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महात्मा गांधी की वह पांच केरल यात्राएं

NewsGram Desk

पहली यात्रा 

अपनी पहली केरल यात्रा में, गांधी (Mahatma gandhi) ट्रेन से त्रिची से कोझिकोड पहुंचे थे और फिर 18 अगस्त, 1920 को तटीय शहर मालाबार गए। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम नेताओं के साथ कई बैठकें की थीं और अंग्रेजों से लड़ने के लिए खिलाफत आंदोलन के महत्व पर चर्चा की थी। गांधी ने उसी दिन शाम कोझिकोड के वेल्लयिल समुद्र तट पर 20,000 लोगों की एक बड़ी रैली को संबोधित किया था। के. माधवन नायर जो बाद में केपीसीसी के पहले अध्यक्ष बने, उन्होंने महात्मा के भाषण का अनुवाद किया था।

गांधी जी ने पहली यात्रा के दौरान हिंदू और मुस्लिम नेताओं के साथ कई बैठकें की थीं। (Wikimedia Commons)

दूसरी यात्रा 

सन् 1925 में गांधीजी (Mahatma gandhi) की दूसरी केरल यात्रा 8 मार्च को थी, और वह 19 मार्च तक राज्य में रहे। उन्होंने यात्रा के दौरान कई प्रमुख हस्तियों से मुलाकात की। उनकी यात्रा का मुख्य फोकस वैकोम सत्याग्रह था जो कि वैक्कॉम के महादेव मंदिर में निचली जातियों के प्रवेश के लिए था। महात्मा शिवगिरि गए और आध्यात्मिक नेता श्री नारायण गुरु से मिले और वर्कला में भी रहे।

अपनी तीसरी यात्रा के दौरान गाँधी जी ने त्रिशूर के छात्रों को खादी पहनने के लिए प्रेरित किया था। (Wikimedia Commons)

तीसरी यात्रा 

राज्य की अपनी तीसरी यात्रा के दौरान, वह 14 अक्टूबर, 1927 को त्रिशूर पहुंचे और सर्वोदय स्कूल, त्रिशूर के छात्रों से मिले और उन्हें राष्ट्रवादी आंदोलन के हिस्से के रूप में खादी पहनने के लिए प्रेरित किया। इस यात्रा के दौरान एक लड़की, कौमुदी मंच पर साहसपूर्वक चली गई, जहां से महात्मा छात्रों को संबोधित कर रहे थे और अपने सारे सोने के गहने निकालकर उन्हें दान कर दिए। उसने सोना नहीं पहनने का भी वादा किया। गांधीजी ने बाद में 'कौमुदी का त्याग' शीर्षक से हरिजन में एक लेख लिखा था।

महात्मा गांधी ने चौथी यात्रा में दलितों के लिए कायाधाम अयप्पा मंदिर खोला। (Wikimedia Commons)

चौथी और पांचवी यात्रा 

केरल की अपनी चौथी यात्रा पर महात्मा (Mahatma gandhi) 10 जनवरी, 1934 को अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ शोरनूर, पलक्कड़ पहुंचे। उन्होंने दलितों के लिए कायाधाम अयप्पा मंदिर खोला। भारत में दलित समुदाय के लिए खोला गया यह पहला मंदिर था। महात्मा गांधी पांचवीं बार 12 जनवरी को केरल पहुंचे थे। इस दौरे में वह 21 जनवरी तक रहे। उनकी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य त्रावणकोर महाराजा चिथिरा तिरुनल बलरामवर्मा द्वारा 12 नवंबर, 1936 को घोषित मंदिर प्रवेश घोषणा में भाग लेना था।
(आईएएनएस)

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