ऐश्वर्या शर्मा के खिलाफ बिना सबूत ट्रोलिंग और गलत आरोप लगाए गए।
भारत (India) में हर विवाद में महिलाएं ही ज्यादा ब्लैम और नफरत का सामना करती हैं।
मलाइका अरोड़ा (Malaika Arora) और सामंथा रुथ प्रभु जैसे दूसरे केस भी यही पैटर्न दिखाते हैं।
भारत में अक्सर देखा गया है कि जब भी किसी रिश्ते, शादी या निजी जिंदगी से जुड़ा कोई विवाद सामने आता है, तो लोग सबसे पहले महिला को ही गलत मान लेते हैं। असली वजह क्या है? किसने क्या किया? इसकी किसी को परवाह नहीं होती। बस समाज और सोशल मीडिया जल्दी निष्कर्ष निकाल लेता है कि गलती महिला की ही है। ऐश्वर्या शर्मा के मामले ने इस सोचे-समझे बिना चलने वाली परंपरा को फिर से उजागर कर दिया है।
Aishwarya के खिलाफ अचानक से “ टॉक्सिक”, “ईर्ष्यालु” और “अन्प्रफेशनल” जैसे शब्द उछाले जाने लगे, जबकि इन आरोपों का कोई सबूत नहीं दिखाया गया। न कोई वीडियो, न कोई ऑडियो, न किसी टीम मेंबर का बयान, फिर भी टिप्पड़ी बहुत तेजी से दी गई। यही दिखाता है कि हमारी सोच में महिलाओं को लेकर कितना बायस अभी भी मौजूद है।
आज के समय में मीडिया और सोशल मीडिया दोनों बहुत तेज़ी से खबरें फैलाते हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि कई बार खबरें पूरी जानकारी के बिना ही बनाई जाती हैं। ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) के मामले में भी ज़्यादातर हेडलाइन्स ऐसे लिखे गए मानो सारी गलती उन्हीं की हो। उनके बिहेवियर और पर्सनेलिटी (personality) पर सवाल उठाए गए, वह भी तब, जब कोई आधिकारिक (official) स्टेटमेंट मौजूद नहीं था।
यह इस बात का बड़ा उदाहरण है कि महिलाओं का नाम ज़्यादा क्लिक और व्यूज (views) लाता है। इसलिए कई बार मीडिया भी अनजाने में उसी दिशा में stories push करता है जहाँ महिला को विलन (villain) दिखाना आसान हो।
हमारा समाज अक्सर यह मानकर चलता है कि एक महिला को हमेशा परफेक्ट, शांत, समझदार और बलिदान करने वाली होना चाहिए। अगर किसी रिश्ते में दिक्कत आती है, तो लोग यह सोच लेते हैं कि महिला ने “घर नहीं संभाला”, “ईगो रखी”, या “करियर को ज्यादा महत्व दिया।” अगर महिला चुप रहे तो उसे “कमज़ोर” माना जाता है। अगर वह बोल दे, तो उसे “ड्रामेटिक” और “अटेंशन सीकर” कहा जाता है।
इस दोगलेपन की वजह से अक्सर महिलाओं को हमेशा विवादों में ज्यादा नुकसान झेलना पड़ता है।
ऐश्वर्या (Aishwarya) ने साफ कहा कि चुप्पी का मतलब ये नहीं में गलत हूँ “(Silence doesn’t mean I am wrong.)” लेकिन समाज में चुप्पी को सच मान लिया जाता है, खासकर जब मामला महिला का हो। लोग समझते हैं कि अगर वह बोल नहीं रही है तो शायद वही गलत है।
ऐश्वर्या ने बताया कि हर बार जब उन्होंने कुछ समझाने की कोशिश की, लोगों ने उनकी बात को मोड़कर गलत तरीके से इस्तेमाल किया। इसलिए उन्होंने अपनी शांति और मानसिक संतुलन के लिए चुप रहने का फैसला लिया। लेकिन फिर भी, लोगों ने इसे उनके खिलाफ ही इस्तेमाल किया।
यह पैटर्न सिर्फ ऐश्वर्या तक सीमित नहीं है, बल्कि बॉलीवुड (Bollywood) और अन्य इंडस्ट्रीज़ में कई बार देखा गया है।
जब इस कपल ने अलग होने का फैसला लिया, सोशल मीडिया ने तेजी से मलाइका को दोष देना शुरू कर दिया। बिना किसी सबूत या सच्चाई के, उन्हें “ गोल्ड डिगर”, “घर तोड़ने वाली” जैसे शब्द कहे गए। असली वजह कभी सामने नहीं आई, लेकिन दोष सिर्फ महिला पर लगा।
इस रिश्ते में भी सबसे ज्यादा आरोप सामंथा पर ही लगा। उनके बारे में affair, attitude और family values जैसी बातें फैलाई गईं, जिनका कोई आधार नहीं था। इतना ट्रोलिंग हुआ कि उन्हें खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर कहना पड़ा कि ये सब झूठे और दुखद आरोप उनकी मानसिक स्तिथि को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
इन दोनों उदाहरणों से साफ है कि चाहे मामला कितना भी निजी क्यों न हो, समाज पहले महिला पर उंगली उठाता है और बाद में सोचता है।
एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री (Entertainment Industry) ही नहीं, बल्कि राजनीति (Politics), मीडिया (Media), ऑफिस, स्कूल, हर जगह यही पैटर्न बार-बार दोहराया जाता है। महिलाएं अगर शांत रहें तो “कमज़ोर” कहा जाता है। और अगर किसी रिश्ते में समस्या आए तो सबसे पहले उन्हें ही दोषी मान लिया जाता है।
ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) का मामला हमें फिर याद दिलाता है कि यह बायस कितना गहरा और पुराना है। जब तक समाज महिलाओं को भी इंसान समझकर, तर्खो के आधार पर निर्णय नहीं करेगा, तब तक ऐसी घटनाएं बार-बार सामने आती रहेंगी।
निष्कर्ष (Conclusion)
ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) का मामला कोई अलग घटना नहीं है। यह उसी लंबे सामाजिक पैटर्न का हिस्सा है जहाँ विवाद के हर तूफान में सबसे पहले महिला को ही बदनाम किया जाता है। बिना सबूत और बिना जानकारी के महिलाओं पर आरोप लगा देना आसान माना जाता है। हमें यह समझना होगा कि हर कहानी के दो पहलू होते हैं, और बिना सच जाने महिला को दोषी ठहराना गलत है। समाज को बदलने की शुरुआत तभी होगी जब हम सुनने, समझने और न्यायपूर्ण होने की आदत डालेंगे।
RH