
भारत और पाकिस्तान, जो कभी एक ही धरती के हिस्से थे, जो की आज सीमाओं और राजनीतिक कारण की वजह से अलग (India-Pakistan Partition) हो चुके हैं। लेकिन इस बंटवारे की सबसे बड़ी कीमत साधारण परिवारों ने चुकाई है। कई लोग ऐसे हैं जिनके रिश्तेदार, परिवार और जीवन की जड़ें दोनों देशों में बटी हुई हैं। जब कोई व्यक्ति पाकिस्तान से भारत आकर बसना चाहता है या भारतीय नागरिकता लेना चाहता है, तो यह सफ़र आसान नहीं होता। नागरिकता (Citizenship) कानूनों की पेचीदगियां, दोनों देशों के तनावपूर्ण रिश्ते और सरकारी प्रक्रियाएं मिलकर आम लोगों की जिंदगी को दुविधा में लटका देती हैं।
इसी तरह की एक कहानी है केरल में रहने वाली दो बहनों (Two Sisters from Kerala) की, जिन्होंने पाकिस्तान की नागरिकता छोड़कर भारतीय नागरिक बनने का सपना देखा। लेकिन आज वो न तो पाकिस्तान की नागरिक मानी जाती हैं और न ही भारत की। उनकी ज़िंदगी एक दुविधा में अटकी हुई है, उनका पासपोर्ट तक बनना मुश्किल है और वो बुनियादी अधिकारों से वंचित भी हैं।
पाकिस्तानी पहचान, भारतीय सपना
ये दोनों बहनें (Two Sisters from Kerala) साल 2008 से अपनी मां रशीदा बानो के साथ केरल में रह रही हैं। उनकी मां और भाई को भारतीय नागरिकता (Citizenship) मिल चुकी है, लेकिन बहनें आज भी नागरिकता के इंतज़ार में हैं। साल 2017 में जब उन्होंने पाकिस्तान हाई कमीशन में अपने पासपोर्ट जमा कर दिए थे, उस समय उनकी उम्र 21 साल से कम थी। पाकिस्तान के कानून के अनुसार, 21 साल से कम उम्र के लोग अपनी नागरिकता स्वतंत्र रूप से नहीं छोड़ सकते। इसी वजह से उन्हें नागरिकता छोड़ने का प्रमाणपत्र नहीं मिला। जब वो 21 साल की हो गईं और दोबारा आवेदन किया, तब भी पाकिस्तान हाई कमीशन ने बिना कारण बताए प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया। नतीजा यह हुआ कि वो आधिकारिक रूप से पाकिस्तान की नागरिक भी नहीं रहीं और भारत की नागरिक भी नहीं बन पाईं।
रशीदा बानो का कहना है कि इस स्थिति ने उनकी बेटियों की जिंदगी पर गहरा असर डाला है। पासपोर्ट न होने की वजह से वो विदेश यात्रा नहीं कर सकतीं, न ही साधारण सुविधाओं का लाभ उठा सकती हैं। शादी और बच्चों के जीवन पर भी इसका असर पड़ा है। एक बेटी की शादी खाड़ी देश में नौकरी करने वाले शख्स से हुई थी, लेकिन पासपोर्ट न होने की वजह से वह पति के साथ नहीं जा सकी। दूसरी बेटी के बच्चे को विदेश में इलाज की जरूरत है, लेकिन यात्रा न कर पाने से यह संभव नहीं हो पाया।
फिर उन्होंने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, उसके बाद केरल हाई कोर्ट की एकल पीठ ने उनके पक्ष में फ़ैसला सुनाया और कहा कि नागरिकता छोड़ने का प्रमाणपत्र उनके लिए लाना असंभव है, इसलिए भारत सरकार को उन्हें नागरिकता (Citizenship) देनी चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अपील की। बाद में दो जजों की पीठ ने यह फैसला पलट दिया और कहा कि नागरिकता छोड़ने की औपचारिक प्रक्रिया पूरी किए बिना भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती।
भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते दशकों से तनावपूर्ण रहे हैं। हाल ही में अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तानियों पर और कड़े नियम लागू किए। अल्पकालिक वीज़ा पर भारत आए पाकिस्तानी नागरिकों को तुरंत वापस भेजने के आदेश दिए गए है। इस आदेश का असर उन पाकिस्तानी महिलाओं और परिवारों पर पड़ा, जिन्होंने भारत में शादी की थी और भारत में ही रहना चाहती थीं। इस्लामाबाद की मरियम, जिनकी शादी यूपी के खुर्जा कस्बे में हुई थी, वो भी इन्हीं आदेशों की वजह से वापस भेजे जाने के डर में जी रही हैं। मरियम का कहना है, "जहां मेरा पति है, वहीं मेरा घर है। मैं पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहती।"
परिवारों का बिछड़ना
ऐसे में कई परिवार हैं जो अचानक बिछड़ने को मजबूर हो गए हैं। ऐसी एक और महिला है, उनका नाम है नबीला जो की दिल्ली आई और अपने पाकिस्तानी पति और बच्चों के साथ रह रही थीं। अब उनके बच्चे पाकिस्तान भेजे जा रहे हैं जबकि नबीला भारतीय नागरिक हैं। बच्चों ने सरकार से गुहार लगाई कि उन्हें अपनी मां के साथ रहने दिया जाए। इसी प्रकार से कश्मीर में रह रही परवीन का भी यही दर्द है। उनका कहना है कि "आतंकी हमले की कीमत हमें क्यों चुकानी पड़ रही है ? अब हमारा पाकिस्तान में कोई नहीं है, हम वहां कैसे रहेंगे ?" कुछ महिलाएं तो अपने छोटे बच्चों को छोड़कर पाकिस्तान लौटने की कल्पना से ही टूट रही हैं। कराची से आई एक महिला ने कहा, "मैं अपने 8 साल के बेटे को छोड़कर पाकिस्तान कैसे जा सकती हूं ? यहां मेरा पूरा परिवार है, मैं यहां रहना चाहती हूं।"
कई महिलाएं और परिवार लंबे समय से भारत में रह रहे हैं, और उन्होंने यहां की संस्कृति को भी अपना लिया है, यहां उन्होंने अपने रिश्ते बनाए है, लेकिन नागरिकता न होने की वजह से उनकी ज़िंदगी मुश्किलों से भरी है। आधार कार्ड मिल गया है, लेकिन वह नागरिकता का प्रमाण नहीं है। मोबाइल सिम, बैंक खाता, बच्चों की शिक्षा, विदेश यात्रा इस प्रकार से हर कदम पर नागरिकता का सवाल उनके सामने खड़ा हो जाता है।
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हालांकि, कुछ लोगों के लिए उम्मीद की किरण भी है। गुजरात के कच्छ जिले में हाल ही में 185 पाकिस्तानी नागरिकों को भारतीय नागरिकता दी गई। उनमें से एक 70 वर्षीय सूरोजी कांजी सोढ़ा थे, जिन्होंने 16 साल पहले पाकिस्तान छोड़ दिया था। सूरोजी ने कहा, "यह मेरे लिए दूसरा जन्म है। मैंने यह फैसला खासकर अपनी बेटियों के भविष्य के लिए लिया था।"
भारत में रहने वाले कई पाकिस्तानी नागरिक मानते हैं कि वो अब वापस नहीं लौट सकते। उनके लिए भारत ही उनका घर है। लेकिन कानून की पेचीदगियां और दोनों देशों की राजनीति उन्हें फंसा देती हैं। अदालतें और सरकारें कानूनी भाषा में फैसले सुनाती हैं, लेकिन इन फैसलों की कीमत उन परिवारों को चुकानी पड़ती है जो पीढ़ियों से बंटवारे की मार झेल रहे हैं।
अब सवाल है
पाकिस्तान से भारत आए लोग सिर्फ़ राजनीतिक शरणार्थी नहीं हैं, वो अपने बच्चों, अपने भविष्य और अपने सुरक्षित जीवन की तलाश में आए हैं। लेकिन क्या भारत और पाकिस्तान के बीच की कड़ी दीवार कभी नरम हो पाएगी ?
दोनों बहनों (Two Sisters from Kerala) की कहानी इस कठिनाई का प्रतीक है। वो दोनों बहनें न पाकिस्तान की नागरिक हैं, और न ही भारत की नागरिक हैं। वो बस इंतजार कर रही हैं उस दिन का जब उन्हें यह कहने का अधिकार मिलेगा कि "हम भारतीय हैं।" [Rh/PS]