भारत सरकार का कहना है कि यह संशोधन वक्फ (Waqf) संपत्तियों के प्रबंधन और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए लाया गया है।  (AI)
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वक्फ कानून पर भारत-पाक आमने-सामने : भारत ने कहा, वक्फ कानून पर उपदेश देने से पहले पाकिस्तान खुद को देखे

भारत-पाकिस्तान (India Pakistan) के बीच वक्फ कानून को लेकर नई तनातनी बढ़ी। भारत ने कहा कि पाकिस्तान (Pakistan) पहले अपने अल्पसंख्यकों की हालत सुधारे। दरअसल, भारत पारदर्शिता लाने के लिए वक्फ (Waqf) संपत्तियों में सुधार कर रहा है, जबकि पाकिस्तान इसे मुसलमानों पर हमला बता रहा है, जबकि खुद वहां वक्फ पर सरकारी कब्ज़ा है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

नई दिल्ली से जारी बयान में भारत ने साफ कहा कि पाकिस्तान को दूसरों को उपदेश देने से पहले खुद के अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे बर्ताव पर नज़र डालनी चाहिए। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर पाकिस्तान की आलोचना को "निराधार और मकसद से प्रेरित" करार दिया। उन्होंने कहा कि "भारत की संसद (Parliament) से पारित कानूनों पर पाकिस्तान को कोई टिप्पणी करने का हक़ नहीं है।" दरअसल, पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने दावा किया था कि भारत का नया वक्फ कानून मुसलमानों को मस्जिदों और दरगाहों जैसी संपत्तियों से बेदखल करने की कोशिश है। पाकिस्तान ने इसे भारतीय मुसलमानों के धार्मिक और आर्थिक अधिकारों पर हमला बताया है।

वक्फ संशोधन कानून पर भारत का पक्ष

भारत सरकार का कहना है कि यह संशोधन वक्फ (Waqf) संपत्तियों के प्रबंधन और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए लाया गया है। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद (Parliament) में कहा कि यह कानून न तो किसी समुदाय के खिलाफ है और न ही इससे किसी की धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित होगी। सरकार का तर्क है कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में अक़्सर भ्रष्टाचार, मनमानी और गलत इस्तेमाल की शिकायतें आती रही हैं। ऐसे में निगरानी और सुधार जरूरी था। विपक्ष का कहना है कि यह सरकार का मुसलमानों की संपत्तियों पर नज़र डालने का तरीका है। इसी बात को पकड़कर पाकिस्तान ने इसे भारत के अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश बता दिया।

पाकिस्तान (Pakistan) के अखबारों और चैनलों ने इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाया। द डॉन ने लिखा कि मोदी सरकार शुरू से ही अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को निशाना बनाती रही है और अब वक्फ संपत्तियों की बारी है। अखबार ने आरोप लगाया कि प्रशासनिक सुधार के नाम पर असल में मुस्लिम स्वायत्तता को कमजोर किया जा रहा है।

नई दिल्ली से जारी बयान में भारत ने साफ कहा कि पाकिस्तान को दूसरों को उपदेश देने से पहले खुद के अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे बर्ताव पर नज़र डालनी चाहिए।

पाकिस्तान में वक्फ व्यवस्था की कहानी

अगर पाकिस्तान (Pakistan) की बात करें तो वहां वक्फ संपत्तियों का इतिहास दिलचस्प और विवादों से भरा है। पाकिस्तान में वक्फ को "औकाफ" कहा जाता है। 1951 में पहली बार पंजाब मुस्लिम औकाफ एक्ट बना। 1959 में जनरल अयूब खान ने 'वेस्ट पाकिस्तान वक्फ प्रॉपर्टीज ऑर्डिनेंस' लाकर दरगाहों और वक्फ संपत्तियों पर सरकार ने कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद वक्फ संपत्तियों का नियंत्रण दो संस्थाओं के पास रहा - औकाफ विभाग, जो हर प्रांत में बना। इवैक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB), जो भारत-पाक विभाजन के समय छोड़ी गई हिंदू-सिख संपत्तियों की देखरेख करता है। आज पाकिस्तान में वक्फ के पास लाखों एकड़ जमीन, हजारों दुकानें, मकान और बड़ी आमदनी है। केवल पंजाब औकाफ विभाग के पास ही लगभग 75,000 एकड़ जमीन और हजारों दुकानें हैं।

