जब भारतीय बैंकों के शासन की बात आती है तो चीजे असंतुलित हो जाती हैं। उदाहरण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) निजी बैंकों या विदेशी बैंकों को दिशा-निर्देश जारी कर सकता है, लेकिन पीएसबी को नहीं। क्या वित्त संबंधी स्थायी समिति इस पहेली का उत्तर दे सकती है? इस विसंगति की चर्चा तब हुई जब आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल (Urjit Patel) ने मार्च 2018 में 'बैंकिंग नियामक शक्तियों को स्वामित्व तटस्थ होना चाहिए' शीर्षक से एक भाषण में कहा कि आरबीआई बैंकिंग नियामक है, पीएसबी को विनियमित करने की शक्तियां सरकार के पास।
भारत सरकार बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 के तहत पीएसबी को विनियमित करती है।
पटेल ने कहा था कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम (1949) की धारा 51 स्पष्ट रूप से कहती है कि आरबीआई के पास पीएसबी में शासन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर शक्तियां नहीं हैं।
आरबीआई (PSB) किसी पीएसबी के अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक या निदेशकों को नहीं हटा सकता। पीएसबी के मामले में केंद्रीय बैंक विलय या परिसमापन के लिए बाध्य नहीं कर सकता। पीएसबी को न तो शीर्ष बैंक से लाइसेंस की आवश्यकता होती है और न ही वह उनका लाइसेंस रद्द कर सकता है। इस मामले को संज्ञान में लेते हुए नियमन और शासन के इस पहलू को दुरुस्त करने की कार्रवाई पर विचार किया जा रहा है।
हालांकि, जुलाई 2018 में सरकार ने एक परस्पर विरोधी बयान में संसद को सूचित किया था कि आरबीआई के पास सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को विनियमित करने और पर्यवेक्षण करने के लिए व्यापक शक्तियां हैं।
सरकार के बयान ने आरबीआई की स्थिति का प्रतिकार किया कि केंद्रीय बैंक के पास पीएसयू बैंकों को विनियमित करने के लिए शक्तियों की कमी है, जिसमें बैंकों के बोर्ड और प्रबंधन को खारिज करना शामिल है।
राज्यसभा (Rajya Sabha) में एक प्रश्न के जवाब में केंद्र ने कहा था, आरबीआई की शक्तियां व्यापक हैं और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों सहित सभी बैंकों में उत्पन्न होने वाली विभिन्न स्थितियों से निपटने के लिए व्यापक हैं। आरबीआई के पास बैंक का निरीक्षण करने की शक्तियां हैं। इसके बहीखातों में सरकारी बैंकों के बोर्ड में एक नामित सदस्य होता है और बोर्ड के भीतर एक समिति का हिस्सा होता है जो बड़े ऋणों को मंजूरी देता है।
आरबीआई बैंकों के बोडरें पर अतिरिक्त निदेशकों की नियुक्ति कर सकता है, आरबीआई के पास सभी बड़े क्रेडिट एक्सपोजर के साथ-साथ केंद्रीय धोखाधड़ी रजिस्ट्री के लिए एक भंडार है, जहां बैंक 1 लाख रुपये से ऊपर की सभी धोखाधड़ी की रिपोर्ट करते हैं। इसके पास विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्तियां भी हैं।
एक समृद्ध निजी क्षेत्र के बैंकिंग स्थान के बावजूद भारत (India) में अधिकांश बैंकिंग परिसंपत्तियां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास हैं, जो वित्तीय सेवा विभाग के तत्वावधान में हैं।
पिछले कुछ वर्षों में कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक घोटालों का पता चला है, जिसके कारण विशेषज्ञों ने नियंत्रण के दोहरेपन पर सवाल उठाया है।
आईएएनएस/RS