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संकट मोचन हनुमान मंदिर: जहां हनुमान जी ने तुलसीदास जी को अपने दर्शन दिए थे।

Swati Mishra

काशी (Kashi), वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित एक पौराणिक नगरी है। यहां के घाट, मंदिर और गंगा विश्वभर में काशी की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा प्रतीक हैं। आज हम वहीं के एक प्रसिद्ध मंदिर संकट मोचन हनुमान मंदिर के बारे में जानेंगे। यह काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद सबसे अधिक देखा जाने वाला मंदिर है। कहा जाता है कि, इस मंदिर में हनुमान जी के दर्शन से सभी संकट दूर हो जाते हैं। कई समस्याओं का समाधान हो जाता है। इसलिए इस मंदिर को संकट मोचन कहा जाता है। 

काशी, वाराणसी (Varanasi) शहर के गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट पर भगवान हनुमान जी का यह मंदिर आस्था और विश्वास का बहुत बड़ा धार्मिक स्थल माना जाता है। संकट मोचन नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर का इतिहास 400 साल से भी अधिक पुराना है। आपको बता दें कि, यह वही मंदिर है, जहां गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) को भगवान हनुमान जी ने अपने दर्शन दिए थे। जिस स्थान पर हनुमान जी ने अपने दर्शन दिए थे, उसी स्थान पर आज उनकी प्रतिमा भी स्थापित है।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा इस प्रकार है।

इस मंदिर की स्थापना 16 वीं शताब्दी में स्वयं तुलसीदास (Tulsidas) जी द्वारा की गई थी। पौराणिक कथा के अनुसार तुलसीदास, भगवान श्रीराम के अनन्य भक्तों में से एक थे। उनके द्वारा ही विश्वप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की गई थी। जिस दौरान तुलसीदास जी रामचरितमानस की रचना कर रहे थे, वह काशी में थे। प्रतिदिन स्नान – ध्यान के बाद वह नियम पूर्वक पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाया करते थे और आते – जाते श्रद्धालुओं को रामचरितमानस (Ramcharitmanas) का पाठ पढ़कर सुनाया करते थे। इसी क्रम में जब एक बार तुलसीदास जी वृक्ष पर जल चढ़ा रहे थे, तब उसी वृक्ष से एक प्रेत (मान्यता) प्रकट हुआ और उसने तुलसीदास से पूछा "क्या आप भगवान श्रीराम से मिलना चाहते हैं? मैं आपको उनसे मिला सकता हूं। लेकिन उससे पहले आपको हनुमान जी से मिलना होगा। तुलसीदास जी ने पूछा "लेकिन उनसे मिलवाएगा कौन? 

पौराणिक कथा के अनुसार तुलसीदास, भगवान श्रीराम के अनन्य भक्तों में से एक थे। उनके द्वारा ही विश्वप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की गई थी। (Wikimedia Commons)

तब उस प्रेत ने उन्हें बताया कि, उनकी रामकथा सुनने प्रतिदिन एक वृद्ध कुष्ठ रोगी भी आता है। वह और कोई नहीं, स्वयं हनुमान जी हैं। इसके बाद एक दिन जब तुलसीदास जी कथा सुना रहे थे तो, सदैव की भांति वह वृद्ध कुष्ठ रोगी सबसे आखिर में बैठा हुआ था। तुलसीदास जी का भी उन पर ध्यान गया। जब कथा समाप्त हुई तो तुलसीदास जी ने, उस वृद्ध को रोका और उनके पैरों को पकड़कर बोले "मुझे पता है प्रभु आप ही हनुमान हैं। कृपया अपने दर्शन दीजिए।" इसके बाद महावीर बजरंग बली ने तुलसीदास जी को अपने दर्शन दिए। और आज वहीं पर उनका यह संकट मोचन मंदिर स्थापित है। 

इस मंदिर पर जब हुआ था आतंकी हमला..

2006 में वाराणसी शहर में आतंकवादियों द्वारा 3 विस्फोट किए गए थे। यह तीन आतंकी विस्फोट रेलवे कैंट, दशाश्वमेघ घाट और संकट मोचन हनुमान मंदिर के अन्दर भी हुआ था। यह आतंकी हमला इस्लामी आतंकियों द्वारा किया गया था। जिस दौरान यह विस्फोट हुआ, उस समय मंदिर में आरती हो रही थी। भारी मात्रा में श्रद्धालु वहां उपस्थित थे। उस वक्त इस आतंकी हमले में 7 से 10 लोगों की जान चली गई थी और कई लोग घायल भी हुए थे। हालांकि इस घटना के बाद से मंदिर परिसर की सुरक्षा को बढ़ा दिया गया है। यह इस्लामिक (Islamic) कट्टरपंथी कितने भी प्रयास कर ले पर हिन्दुओं की आस्था और उनके आराध्य के दर्शन से उन्हें कभी नहीं रोक पाऐंगे। 

संकट मोचन हनुमान| (Wikimedia Commons)

क्या तुलसीदास जी को भगवान श्रीराम के दर्शन हुए थे? 

हनुमान जी से मिलने के पश्चात तुलसीदास जी ने उनसे भगवान राम के दर्शन कराने का अनुरोध किया था। तब हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा, इसके लिए आपको चित्रकूट चलना पड़ेगा। तुलसीदास जी चित्रकूट आए। वहां एक मंदिर के निकट बैठ गए। हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा ध्यान रखना इस मार्ग से आपको दो बड़े ही सुन्दर राजकुमार घोड़े और धनुष के साथ आते दिखाई देंगे। वहीं श्रीराम और लक्ष्मण हैं।

तुलसीदास जी उस मार्ग पर आंख लगाए बैठ रहे की उन्हें श्रीराम के दर्शन होंगे। जब उस मार्ग से दो सुंदर बालक गुजरे तो तुलसीदास जी उन्हें देख कर आकृषित तो हुए पर उन्हें पहचान नहीं पाए। 

हनुमान जी ने उनसे कहा, चिंता मत करिए प्रातःकाल आपको फिर उनके दर्शन होंगे। इस बार ध्यान रखिएगा। प्रातःकाल तुलसीदास जी रामघाट पर अपना आसन लगाए बैठ गए और भगवान की प्रतीक्षा करने लगे। तभी फिर दो सुंदर बालक तुलसीदास जी के पास आए और उनसे कहा "बाबा क्या आप हमें चंदन का तिलक लगा देंगे।" तुलसीदास जी चंदन घिसने लगे। हनुमान जी ने जब देखा कि, तुलसीदास जी तो अब भी प्रभु को नहीं पहचान पा रहे हैं। तब उन्होंने एक तोते का रूप धारण किया और यह दोहा बोला:

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।

तुलसीदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास जी यह वाणी सुनते ही चौंके और प्रभु श्रीराम को पहचान गए। उनकी छवि को निहारते हुए उन्होंने प्रभु श्रीराम को चंदन का तिलक लगाया। भगवान ने उन्हें दर्शन दिए, तुलसीदास जी को चंदन का तिलक किया और उसके पश्चात अन्तर्ध्यान हो गए। 

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