ब्लॉग

माँ मुंडेश्वरी मंदिर में होते हैं कुछ अनोखे चमत्कार जिसे जानकर आप रह जाएंगे दंग

Shantanoo Mishra

भारत विविधताओं और अचंभित कर देने वाले कथाओं और स्थलों से घिरा हुआ है। यह एक ऐसा देश है जहाँ मंदिरों और मठों में भी हैरत में डालने वाले चमत्कारों को देखा जा सकता है। आँध्रप्रदेश में लेपाक्षी मंदिर में जहाँ माता सीता के पदचिन्ह को आज भी देखा जा सकता है और कर्नाटक देवी हसनंबा मंदिर जहाँ दीपावली त्यौहार पर ही मंदिर के कपाट खोले जाते हैं और अगले साल तक के लिए फिर बंद क्र दिए जाते हैं, किन्तु माता के समक्ष जलाया दीप और चढ़ाए गए फूल ताज़ा ही रहते हैं। ऐसे ही चमत्कारों से भरी है बिहार के कैमूर जिले में स्थित माता मुंडेश्वरी का मंदिर। आइए माता मुंडेश्वरी मंदिर के इतिहास और चमत्कारों पर थोड़ा ध्यान केंद्रित करते हैं।

इतिहास

मुंडेश्वरी मंदिर के शिलालेख के अनुसार यह मंदिर महाराजा उदय सेन के शासन काल में निर्मित हुआ था। जिसका मतलब इस मंदिर की नक़्क़ाशी व मूर्तियाँ उत्तर गुप्तकालीन समय की हैं। ईसाई कैलेंडर के अनुसार इस मंदिर का निर्माण काल 635-636 ई. में माना जाता है। माता मुंडेश्वरी देवी मंदिर मूर्तियों के अलावा यहाँ पर विराजमान है पंचमुखी महादेव(पाँच मुख वाले महादेव) जिनका शिवलिंग भी काफी दुर्लभ है। माता मुंडेश्वरी की प्रतिमा माँ वाराही देवी की प्रतिमा है क्योंकि उनकी सवारी महिष(भैंस) है। इस मंदिर का सम्बन्ध मार्कण्डेय पुराण से जुड़ा है।

इस मंदिर की यह भी मान्यता है कि इसी भूमि पर चंड-मुंड का वध हुआ था। कहते हैं की चंड-मुंड के नाश के लिए देवी का अवतरण हुआ था, चंड के विनाश के उपरांत मुंड इसी पर्वत (जहाँ आज मंदिर है) पर आकर छिप गया था। किन्तु देवी के क्रोध से कौन बच सका है तो उसका भी वध इसी पहाड़ी पर हुआ, जिसके बाद ही माता का मुंडेश्वरी देवी नाम हुआ।

जानकारों और पुरातत्वविदों का मानना है कि यहाँ कभी तेज़ भूकंप का झटका आया होगा जिस वजह से भगवान गणेश एवं शिव की मूर्तियाँ सहित अन्य देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी मलबे में दब गई होंगी। मंदिर के ध्वस्तीकरण का एक और कारण यह भी बताया जाता है कि मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने इस पवित्र स्थान को तुड़वा दिया था। खैर, खुदाई के पश्चात् 97 दुर्लभ मूर्तियों को खोजा गया है जिन्हे 'पटना संग्रहालय' में सुरक्षित रखा गया है।

माता मुंडेश्वरी देवी मंदिर। (Wikimedia Commons)

चमत्कार: 'एक ऐसी बलि जिसमे नहीं जाती जीव की जान'

माता Mundeshwari Temple में एक ऐसा चमत्कार होता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से देखने के लिए यहाँ पर आते हैं। यहाँ बकरे की बलि तो चढ़ाई जाती है किन्तु प्राण लिए बगैर। जी हाँ! यहाँ भक्तों की कामनाओं के पूरा होने के बाद बकरे की सात्विक बलि चढ़ाई जाती है, लेकिन माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था उत्पन्न होती है। जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तो पुजारी 'अक्षत' (चावल के दाने) को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं। बकरा उसी क्षण अचेत, मृतप्राय सा हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तो बकरा उठ खड़ा होता है और इसके बाद ही उसे बंधन-मुक्त कर दिया जाता है।

अंग्रेजी में पढ़ें: The Oldest Functional Temple Of The World- Mundeshwari Temple

कुछ और रौचक तथ्य:

  1. यहाँ भगवान शिव का एक पंचमुखी शिवलिंग है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है।
  2. वर्षों बाद Mundeshwari Temple में 'तांडुलम भोग' अर्थात 'चावल का भोग' और वितरण की परंपरा पुन: की गई है। ऐसा माना जाता है कि 108 ईस्वी में यहाँ यह परंपरा जारी थी।
  3. मंदिर का अष्टाकार गर्भगृह इसके निर्माण से अब तक कायम है।
  4. 'माता वैष्णो देवी' की तर्ज पर इस मंदिर का विकास किये जाने की योजनाएं बिहार राज्य सरकार ने बनाई हैं।
  5. मुंडेश्वरी मंदिर का संरक्षक एक मुस्लिम परिवार है।

Bihar Assembly Election 2025 LIVE: पहले चरण की वोटिंग खत्म; शाम 5 बजे तक 60.13% मतदान दर्ज किया गया।

दिल और हड्डियों के लिए फायदेमंद लोबिया, कब्ज-अपच जैसी समस्याओं से भी दिलाए राहत

बिहार के भविष्य और लोकतंत्र की मजबूती के लिए हर वोट की अहम भूमिका: नित्यानंद राय

मशहूर इन्फ्लुएंसर और फोटोग्राफर अनुनय सूद का निधन, फोर्ब्स इंडिया की लिस्ट में भी आ चुका है नाम

बिहार चुनाव: निर्वाचन आयोग ने राजद के मतदान बूथों पर बिजली काटने के आरोपों को खारिज किया