शिरडी के साईबाबा मंदिर संस्थान ने श्रदालुओं से यह आग्रह किया कि वह सभ्य तरीके से कपड़े पहनकर आएं। उसके लिए बाकायदा बोर्ड भी लगाया गया है। मगर ध्यान दें, कि संस्थान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कान्हुराज बागते ने यह बयान भी जारी किया कि संस्थान किसी के भी पोशाक पर आपत्ति नहीं जता रहा है और न ही कोई नियम थोपा जा रहा है। यह अपील अन्य श्रद्धालुओं द्वारा शिकायत पर की गई थी जिसमे कहा गया कि कुछ लोग आपत्तिजनक कपड़े पहनकर मंदिर में आते हैं।
हालांकि कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को यह अपील 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' को ठेस पहुँचाने जैसा लगा और इसी कड़ी में चर्चित सामाजिक कार्यकर्त्ता तृप्ति देसाई ने विवादासपद बयान दे दिया। देसाई ने एक वीडियो संदेश जारी कर यह कहा कि "मंदिर के पुजारी अर्धनग्न होते हैं, लेकिन किसी श्रद्धालु ने इस पर आपत्ति नहीं की। बोर्ड को तत्काल हटाया जाना चाहिए वरना हम आकर हटा देंगे।" आप को बता दें कि यह वही तृप्ति देसाई हैं जिन्होंने सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के लिए आंदोलन किया था।
देश के कई अन्य मंदिर और धर्मस्थल हैं जिन्होंने पहनावे को लेकर दिशानिर्देश जारी किए हुए हैं। सबसे बड़ा उदहारण है भारत का सुप्रसिद्ध 'स्वर्ण मंदिर', जहाँ पहनावे को लेकर कोई नियम नहीं हैं मगर सर पर दुपट्टा या रुमाल और स्लीवलेस कपड़े पहनने से बचने और घुटनों के ऊपर शॉर्ट्स या ड्रेस पहनने से बचने जैसे दिशा-निर्देश हैं। यह सभी दिशा निर्देश स्वर्णमंदिर के वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं। और लोग अपनी इच्छा से इन दिशानिर्देशों का पालन करते हैं।
हाल ही में, मिस्र में एक मॉडल और उसके फोटोग्राफर को गिरफ्तार किया गया, वह इसलिए क्योंकि सलमा अल-शिमी(मॉडल) ने मिस्र के प्राचीन पिरामिड 'पिरामिड ऑफ़ जोसेर' के सामने फोटोशूट कराया था। गिरफ़्तारी कारण था उनके द्वारा पहना गया प्राचीन पोशाक। मगर भारत में नेटफ्लिक्स पर मंदिर में फिल्माए आपत्तिजनक दृश्य पर किसी ने विरोध नहीं किया। और तो और सोशल मीडिया कुछ ऐसी तस्वीरें भी उपलब्ध हैं जिसमे मॉडलों ने अर्धनग्न अवस्था में मंदिर के सामने फोटो खिचवाया है। मगर उन पर कोई गंभीर करवाई नहीं हुई, क्या यही है अभिवयक्ति की स्वतंत्रता?
समाज में हो रहीं कुरीतियों पर आवाज उठाना एक अच्छी पहल है किन्तु आज़ादी कह कर नई कुरीतियों को जन्म देना, यह नहीं। मंदिर द्वारा की गई अपील शिकायतों का नतीजा है न कि थोपी जाने वाली नियम या एक विचार को बढ़ावा देने वाला प्रोपेगेंडा।