जीएसटी स्लैब में कटौती से वस्तुएं हो जाएंगी सस्ती IANS
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जीएसटी स्लैब में कटौती से वस्तुएं हो जाएंगी सस्ती : अर्थशास्त्री

नई दिल्ली, 3 सितंबर को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में 56वीं जीएसटी बैठक आज से शुरू हो गई है। दो दिन तक चलने वाली इस बैठक को लेकर बुधवार को अर्थशास्त्रियों ने कहा कि जीएसटी स्लैब में बदलाव होता है तो वस्तुएं सस्ती हो जाएंगी और इसका सीधा प्रभाव मांग बढ़ने के रूप में देखा जाएगा।

न्यूज़ग्राम डेस्क

इकोनॉमिस्ट राजीव साहू (Economist Rajiv Sahu) ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "दो दिवसीय जीएसटी परिषद की बैठक बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस बैठक में चार-टायर जीएसटी स्लैब को लेकर परिवर्तन देखने को मिलेगा, जिसे 2017 की शुरुआत में पेश किया गया था। यह एक बड़ा सुधार होने जा रहा है, जिसकी घोषणा प्रधान मंत्री ने 15 अगस्त को लालकिले से की थी।"

उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान स्लैब 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत हैं, जिनमें अब 28 प्रतिशत स्लैब का विलय 18 प्रतिशत में और 12 प्रतिशत स्लैब का विलय 5 प्रतिशत में हो जाएगा, जिसका मतलब हुआ कि अधिकांश उत्पाद सस्ते हो जाएंगे।

इकोनॉमिस्ट सूर्या नारायणन ने आईएएनएस से कहा कि निश्चित रूप से, इससे वस्तुओं की कीमतों में कम से कम 15 प्रतिशत की कमी आएगी, खासकर फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स की कीमतों में कमी आएगी।

उन्होंने कहा, "जब वस्तुएं बहुत सस्ती हो जाएंगी तो मांग में वृद्धि होगी। खपत बढ़ेगी। फिर खपत बढ़ेगी, यानी जीडीपी बढ़ेगी और ये केवल सुधार ही नहीं है, केवल कीमतों में कमी, टैक्स ढांचे में सुधार भर नहीं है। इससे भी बढ़कर, रिटर्न में चूक की समस्या का सरलीकरण होगा।"

इन्फोमेरिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट डॉ. मनोरंजन शर्मा ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से कहा, "नए बदलाव के बाद 5 प्रतिशत और 12 प्रतिशत का जीएसटी स्लैब रह जाएगा, जिससे इसका सीधा फायदा आम आदमी को मिलेगा। आम आदमी के पास डिस्पोजेबल इनकम यानी खर्च करने की राशि पहले की तुलना में अधिक बचेगी।"

उन्होंने आगे कहा कि राज्यों के लिए यह एक चिंता का विषय है। कई राज्यों ने दो साल की अवधि को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं। करों में इस कटौती से उन्हें प्रति वर्ष लगभग 2 हजार करोड़ से लेकर पांच वर्षों की अवधि में लगभग 2 लाख करोड़ तक का नुकसान होगा। इसलिए, कई राज्य इस पर सहमत नहीं हैं। शायद वे कर दरों में इस महत्वपूर्ण कमी के कारण राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति व्यवस्था के बारे में सोच सकते हैं।

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