हर साल 25 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। 17 दिसंबर, 1999 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव पारित किये जाने के बाद इस दिवस की स्थापना हुई। इसे अंतर्राष्ट्रीय घरेलू हिंसा की समाप्ति दिवस भी कहा जाता है। इस दिन को दुनिया भर में महिलाओं के साथ हो रहे विभिन्न तरह के हिंसा (Domestic Violence) के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।
देखा जाए तो दुनिया भर में हर तीन में से एक महिला ने मनोवैज्ञानिक, यौन और शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा मानवाधिकार का उल्लंघन है और इसके पीछे की वजह महिलाओं के साथ भेदभाव सहित शिक्षा, गरीबी, एचआईवी और शांति जैसे मुद्दों से जुड़ा है।
वहीं, भारतीय मीडिया में अकसर घरेलू हिंसा (Domestic Violence) से जुड़ी खबरें देखने को मिलती हैं। हालांकि, भारत में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को रोकने और खत्म करने के कई कानून हैं, लेकिन अभी भी संबंधित कानूनों और नीतियों के पूर्ण रूप से सक्रिय होकर कार्य करने की जरुरत है।
संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा मानवाधिकार का उल्लंघन है। [Wikimedia Commons]
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: यह एक नागरिक कानून है जो न केवल विवाहित महिलाओं को पुरुषों के खिलाफ, बल्कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं के साथ-साथ माताओं, दादी आदि सहित परिवार के सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इस कानून के दायरे में, महिलाएं घरेलू हिंसा (Domestic Violence), दुर्व्यवहार, बैटरी के खिलाफ सुरक्षा का पीछा कर सकती हैं और आगे वित्तीय मुआवजे और अपने साझा घर में रहने के अधिकार का दावा कर सकती हैं। यदि वे अलग रह रहे हैं तो वह अपने दुर्व्यवहार करने वाले से भरण-पोषण की मांग भी कर सकती है।
दहेज निषेध अधिनियम : दहेज की मांग भारत में कई घरों में घरेलू हिंसा का एक कारण है, यही कारण है कि इस तरह के कानूनों का होना एक आवश्यकता बन जाता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत, यदि कोई दहेज लेता है, देता है या मांगता है, तो उसे 6 महीने की कैद की सजा हो सकती है या अपराधी पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 498A : एक और आपराधिक कानून है जिसे किसी के घर की चार दीवारों के भीतर होने वाली हिंसा (Domestic Violence) पर रोक लगाने के लिए बनाया गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498A में कहा गया है, "जो कोई भी, किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार होने के नाते, ऐसी महिला के साथ क्रूरता करता है, उसे एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा। ।" क्रूरता को एक व्यापक दायरा दिया गया है और यह किसी भी आचरण को संदर्भित कर सकता है जो एक महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करता है या जो उसके जीवन या स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंचाता है, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य का पहलू भी शामिल है। इसमें दहेज के नाम पर उत्पीड़न भी शामिल है।
Input: various sources ; Edited By: Manisha Singh