीप पौराणिक

देश में कभी बुंदेलखंड जल संरचनाओं के कारण पहचाना जाता था, मगर अब यही इलाका सूखा और जल अभाव क्षेत्र के तौर पर पहचाना जाने लगा है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां के जल स्रोत धीरे-धीरे सिकुड़ते गए, दफन होते गए और बसावट का रूप ले लिया।

बुंदेलखंड वह इलाका है जहां बुंदेला और चंदेल राजाओं के काल में हजारों जल संरचनाओं का निर्माण किया गया था। यही कारण रहा कि इस इलाके को कभी भी पानी के संकट के दौर से नहीं गुजरना पड़ा। मगर वक्त गुजरने के साथ हालात बदले और एक तरफ जहां जल संरचनाएं सिमटती गई, वहीं उन्हें दफन करने का भी दौर चलता रहा। परिणाम स्वरुप यह इलाका सूखा और जल संकट में घिरने लगा।

जल संकट और पानी की समस्या

हाल ही में एक नया उदाहरण सामने आ रहा है और वह है विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल खजुराहो से जुड़ा हुआ, यहां कभी पायल वाटिका में एक छोटी जल संरचना हुआ करती थी। पायल वाटिका वह स्थान है जो इस नगर के बीचो-बीच और आम लोगों की नजरों में रहने वाला है। उसके बावजूद यहां की जल संरचना को बीते सालों में दफन किया जा चुका है। लोगों ने इसे दफन होते देखा मगर किसी ने कुछ नहीं कहा। अब यहां के लोगों का दर्द सामने आने लगा है और वे सवाल उठाने लगे हैं कि आखिर इन जल संरचनाओं को इस तरह से दफन क्यों किया जाता है।

बुंदेलखंड के राजनीतिक विश्लेषक और जानकार रवींद्र व्यास का कहना है कि बुंदेलखंड में पानी की समस्या होगी, यह बुजुर्गों ने कभी नहीं सोचा होगा। मगर वर्तमान हालात यहां के एकदम उलट हैं। इस इलाके में जल संकट को निपटाने के लिए सरकारों ने और सामाजिक संगठनों ने करोड़ों रुपए खर्च कर दिए, मगर स्थितियां नहीं बदली। जल संरचनाएं सुधारने से लेकर नई जल रचनाएं बनाने का दौर चला, मगर उसका लाभ आमजन को नहीं हुआ। उसका लाभ हुआ तो उन ठेकेदारों को जो इन जल संरचनाओं को सुधारने और बनाने का काम अपने हाथ में लेते हैं।

अभियान में आमजन की हिस्सेदारी

इस क्षेत्र के लोगों का मानना है कि जिस अभियान में आमजन की हिस्सेदारी रही वह तो मूर्तरुप ले गई, मगर जिसमें धनराषि सरकार या अन्य माध्यम से आवंटित की गई और काम किसी खास वर्ग के हाथ में सौंपा गया तो उसका हाल आम निर्माण कार्यों जैसा हो गया। पन्ना उदाहरण है जहां धर्म सागर तालाब के लिए स्थानीय लोगों ने अभियान चलाया, करोड़ो रुपये इकटठा कर तालाब की सूरत ही बदल दी।

बुंदेलखंड के जल विशेषज्ञ के.एस. तिवारी का कहना है कि बुंदेलखंड का दुर्भाग्य है कि लोगों ने इस क्षेत्र को सिर्फ लूट का साधन बनाया। जमीनखोरों ने इस इलाके की संपन्नता के प्रतीक जलसंरचनाओं केा निशाना बनाया। यही कारण रहा कि धीरे-धीरे जल संरचनाएं सिकुड़ती गई, उन पर लोगों ने कब्जा कर इमारतें बना डाली। जल संरचनाओं की मरम्मत से लेकर उन्हें बनाने के लिए आई रकम की बंदरबांट हो गई। जरुरत इस बात की है कि जल संरचनाओं का सीमांकन किया जाए और अवैध कब्जों के खिलाफ मुहिम चले। यह तभी संभव है जब प्रशासनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति हो।

बुंदेलखंड वह इलाका है जिसमें उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के सात जिले आते हैं। कुल मिलाकर 14 जिलों में फैला है बुंदेलखंड। इस क्षेत्र से रोजगार की तलाश में हर साल लाखों परिवार पलायन करते हैं। खेती के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिलता, परिणामस्वरुप सूखा यहां की नीयति बन गया है। (आईएएनएस)

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