दीपावली यानी की "दीपों की माला" जिस पर दीपकों द्वारा प्रकाश किया जाए। बनारस में मनाई जाने वाली देव दीपावली पर भी दीपों की लंबी माला देखने को मिलती है। स्कंद गुप्त (Skandgupta) पुराण में भी दीपावली का उल्लेख किया गया है। इसी के साथ सातवीं शताब्दी के राजा हर्षवर्धन (Harshvardhan) के नाटकों में भी दीपोत्सव का उल्लेख देखने को मिलता है और 10 वीं शताब्दी में राजशेखर के "काव्यमीमांसा" में भी दीपोत्सव का जिक्र किया गया है। यह त्यौहार हिंदुओं के अलावा अन्य धर्मों के लोगों द्वारा भी मनाया जाता रहा है। बात अगर दीपावली के इतिहास की हो तो इतिहासकारों का कहना है कि दिवाली मनाने की शुरुआत मुगलों के शासन काल में हुई थी।
मुस्लिम बादशाहों द्वारा दिवाली मनाए जाने का उल्लेख इतिहास में मिलता है। 14वीं सदी में मोहम्मद बिन तुगलक अपने अंतरमहल में दीवाली का जश्न मनाते थे और एक भोज का आयोजन करते थे। लेकिन उनके शासनकाल में आतिशबाजी होती थी इसका उल्लेख कहीं नहीं मिला है।
मोहम्मद बिन तुगलक (Mohammad Bin Tuglaq) के बाद अकबर ने सोलहवीं सदी में दिवाली मनाने की शुरुआत की, दिवाली के दिन उनके दरबार को खूब सजाया जाता था। उन्होंने रामायण का फारसी अनुवाद कराया और इसका पाठ भी दिवाली पर किया जाता था। श्री राम के अयोध्या वापसी का नाट्य मंचन भी होता था, साथ ही अपने दोस्तों रिश्तेदारों को मिठाई का वितरण भी करवाते थे। हल्की फुल्की आतिशबाजी शुरू हो चुकी थी ऐसा उल्लेख इतिहास में मिलता है।
17वीं सदी में शाहजहां (Shahjahan) ने अकबर (Akbar) के दिवाली मनाने के रूप में परिवर्तन किया। वह दिवाली पर 56 राज्यों से अलग-अलग मिठाई मंगवाकर कर 56 तरह के थाल सजाते थे। और शहीदों को याद करते हुए सूरजक्रांत (Surajkrant) नाम के पत्थर पर सूर्य की किरण लगाकर उसे रोशन किया जाता था जो साल भर तक जलता था। साथ ही 40 फीट ऊंचे आकाश दीपक में 40 मन कपास के बीज का तेल डालकर जलाया जाता था। इन के शासनकाल में भव्य आतिशबाजी होती थी और महिलाओं के लिए अलग रूप की आतिशबाजी होती थी आम जनता को भी आतिशबाजी देखने की इजाजत थी इस पर्व को पूरी तरह से हिंदू तौर तरीकों से मनाया जाता था और सात्विक भोजन बनाया जाता था।
रंगीला के नाम से मशहूर संगीत और साहित्य प्रेमी मोहम्मद शाह (Mohammad Shah) का शासन 1719 से 1748 तक रहा। दिवाली पर वह अपनी तस्वीर बनवाते थे। और लाल किले को शानदार तरीके से सजवाते थे। इतिहासकारों की मानें तो मोहम्मद शाह द्वारा शुरू की गई दिवाली की परंपरा ही हम आज तक निर्वाह कर रहे हैं।
जब अंग्रेजों ने देश पर कब्जा कर लिया तब भी मुगल भव्य तरीके से दिवाली मनाते रहे और बहादुर शाहजफर (Bahadur Shah Jafar) लाल किले (Red Fort) पर अक्सर दिवाली की थीम पर ही नाट्य प्रस्तुति करवाया करते थे। यह आम जनता भी देख सकती थी। दिवाली के मौके पर मुगलों द्वारा की जाने वाली आतिशबाजी का लुत्फ अंग्रेज भी उठाते थे।
(PT)