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आम आदमी पार्टी, दलितों से इतना नफरत क्यूँ करती है? इन 5 सवालों का जवाब दें संजय सिंह!

NewsGram Desk

कुछ दिनों पहले अयोध्या में हुए भूमि पूजन के बाद से ही लगातार आम आदमी पार्टी के नेता और राज्य सभा सांसद संजय सिंह, इस मुद्दे पर जातीय राजनीति खेलने की कोशिश कर रहे हैं। संजय सिंह का कहना है कि भाजपा ने राष्ट्रपति, राम नाथ कोविन्द व प्रदेश के उपमुख्यमंत्री, केशव प्रसाद मौर्य को भूमि पूजन में ना बुला कर दलितों का अपमान किया है अर्थात भाजपा दलितों से नफरत करती है। आपको बता दें की संजय सिंह के दावे के विपरीत केशव प्रसाद मौर्य आमंत्रित भी किए गए थे व पंडाल में मौजूद भी थे। 

संजय सिंह के इस खोखले दावे की किसी ने जब पोल खोल दी तो वह कहने लग गए, "बुलाने से क्या होता है? प्रधानमंत्री ने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को पूजा के दौरान साथ मे क्यूँ नहीं बैठाया।" ये बड़ा ही अनंत विषय है, जिसे जितना खींचना चाहो उतना खींच सकते हो। कैसे?  मैं आपको बताता हूँ-

  • पहले कहा गया कि, केशव प्रसाद मौर्य को बुलाया क्यूँ नहीं?
  • पता चला कि बुलाया गया था तो कहने लगे साथ में क्यूँ नहीं बैठाया?
  • साथ में बैठाया होता तो कहते, विधि विधान उनसे ही क्यूँ नहीं करवाया? 
  • विधि विधान करवाया होता तो कहते, प्रधानमंत्री कि जगह केशव प्रसाद मौर्य को ही पूजा पर क्यूँ नहीं बैठाया? 
  • केशव प्रसाद पूजा पर बैठाया होता तो कहते, जब केशव प्रसाद हैं तो मोदी साथ में क्यूँ बैठा है?

खैर, इस फालतू के विवाद का कोई अंत नहीं है।

संजय सिंह फिलहाल आम आदमी पार्टी के उत्तर प्रदेश प्रभारी हैं। सूत्रों के मुताबिक, जातीय सदभावना बिगाड़ने का काम संजय सिंह, अरविंद केजरीवाल के इशारे पर कर रहे हैं, ताकि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ एक दलित विरोधी माहौल तैयार किया जा सके। इससे पहले भी दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों को भड़काने में संजय सिंह ने अहम किरदार निभाया था। दिल्ली दंगों का मुख्य आरोपी, ताहिर हुसैन भी संजय सिंह का करीबी माना जाता है। अगर आप आम आदमी पार्टी का ट्वीटर हैंडल खोल कर देखेंगे तो आपको समझ आ जाएगा की किस तरह संजय सिंह, सोशल मीडिया के जरिये लगातार दलित विरोधी माहौल बना कर दंगे भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। 

आपको बता दें की राम मंदिर का मुद्दा एक आम मुद्दा नहीं बल्कि आरएसएस व भाजपा का दशकों से चला आ रहा सबसे अहम संकल्प रहा है। 2014 के चुनाव से पहले भी नरेंद्र मोदी ने इस बात को दोहराया था कि अगर जनता उन्हे प्रधानमंत्री बनाएगी तो वह अयोध्या जन्मभूमि पर एक भव्य राम मंदिर का निर्माण कराएँगे। देश के लोगों ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना और उनके ही कार्यकाल में अब उस राम मंदिर का निर्माण होने जा रहा है। इसी वजह से भूमि पूजन के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर नरेंद्र मोदी का मौजूद होना स्वाभाविक था।

बात रही राष्ट्रपति को ना बुलाए जाने की तो उसके पीछे दो कारण हैं-

  1. राम मंदिर निर्माण का मुद्दा, भाजपा का चुनावी वादा था और नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए इस वादे को पूरा किए जाने की स्थिति में प्रधानमंत्री का स्वयं वहाँ मौजूद होना भी स्वाभिक था, लेकिन एक राजनीतिक पार्टी द्वारा किए गए विवादित चुनावी वादे से इत्तेफ़ाक रखना व राष्ट्रपति के रूप मे रामनाथ कोविन्द का वहाँ मौजूद होना उचित नहीं होता। 
  2. आपको बता दें की राष्ट्रपति का पद, देश में सर्वोच्च माना जाता है। राम मंदिर भूमि पूजन में नरेंद्र मोदी को नेतृत्व कर्ता होने के नाते मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद होना आवश्यक था। लेकिन उसी कार्यक्रम में, जहां प्रधानमंत्री मुख्य अतिथि हों, वहाँ राष्ट्रपति भी शिरकत करें, यह राष्ट्रपति पद की गरिमा का अपमान होता।

