₹2 में जिंदगी बचाने वाले डॉक्टर अब नहीं रहे : सेवा और करुणा की मिसाल बने डॉ. रायरू गोपाल

डॉ. ए.के. रायरू गोपाल (Doctor Rairu Gopal), जो मात्र ