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“हिंदको” : हिंद से निकली हुई भाषा एक महत्वपूर्ण पाकिस्तानी भाषा है।

Swati Mishra

हिंदको (Hindko), जिसे हिंदकु या हिंको भी कहा जाता है। यह पाकिस्तान (Pakistan) और उत्तरी भारत में हिंदकोवन्स द्वारा बोली जाने वाली इंडो-आर्यन भाषाओं के लहंडा उपसमूह का हिस्सा मानी जाती है। हिंदको एक पूर्वी ईरानी भाषा का शब्द भी माना जाता है, जिसका मूल रूप से हिंदी की भाषा के रूप में अनुवाद किया गया था। यह भाषा हजारा, पंजाब (अटक) और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर सहित उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के क्षेत्रों में बोली जाती है। 

भारतीय भाषाई सर्वेक्षण के मार्गदर्शक जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (George Abraham Grierson) ने कहा था कि, हिंदको हजारा डिवीजन की मुख्य भाषा थी और पेशावर में भी बोली जाती थी। आज पेशावर पाकिस्तान प्रांत खैबर पख्तूनख्वा (Khyber Pakhtunkhwa) की राजधानी है और यहां पश्तो बोलने वालों का बोलबाला अधिक है। हालांकि विभाजन से पहले पेशावर शहर में हिंदको बोलने वालों का बोलबाला अधिक था। पेशावर शहर में हिंदको भाषा बोलने वालों को पेशावरी या खरय कहा जाता था। जिसका अर्थ होता है, "शहर के निवासी।" ऐसा भी माना जाता है कि, हिंदको का प्राकृत भाषा से भी संबंध था। जब जनता की स्थानीय भाषा 'प्राकृत' कई भाषाओं और बोलियों में विकसित हुई (जो ज्यादातर दक्षिण एशिया के उत्तरी भाग में फैली हुई थी) उस दौरान हिंदको का प्राकृत से गहरा संबंध माना जाता है। 

यह याद रखना जरूरी है कि, हिंदको लाखों लोगों की भाषा है, जो पैतृक क्षेत्रों में या दुनिया भर में जीवन यापन करने के लिए बसे हुए हैं। लेकिन फिर भी इस भाषा को लेकर लोगों में अलग – अलग राय देखने को मिलती है। कुछ लोग कहते हैं कि, यह पंजाबी भाषा (Punjabi Language) की बोली है। कुछ लोगों का दावा है कि, यह एक अलग पुरानी भाषा है और कुछ लोग इसे उर्दू का भी स्त्रोत मानते हैं। लेकिन भाषाविद और लेखक तारिक रहमान कहते हैं कि, हिन्द का अर्थ होता है "सिंध" और "को" का अर्थ होता है भाषा। हिंदको यानी हिंद से निकली हुई भाषा। 

आज पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी हिंदको को अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। (सांकेतिक चित्र, Wikimedia Commons)

जब अफगानिस्तान (Afghanistan) से आक्रमणकारी इस क्षेत्र में आए तो उन्होंने पाया कि, पेशावर से लेकर यूपी तक इसी तरह की भाषा बोली जाती है। इसके अतिरिक्त शोधकर्ता, लेखक और कवि खवीर गजनवी, उन्होंने तर्क दिया कि, जहीरुद्दीन बाबर के आगमन के बाद पेशावर घाटी में उर्दू ने जड़े जमा ली थी और हिंदको भाषा उस समय वहां के स्थानीय लोगों द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं से निकली थी। हालांकि डॉ राउफ पारेख, गजनवी के इस दावे को खारिज करते हैं और कहते हैं कि, हिंदको उर्दू (Urdu) की उत्पत्ति है और यह उर्दू की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांतों में से एक है। उन्होंने यह भी कहा है कि, हिंदको एक महत्वपूर्ण पाकिस्तानी भाषा है लेकिन भाषा विशेषज्ञ और इतिहासकार क्रिस्टोफर का मानना है कि, हिंदको एक सामान्य शब्द था।

आज पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी हिंदको को अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। पाकिस्तान के साथ – साथ यह भाषा अफगानिस्तान में भी बोली जाती है। वहां इसे "हिंदकी" के नाम से जाना जाता है और इसे व्यापक रूप से देश के गैर मुस्लिम समुदाय (सिख और हिन्दू) की भाषा माना जाता है। लेकिन यह कहना बिल्कुल स्पष्ट नहीं है, क्योंकि हिंदको बोलने वाले मुसलमान भी अधिक हैं। 

कोई भी भाषा तभी तक जीवित रहती है, जब उसे लिपिबद्ध किया जाता है। हिंदको भाषा में भी धर्म, राजनीति, इतिहास, आत्मकथाओं जैसे अन्य विषयों पर किताब देखने को मिलती है। ऐसा माना जाता है कि, हिंदको भाषा में पवित्र कुरान का अनुवाद भी किया गया है। कुछ टीवी और रेडियो चैनल हिंदको में भी प्रसारित किए जाते हैं और कुछ साहित्यिक पत्रिकाएँ भी इसमें नियमित रूप से प्रकाशित होती हैं। सुल्तान सुकून, रज़ा हमदानी और रियाज़ हुसैन सगीर भी अपनी हिंदको कविता के लिए लोकप्रिय हैं। क़तील शिफ़ाई, फरिग बुखारी और खतीर गजनवी जैसे बड़े नाम उर्दू कवि होने के साथ – साथ हिंदको कवि भी थे। 

एक कराची विश्वविद्यालय (University of Karachi) में उर्दू के प्रोफेसर कहते हैं कि, वास्तव में हर भाषा महत्वपूर्ण होती है। मुहावरों, लोक कथाओं, गीतों, कहावतों और परंपराओं में एक भाषा की अपनी सुंदरता होती है। एक भाषा मर जाती है तो पूरी संस्कृति मर जाती है। इसके अलावा, लोगों को अपनी मातृभाषा से भावनात्मक लगाव होता है| इसलिए हिंदको भाषा को भी केवल संरक्षित ही नहीं किया जाना चाहिए बल्कि प्रगति और उसे फलने – फूलने में भी मदद करना चाहिए।  

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