और वैसे भी, जब प्रधानमंत्री के जाने से ही पूरा विपक्ष एक सुर में बवाल काट रहा है, तो राष्ट्रपति के जाने से इनकी हालत क्या होती, इसकी आप मात्र कल्पना ही कर सकते हैं। 

बात करें संजय सिंह कि तो उनके मुताबिक देश में मौजूद हर जात के लोगों को भूमि पूजन में बुलाया जाना चाहिए था, और इसके साथ ही प्रधानमंत्री को उन्हें अपने बगल में बैठा कर भूमि पूजन का कार्यक्रम आरंभ करवाना चाहिए था। अगर छोटे-छोटे सभी जातों को मिला दें तो देश भर में यह आंकड़ा हज़ार से भी ज़्यादा है। मतलब ये हैं की, उन हजारों को बुलाइए, उन्हे प्रधानमंत्री के बगल में बैठाइए, और उनमें से कोई एक 'फलाना' जात भी छूट जाए, तो संजय सिंह छाती पीटते हुए, भाजपा को 'फलाना' विरोधी तो बता ही देंगे। और अगर किस्मत से, सभी जात के लोगों को बुला भी लिया जाता तो एक और समस्या पैदा हो जाती- 'प्रधानमंत्री के दाएँ और बाएँ में पहला व्यक्ति कौन बैठेगा?' अब जात हैं हज़ार और मुख्य स्पॉट है 'दो', तो दलित को बैठाते, तो ब्राहमण विरोधी कहलाते, ब्राहमण को बैठाते तो जाट चिल्लाते, जाट को बैठाते, तो राजपूत नाराज़ हो जाते। सीधे शब्दों में अर्थ ये है की इसका कोई समाधान नहीं है। जो संजय सिंह, आज जिस दलित के नाम पे हँगामा मचा रहे हैं, उनके लिए दलित का सम्मान नहीं बल्कि हँगामा करना ही असली मकसद है। दलित नहीं तो कोई और होता, लेकिन हँगामा ज़रूर होता।

अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली (Picture Source: Wikimedia Commons)

बात अगर उठी ही है, तो जिस भाजपा को संजय सिंह दलित विरोधी बता रहे हैं, उसी भाजपा ने महामहिम रामनाथ कोविन्द जी को राष्ट्रपति बनाया है। लेकिन संजय सिंह कहते हैं- "भाजपा ने तो राजनीति करने के लिए रामनाथ कोविन्द को राष्ट्रपति बनाया है।"

अरे साहब, कोई पार्टी अगर एक पिछड़े समुदाय के दलित नेता को देश के सर्वोच्च पद पर बैठा देती है, जो पद, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद से भी ज़्यादा बड़ा हो, उससे बेहतर राजनीति और क्या हो सकती है? उल्टा, संजय सिंह व अरविंद केजरीवाल को इससे सीख लेनी चाहिए और ऐसी राजनीति को अपने पार्टी व सरकार में बढ़ावा भी देना चाहिए। लेकिन इसके विपरीत आम आदमी पार्टी व अरविंद केजरीवाल ने अब तक दलितों के लिए किया ही क्या है? 

अब जब संजय सिंह ने दलित प्रेम का दावा कर ही दिया है तो ज़रा इन सवालों का जवाब भी दे देते तो बेहतर होता- 

  1. दिल्ली का मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जगह कोई दलित क्यूँ नहीं है? 
  2. उपमुख्यमंत्री के पद पर मनीष सीसोदिया की जगह कोई दलित क्यूँ नहीं है?
  3. आम आदमी पार्टी के कुल तीन राज्य सभा सांसद में, एक भी दलित क्यूँ नहीं है? 
  4. अरविंद केजरीवाल के कैबिनेट में कितने दलित मौजूद हैं? 
  5. उत्तर प्रदेश का प्रभारी संजय सिंह की जगह कोई दलित क्यूँ नहीं है? 
  6. आम आदमी पार्टी, दलितों से इतना नफरत क्यूँ करती है? 

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