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लोकतंत्र से जुड़ी राजनीति या फिर धर्म की राजनीति !

Swati Mishra

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। संविधान के अनुसार सभी धर्मों को बराबर स्थान दिया गया है और कई मायनों में ये अपने आप को इस आधार पर सिद्ध भी करता है । 1947 में मिली आज़ादी के बाद भारत ने जिस तरह से कई विविधताओं के बावजूद अपने आप को एक राष्ट्र के रूप में गठित किया था उसका साक्षी हमारा इतिहास , वर्तमान और आने वाला कल भी होगा ।

आज अनेकों धर्मों , संस्कृतियों से सुशोभित भारत ने इतिहास में अपने अस्तित्व की कई लड़ाईयां लड़ी । सालों से हमारे भारत पर कई आक्रमण हुए। मुस्लमान जिन्होंने हमारे भारत पर कई आक्रमण किए, हमारी संस्कृति , सभ्यता को नष्ट करना चाहा । हमारे मंदिर नष्ट किए , जिसका सबसे बड़ा उदाहरण गुजरात का ' सोमनाथ मन्दिर ' जिसे 17 बार "मेहमूद गजनवी" द्वारा नष्ट किया गया था या यूं कहा जाए हमारी आस्था पर धर्म पर 17 बार चोट की गई थी। इसका दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण अयोध्या का राम मंदिर। जिसे तोड़ कर मुसलमानों द्वारा बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था । आज़ादी के बाद बना राष्ट्र केवल हिन्दुओं का नहीं था , मुसलमानों का भी था। अनेकता में एकता को जोड़े भारत ने हर मुद्दे को जन – जन से जोड़ना चाहा , संघर्ष और अधिकार पूर्वक सब हासिल करना चाहा । इतिहास में रहे हमारे राजनीतिज्ञ चाहते तो केवल हिन्दू राष्ट्र का निर्माण भी कर सकते थे । तब ना ही अयोध्या का संघर्ष होता ना राम जन्म भूमि का बटवारा । 500 वर्षों से राम जन्म भूमि को लेकर चली लड़ाई अपने आप में एक बड़ा संघर्ष था ।
कहते भी हैं – जब लड़ाई अपने ही घर में हो तो शिकायत भी किस से करें।

अयोध्या का राम मंदिर केवल मंदिर भर नहीं है ये आने वाले वर्षों में हमारे भारत को , उसकी संस्कृति को गौरवान्वित करेगा । राम मंदिर की नीव रखे जाने के बाद ही सपा सांसद "शफीकुर्रहमान बर्क" ने कहा अयोध्या में बाबरी मस्जिद थी और हमेशा रहेगी । यह इस्लाम का कानून है। (All India Imam association ) का भी भूमि पूजन पर बयान था राम मंदिर गिराकर मस्जिद बनायेंगे । ये तो वही बात हुई कि "जिस थाल में खाया उसी में छेद किया"।

हमारा भारत अनेकता में एकता सिखाता है । (Flicker)

दुनिया के आधे से ज्यादा लोग किसी न किसी धर्म से जुड़े हैं , परंतु हमारा संविधान हमारा कानून हमें धर्मनिरपेक्ष बनाता है । ये इतिहास में रहे हमारे नेताओं की समझदारी ही थी की उन्होंने संविधान को सर्वोपरी रखा । फिर आज क्यों धर्म के नाम पर हमारे नेता चुनावी दाव – पेंच खेल रहे हैं। क्यों लोकतंत्र से जुड़ी राजनीति, धर्म की राजनीति बनती जा रही है। थोड़ा ध्यान दिया जाए तो राजनीतिक दलों का गठन भी धर्म के आधार पर ही है । शिरोमणि अकाली दल , हिन्दू महासभा , शिवसेना , मुस्लिम लीग आदि ।

2019 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले भी चुनावी प्रचार – प्रसार में धर्म की राजनीति हुई । आज बड़े – बड़े नेता धर्म का प्रयोग कर राज्य की सत्ता हासिल करने को तत्पर हैं। जनता से किए जाने वाले वादे , भाषण सब आज धर्म के नाम पर होता है । 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भी हिंदुत्व के नाम पर सियासत छिड़ी थी । राम मंदिर , धर्म , जाति – गोत्र की चुनावी लड़ाई लड़ी गई थी । मतदाताओं को रिझाने के लिए भगवान तक को नहीं छोड़ा जाता । लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था "राम के भक्त हनुमान एक दलित जाति से थे" । विपक्ष पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा था "कांग्रेस का अली में विश्वास तो हमारा बजरंगबली में" । आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी व टीएमसी में भगवान श्रीराम और देवी दुर्गा को लेकर ग़जब सियासत छिड़ी हुई है । हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा "भगवान राम ही राजा थे , दुर्गा पता नहीं कहां से आ गई है" । इसपर टीएमसी की काकोली घोष ने कहा था "धर्म का संरक्षक बीजेपी है" । ये आज किस तरह की राजनीति हो रही है । जनता के मुद्दे से अहम आज नेताओं का किसी भी तरीके से चुनाव जीतना सर्वोपरी होता जा रहा है । राजनीतिक दलों को विकास के नाम पर वोट मांगने चाहिए । किसी धर्म या भगवान के नाम पर नहीं।

हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है। जहां जनता का सबसे ज्यादा महत्व है । जनता अपना प्रतिनिधि इसलिए चुनती है ताकि उससे जुड़े सभी मुद्दों को सरकार सामने लाए और उनकी अभी उचित मांगो को पूरा करे। हमारा भारत अनेकता में एकता सिखाता है । लेकिन आज जिस तरीके के हालत है भगवान के नाम पर जो सियासी घमासान बढ़ते जा रहे हैं इससे देश में केवल विघटन होगा और आने वाले समय में वो हमारी अखंडाता पर सबसे बड़ा चोट होगा।

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