धार्मिक विवाद और भ्रष्टाचार

पाकिस्तान में वक्फ (Waqf) की आय का बड़ा हिस्सा प्रशासनिक खर्च में ही निकल जाता है। एक रिसर्च के मुताबिक औकाफ विभाग की आमदनी का लगभग 60% हिस्सा वेतन और दफ्तरों पर खर्च हो जाता है। शिक्षा और धर्म पर सिर्फ 6-7%, स्वास्थ्य व समाज कल्याण पर करीब 12% ही खर्च होता है। इसके अलावा, वक्फ संपत्तियों को औने-पौने दामों पर लीज़ पर देने के मामले भी सामने आए हैं। कई बार जमीन 99 साल के लिए सिर्फ 1 रुपया प्रति मरला के हिसाब से दी गई। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान में वक्फ व्यवस्था कितनी पारदर्शी है।

पाकिस्तान में वक्फ से जुड़ी दरगाहें और धार्मिक स्थल भी कई बार कट्टरपंथियों के निशाने पर आते हैं। लाहौर का दाता दरबार, कराची में अब्दुल्ला शाह गाज़ी की मजार और पेशावर का रहमान बाबा की दरगाह पर हमले हो चुके हैं। यह सब दिखाता है कि वहां वक्फ संपत्तियों की पवित्रता और सुरक्षा दोनों पर सवाल हैं।

पाकिस्तान में वक्फ (Waqf) की आय का बड़ा हिस्सा प्रशासनिक खर्च में ही निकल जाता है।

वक्फ के सकारात्मक उदाहरण

हालांकि, पाकिस्तान में वक्फ पूरी तरह नाकाम नहीं है। कुछ संस्थानों ने वक्फ को समाजहित में बदलने का शानदार काम किया है। हमदर्द पाकिस्तान, हकीम मोहम्मद सईद ने 1953 में हमदर्द लेबोरेट्री को वक्फ संपत्ति घोषित किया। आज यह यूनानी दवाओं के साथ शिक्षा और समाज सेवा में बड़ा नाम है। इहसान वक्फ, यह ब्याज मुक्त शिक्षा ऋण और अनाथालय चलाता है। इसकी मदद से 20,000 से ज्यादा छात्र उच्च शिक्षा पा चुके हैं। यानी अगर सही तरीके से प्रबंधन हो तो वक्फ समाज के लिए बहुत कुछ कर सकता है।

पाकिस्तान ही नहीं, कई मुस्लिम देशों में वक्फ व्यवस्था मौजूद है। तुर्की में वक्फ का प्रबंधन संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय करता है, और मिस्र में इसके लिए अलग मंत्रालय है। इसके बाद इराक़ में सुन्नी और शिया दोनों के अलग-अलग वक्फ बोर्ड हैं, और सऊदी अरब वक्फ को इतना मजबूत बना रहा है कि 2030 तक इससे अरबों डॉलर निवेश जुटाने की योजना है। इससे यह दावा गलत साबित होता है कि मुस्लिम देशों में वक्फ प्रणाली नहीं है।

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भारत और पाकिस्तान में असली फर्क

भारत में वक्फ (Waqf) संपत्तियां मुस्लिम समुदाय के बोर्ड के पास हैं और सरकार अब उसमें पारदर्शिता लाने के लिए संशोधन कर रही है। जबकि पाकिस्तान में सरकार ने दशकों पहले ही वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण कर लिया था। यानी पाकिस्तान (Pakistan) खुद वक्फ व्यवस्था को सरकारी शिकंजे में कस चुका है, लेकिन भारत के संशोधन पर सवाल उठा रहा है। यही कारण है कि भारत ने पाकिस्तान को जवाब देते हुए कहा की "दूसरों को उपदेश देने के बजाय खुद पर गौर करें।"

भारत में वक्फ (Waqf) संपत्तियां मुस्लिम समुदाय के बोर्ड के पास हैं और सरकार अब उसमें पारदर्शिता लाने के लिए संशोधन कर रही है।

निष्कर्ष

वक्फ (Waqf) का मकसद धार्मिक दान और समाज की भलाई था, लेकिन समय के साथ यह विवादों और राजनीति का हिस्सा बन गया। भारत में इसका मुद्दा आंतरिक सुधार का है, जबकि पाकिस्तान इसे अल्पसंख्यकों पर हमले का रंग दे रहा है।

अब असल सवाल यह है कि क्या वक्फ संपत्तियां पारदर्शी और जनहित में उपयोग हो रही हैं ? भारत और पाकिस्तान (India Pakistan) दोनों देशों में यह व्यवस्था अक्सर विवादों और भ्रष्टाचार से घिरी रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि भारत इसे सुधारने की कोशिश कर रहा है, जबकि पाकिस्तान इसे अपने राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बना रहा है। इस पूरी कहानी से यह समझ आता है कि वक्फ जैसी धार्मिक संपत्ति तभी कारगर बन सकती है, जब उसका प्रबंधन पारदर्शी, ईमानदार और समाजहित में हो। नहीं तो यह सिर्फ विवाद, राजनीति और पड़ोसी देशों के लिए बहस का मुद्दा बनकर रह जाएगी। [Rh/PS]

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