बिहार सरकार ने अडानी पावर को भागलपुर में 1,020 एकड़ ज़मीन सिर्फ ₹1 प्रति एकड़ प्रति वर्ष पर दी है Wikimedia Commons
अर्थव्यवस्था

बिहार में अडानी पावर को 1,020 एकड़ ज़मीन ₹1/एकड़ पर, मुआवज़े और पर्यावरण पर उठे सवाल

बिहार सरकार ने अडानी पावर को भागलपुर में 1,020 एकड़ ज़मीन सिर्फ ₹1 प्रति एकड़ प्रति वर्ष पर दी है। सरकार कहती है कि यह बिजली परियोजना, रोज़गार और निवेश लाएगी, लेकिन स्थानीय लोग मुआवज़े की गड़बड़ी और पर्यावरण को होने वाले नुकसान से चिंतित हैं।

न्यूज़ग्राम डेस्क

परियोजना और सरकारी पक्ष

बिहार (Bihar) सरकार ने अडानी (Adani) पावर लिमिटेड को भागलपुर ज़िले में 1,020 एकड़ ज़मीन दी है। यह ज़मीन 25 साल के लिए सिर्फ ₹1 प्रति एकड़ प्रति वर्ष पर लीज़ पर दी गई है। इस ज़मीन पर 2,400 मेगावॉट का कोयले से चलने वाला अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल बिजलीघर बनाया जाएगा। सरकार और कंपनी का दावा है कि यह परियोजना लगभग ₹25,000 करोड़ का निवेश लाएगी और हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलेगा। निर्माण के दौरान लगभग 10 से 12 हज़ार नौकरियाँ और संचालन के समय लगभग 3 हज़ार नौकरियाँ मिलने का अनुमान है।

13 सितम्बर 2025 को अडानी और बिहार सरकार के बीच पावर सप्लाई एग्रीमेंट हुआ, जिसके तहत कंपनी उत्तर और दक्षिण बिहार को लगभग 2,274 मेगावॉट बिजली ₹6 प्रति यूनिट के हिसाब से सप्लाई करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 सितम्बर 2025 को इस परियोजना का शिलान्यास भी किया। सरकार का कहना है कि बोली की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रही और अडानी की बोली अन्य कंपनियों जैसे JSW एनर्जी, टोरेंट पावर और लालित पावर से कम थी।

स्थानीय लोगों की आपत्तियाँ और मुआवज़े की दिक्कतें

इस परियोजना को लेकर स्थानीय लोग नाराज़ हैं। उनका कहना है कि उनकी ज़मीन का मुआवज़ा ठीक से नहीं दिया गया। एक ही परिवार की अलग-अलग ज़मीन को अलग-अलग दरों पर आँका गया। कहीं ज़मीन की कीमत ₹60 लाख प्रति एकड़ लगाई गई तो कहीं ₹1.4 करोड़ प्रति एकड़। इससे लोगों को लगता है कि ज़मीन के मूल्यांकन में पारदर्शिता नहीं रही।

इसके अलावा, कई ज़मीनें तो 2014 से अधिग्रहित हैं लेकिन अभी तक लोगों को पूरा मुआवज़ा नहीं मिला। कुछ किसानों का आरोप है कि उनकी उपजाऊ ज़मीन को “बंजर” दिखाकर उसकी कीमत घटाई गई। लोगों को यह भी शिकायत है कि जब उन्होंने आपत्ति दर्ज कराने की कोशिश की तो उन्हें नज़रअंदाज़ किया गया, और प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान विरोध करने वाले कुछ ग्रामीणों को हिरासत में भी लिया गया।

पर्यावरण और खेती पर असर

स्थानीय लोग पर्यावरण (Environment) और अपनी रोज़ी-रोटी को लेकर भी डरे हुए हैं। इस परियोजना के लिए हज़ारों आम और लीची के पेड़ काटने पड़ेंगे। यह इलाका फलों और बाग़वानी के लिए मशहूर है। अगर पेड़ कट गए तो किसानों की कमाई पर सीधा असर पड़ेगा।

इसके अलावा, यह इलाका पहले से ही प्रदूषण (Pollution) और आर्सेनिक की समस्या झेल रहा है। पास में कहलगाँव सुपर थर्मल पावर प्लांट है, जिससे लोगों को सांस की बीमारियाँ और पानी की समस्या हो रही है। ग्रामीणों का डर है कि अगर एक और बड़ा कोयला बिजलीघर बन गया तो हवा, पानी और मिट्टी की हालत और बिगड़ जाएगी। खेती को नुकसान होगा और गाँव के लोग स्वास्थ्य समस्याओं में और फँस जाएँगे।

अडानी पावर (Adani Power) की इस परियोजना को सरकार विकास और रोज़गार का साधन बता रही है

राजनीति और आरोप-प्रत्यारोप

इस ज़मीन को लेकर राजनीति भी तेज़ हो गई है। विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह अडानी को “तोहफ़े” में ज़मीन दे रही है। कांग्रेस और दूसरे नेताओं ने सवाल उठाए कि इतनी कम कीमत पर ज़मीन कैसे दी गई। दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि सब कुछ नियमों के हिसाब से हुआ है और यह परियोजना बिहार के लिए फायदेमंद साबित होगी।

उठते हुए बड़े सवाल

अब इस पूरे मामले में कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या ₹1 प्रति एकड़ प्रति वर्ष पर ज़मीन देना सही है? क्या ज़मीन का मूल्यांकन सही और पारदर्शी तरीके से हुआ? क्या इस परियोजना के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) किया गया है और उसे सार्वजनिक किया गया है? जिन ग्रामीणों को मुआवज़ा नहीं मिला, उनके पास क्या कानूनी रास्ते हैं? और सबसे ज़रूरी, इस इलाके में जो पहले से ही स्वास्थ्य और पर्यावरण की समस्याएँ हैं, उन्हें कैसे रोका जाएगा?

निष्कर्ष

अडानी पावर (Adani Power) की इस परियोजना को सरकार विकास और रोज़गार का साधन बता रही है। लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह चिंता और डर का कारण बन गई है। एक तरफ निवेश और बिजली की ज़रूरत है, वहीं दूसरी तरफ मुआवज़े की गड़बड़ियाँ, खेती का नुकसान और पर्यावरण पर संकट खड़ा हो रहा है। अब देखना यह होगा कि सरकार इन आपत्तियों को कैसे सुलझाती है और क्या यह परियोजना सच में बिहार के लिए फायदेमंद बन पाएगी या फिर ग्रामीणों की मुश्किलें और बढ़ा देगी।

(Rh/BA)

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