Kishor Kumar - किशोर कुमार हिंदी फ़िल्म जगत के सबसे सफ़ल गायकों में से एक थे (Wikimedia Commons) 
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आज भी सबके ज़ुबान पर है हिन्दी सिनेमा के मशहूर गायक किशोर कुमार जी के गाने

सबसे सफ़ल गायकों में से एक थे वो बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति है, इसके साथ ही वो अभिनेता, गीतकार, संगीतकार, निर्माता, निर्देशक और पटकथा लेखक भी थे।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Kishor Kumar - किशोर कुमार हिंदी फ़िल्म जगत के सबसे सफ़ल गायकों में से एक थे वो बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति है, इसके साथ ही वो अभिनेता, गीतकार, संगीतकार, निर्माता, निर्देशक और पटकथा लेखक भी थे। हिंदी फ़िल्मों में गाने के अलावा उन्होंने बंगाली, मराठी, असम, गुजरती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम, ओड़िसा और उर्दू सहित कई भाषाओँ में गाया है। सर्वश्रेष्ठ गायकी के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके है।

18 साल की उम्र में पहुंचे थे मुंबई

किशोर कुमार महज 18 साल की उम्र में मुंबई पहुंच गए थे. लेकिन यहां आने के बाद भी उनका सपना पूरा नहीं हो सका था। लेकिन तब तक उनके बड़े भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता धाक जमा चुके थे. गायक बनने के बाद किशोर कुमार ने भी अलग पहचान बनाई। लेकिन उनकी जिंदगी में एक वक्त ऐसा आया जब किशोर के पास काम नहीं था ऐसे में उन्होंने समारोह में गाना गाना शुरू किया।

उन्होंने रुमा घोष से 1951 में विवाह किया था,वो बंगाली फ़िल्मों की अभिनेत्री और गायिका भी थी। (Wikimedia Commons)

किशोर कुमार जीवनसाथी

इनकी चार शादियाँ हुई थी इनकी चारों पत्नियों का ताल्लुक किसी ना किसी रूप मे फिल्म जगत से रहा हैं

उनकी पहली पत्नी जिन्हे रुमा घोष के नाम से जाना जाता हैं। उन्होंने उनसे 1951 में विवाह किया था,वो बंगाली फ़िल्मों की अभिनेत्री और गायिका भी थी।

दूसरी शादी उन्होंने फ़िल्म अभिनेत्री मधुबाला से 1960 में की थी। इनकी तीसरी शादी योगिता बालि के साथ वर्ष 1976 मे हुई थी।किशोर कुमार की चौथी शादी वर्ष 1980 में लीना चंदावरकर से हुई।

वर्ष 1946 में इन्होने फ़िल्म शिकारी में पहली बार अभिनय करने का मौका मिला (Wikimedia Commons)

किशोर कुमार की पहली फिल्म एवं गीत

वर्ष 1946 में इन्होने फ़िल्म शिकारी में पहली बार अभिनय करने का मौका मिला, उस वक्त उनकी उम्र मात्र 17 साल की थी। एक गायक के रूप में 1948 में उन्होंने फिल्म जिद्दी के लिए एक गीत गाया था जिसके बोल थे मरने की दुआएं क्यों मांगू….. 1949 में किशोर फ़िल्म उद्योग मे पुरी तरह जम गए. 1951 में फ़िल्म आंदोलन, 1954 में नौकरी और 1957 में मुसाफ़िर जैसी फिल्मों में मुख्य भूमिकाओं को निभाया।

उनके सदाबहार गाने

हमें और जीने की चाहत न होती... अगर तुम न होते

आदमी जो कहता है… मजबूर

आने वाला पल जाने वाला है… गोलमाल

ओ मेरे दिल के चैन… मेरे जीवन साथी

कोई हमदम न रहा… झूमरू

खाईके पान बनारस वाला… डॉन (1978)

ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीकत कौन हो तुम बतलाओ… तीन देवियाँ

छूकर मेरे मन को… याराना

जीवन से भरी तेरी आँखें… सफ़र

तेरी दुनिया से, होके मजबूर चला… पवित्र पापी

दिल आज शायर है… गैम्बलर

दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा… अमानुष

दुखी मन मेरे, सुन मेरा कहना… फंटूश

प्यार दीवाना होता है… कटी पतंग

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