पाकिस्तानी (Pakistani) ड्रामा इंडस्ट्री (Industry) आज पूरी दुनिया में अपनी कहानियों, अभिनय और प्रस्तुतिकरण के लिए जानी जाती है। भारत हो या यूरोप हो या अमेरिका हो हर जगह पाकिस्तानी ड्रामों के दर्शक मौजूद हैं। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक ऐसा सच भी है, जिसे सुनकर कोई भी हैरान हो सकता है। यहां के कलाकार, जिनकी मेहनत से ये ड्रामे लोकप्रिय होते हैं, अक्सर अपने हक यानी मेहनताना (Wages) पाने के लिए वो महीनों तक तरसते हैं। आखिर इसका क्या कारण हो सकता है, आइये जानते हैं।
पेमेंट की सबसे बड़ी समस्या
इस मुद्दे को सबसे पहले अभिनेता और लेखक सैयद मोहम्मद अहमद ने खुलकर उठाया था। उनका कहना है कि उन्हें काम का भुगतान छह से सात महीने बाद मिलता है। कई बार तो हालात ऐसे हो जाते हैं कि कलाकारों को प्रोड्यूसर्स से बार-बार गुजारिश करनी पड़ती है। अहमद का कहना हैं कि एक अदाकार का पूरा भुगतान एक साथ नहीं होता, बल्कि तीन से चार हिस्सों में बांटकर दिया जाता है। इसी तरह अभिनेत्री सहीफ़ा जब्बार ख़टक ने भी अपनी परेशानी साझा की।
उन्होंने कहा कि जब वह कोई प्रोजेक्ट साइन करती हैं तो शुरुआत में सिर्फ़ कॉन्ट्रैक्ट मिलता है, कोई चेक नहीं मिलता। वहीं अभिनेत्री रम्शा ख़ान और ख़ुशहाल ख़ान भी अपने इंटरव्यूज़ में पेमेंट की देरी पर चिंता जताते हुए बहुत ही मायूस हो होकर यही कहती हैं की पेमेंट की देरी की वजह से बहुत सारे समस्या का सामना करना पड़ता है।
निर्देशक मेहरीन जब्बार जो कि न्यूयॉर्क शहर में स्थित एक पाकिस्तानी फिल्म और टेलीविजन निर्देशक और निर्माता हैं, उनका मानना है कि इंडस्ट्री (Industry) में भुगतान की समस्या की जड़ जिम्मेदारी से बचना है। प्रोडक्शन हाउस कहते हैं कि चैनल्स ने पैसे नहीं दिए, चैनल्स का कहना है कि विज्ञापनदाता देर से पैसे देते हैं। इस तरह हर कोई दोष एक-दूसरे पर डाल देता है और कलाकार बीच में पिसते रहते हैं।
पैसों की समस्या के अलावा कलाकारों को सुरक्षा से जुड़ी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। एक बार अभिनेत्री सहीफ़ा ने बताया कि उनके प्रोड्यूसर गुस्से में सेट पर बंदूक लेकर पहुंच गए थे और उन्हें मजबूरन एफआईआर दर्ज करवानी पड़ी।
अभिनेत्री हाजरा यामीन, जो इन दिनों "मैं मंटो नहीं हूं" में दिख रही हैं, उन्होंने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट में कलाकारों के हित में कुछ भी नहीं लिखा होता है। बहुत बार तो ऐसा होता है कि सेट पर चोट लगने के बावजूद भी इलाज का यहां कोई नियम नहीं है, यहां इस इस प्रकार का कोई व्यवस्था नहीं की जाती है, बल्कि कलाकारों को सीधे घर भेज दिया जाता है।
अभिनेता मोहम्मद अहमद ने भी एक घटना सबके साथ साझा की उनके साथ तो बहुत ही बुरा व्यवहार किया गया उनके साथ यह हुआ कि जब उनकी आंख में कांच चुभ गया, तो अस्पताल ले जाने के बजाय उनसे कहा गया कि आप "कैमरा रोल करो, यह सीन में काम आएगा।" इसी मुद्दे पर अभिनेता फ़ैसल कुरैशी ने भी कहा कि मेन लीड कलाकार को तो तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाता है, लेकिन बाकी अदाकारों की परवाह यहां नहीं की जाती है।
मेहरीन जब्बार ने इंडस्ट्री की एक और बड़ी समस्या बताई, उन्होंने कहा कि यहां समय की बहुत अधिक पाबंदी है। कई कलाकार समय पर सेट पर नहीं पहुंचते और इसका खामियाज़ा समय पर आने वाले कलाकारों को भुगतना पड़ता है। वहीं प्रोड्यूसर बाबर जावेद का कहना है कि 80 से 90 फीसदी समस्याओं के पीछे कलाकार ही जिम्मेदार होते हैं। कई बार वो कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं और शूटिंग की तारीख़ें महीनों टाल देते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस वक्त 90 फीसदी प्रोडक्शन हाउस अपने चैनलों के मालिक हैं, इसलिए असली समस्या चैनलों की है, जो समय पर पैसे नहीं देते। अक्सर कॉन्ट्रैक्ट में लिखा होता है कि पेमेंट 90 दिनों में होगी, लेकिन पैसे 150 से 160 दिनों में मिलते हैं।
क्यों कलाकार काम नहीं छोड़ सकते हैं ?
