77th Cannes Film Festival : फिल्म मंथन भारत की श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीस कुरियन के अग्रणी दूध सहकारी आंदोलन से प्रेरित है।(Wikimedia Commons) 
मनोरंजन

चंदा लेकर बनाई गई थी फिल्म “मंथन”, अब कान्स फिल्म फेस्टिवल में इसे किया जाएगा प्रदर्शित

अमूल ब्रांड नाम से दूध और दूध उत्पाद बेचने वाली गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड अपनी स्वर्ण जयंती मना रही है। इस उत्सव के मौके पर फेडरेशन ने 'मंथन' फिल्म को 4K में पुनर्स्थापित किया है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

77th Cannes Film Festival : गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड द्वारा निर्मित फिल्म 'मंथन' को लेकर एक खबर आई है। साल 1976 में आई श्याम बेनेगल की फीचर फिल्म 'मंथन' को 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग के लिए चुना गया है। अमूल ब्रांड नाम से दूध और दूध उत्पाद बेचने वाली गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड अपनी स्वर्ण जयंती मना रही है। इस उत्सव के मौके पर फेडरेशन ने 'मंथन' फिल्म को 4K में पुनर्स्थापित किया है। 'मंथन' की 4K क्वालिटी फिल्म को मई में होने जा रहे कान्स फिल्म फेस्टिवल 2024 में रेड कार्पेट वर्ल्ड प्रीमियर के लिए चुना गया है। आपको बता दें 'मंथन' एकमात्र भारतीय फिल्म है, जिसे इस साल फेस्टिवल के कान्स क्लासिक सेक्शन के तहत चुना गया है।

क्यों यह फिल्म है इतनी महत्वपूर्ण?

फिल्म मंथन भारत की श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीस कुरियन के अग्रणी दूध सहकारी आंदोलन से प्रेरित है। इस फिल्म का डेयरी सहकारी आंदोलन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। इसने देशभर के लाखों किसानों को स्थानीय डेयरी सहकारी समितियां बनाने के लिए एकसाथ आने के लिए प्रेरित किया और इसने दूध उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की यात्रा में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

आपको जान कर हैरानी होगी कि मंथन फिल्म के कारण ही लोगों को विश्वास हुआ कि पशुपालन और दूध उत्पादन आजीविका का एक स्थायी और समृद्ध साधन हो सकता है। आपको बता दें भारत 1998 में दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया और तब से ही इसने यह स्थान अभी तक बनाए रखा है।

भारत 1998 में दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया और तब से ही इसने यह स्थान अभी तक बनाए रखा है। (Wikimedia Commons)

चंदा लेकर बनी थी यह फिल्म

यह फिल्म 10 लाख रुपये के बजट के साथ बनाई गई। आपको बता दें, 'मंथन' पहली क्राउड-फंडेड भारतीय फिल्म भी थी, जिसमें गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड के उस समय के सभी 5 लाख डेयरी किसानों ने, इसकी उत्पादन लागत को पूरा करने के लिए प्रत्येक ने 2 रुपये का योगदान दिया था।

यह फिल्म भारतीय सिनेमा की सामाजिक रूप से प्रासंगिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण अध्याय को चिह्नित करती है। 'मंथन' ने 1977 में हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और विजय तेंदुलकर को सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था। यह 1976 में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए अकादमी पुरस्कार के लिए भारत का प्रस्तुतीकरण भी थी।

मोहम्मद शमी को कोर्ट से बड़ा झटका : पत्नी-बेटी को हर महीने देने होंगे 4 लाख रुपये !

जिसे घरों में काम करना पड़ा, आज उसकी कला को दुनिया सलाम करती है – कहानी दुलारी देवी की

सफलता की दौड़ या साइलेंट स्ट्रगल? कोरिया में डिप्रेशन की असली वजह

जहां धरती के नीचे है खजाना, वहां ऊपर क्यों है गरीबी का राज? झारखंड की अनकही कहानी

'कैप्टन कूल' सिर्फ नाम नहीं, अब बनने जा रहा है ब्रांड!