यह सवाल कई बार मन ही मन उठता है कि जब हालात इतने खराब हैं तो कलाकार काम करना क्यों नहीं छोड़ते हैं। हाजरा यामीन कहती हैं, "काम तो करना है। प्रोडक्शन हाउस हैं ही कितने। अगर किसी को इनकार कर दो तो वह लंबे समय तक आपको काम नहीं देंगे।" इसी दर से बहुत से कलाकार काम नहीं छोड़ते हैं। सहीफ़ा का मानना है कि प्रोड्यूसर्स बार-बार उन्हीं कलाकारों के साथ काम करते हैं, जो सेट पर समस्याएं खड़ी करते हैं क्योंकि वही उन्हें लोकप्रिय ड्रामे दिला चुके होते हैं।
मेहरीन जब्बार का कहना है कि प्रोडक्शन हाउस को तभी प्रोजेक्ट शुरू करना चाहिए जब उनके पास खर्च उठाने के लिए पर्याप्त पैसे हों। वहीं बाबर जावेद का मानना है कि चैनलों को ही आगे बढ़कर सुधार लाना होगा, तभी कुछ बदलाव आ सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि चैनलों को कलाकारों की हेल्थ इंश्योरेंस करानी चाहिए, क्योंकि असल कर्ता-धर्ता वही हैं। चैनलों को आगे बढ़ने के लिए कलाकारों के हेल्थ पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योकि उनसे सी चैनल चलता है।
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कानूनी रास्ता और कलाकारों की उम्मीद
एडवोकेट अताउल्लाह कंडी का कहना है कि परफ़ॉर्मिंग आर्टिस्ट्स के लिए पाकिस्तान में कोई विशेष श्रम कानून नहीं है। कलाकार सिविल कोर्ट में अपील कर सकते हैं, लेकिन इसमें समय लगता है। इसी बीच कुछ कलाकार अपने स्तर पर पहल कर रहे हैं। सहीफ़ा अपने कॉन्ट्रैक्ट में लिखवाने लगी हैं कि शर्तें पूरी न होने पर वह सेट पर नहीं आएंगी। हाजरा टैक्स कटने पर रसीद मांगती हैं और अपने साथियों को भी ऐसा करने की सलाह देती हैं। हाजरा का कहना है, "प्रोड्यूसर्स से तो कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन आर्टिस्ट कम्यूनिटी से है। अगर हम एक-दूसरे का सहारा बनें तो बदलाव संभव है।"
निष्कर्ष
पाकिस्तानी (Pakistani) ड्रामा इंडस्ट्री (Industry) की चमक-दमक के पीछे कलाकारों का संघर्ष (Struggle) छिपा है। महीनों तक मेहनताना (Wages) न मिलना, सेट पर सुरक्षा का अभाव और कॉन्ट्रैक्ट की कमजोरियां ये सब कुछ मिलकर कलाकारों की जिंदगी को मुश्किल बना रहे हैं। फिर भी कलाकार काम छोड़ नहीं सकते, क्योंकि उनके साथ समस्या है, उनकी रोज़ी-रोटी। अब सवाल यह है कि क्या चैनल्स, प्रोडक्शन हाउस और कलाकार मिलकर इस इंडस्ट्री को व्यवस्थित बना पाएंगे ?
जब तक कलाकारों की मेहनत का सम्मान नहीं होगा और उन्हें बुनियादी सुरक्षा व अधिकार नहीं मिलेंगे, तब तक पाकिस्तानी ड्रामों की लोकप्रियता के पीछे यह कड़वा सच हमेशा छिपा रहेगा। [Rh/PS]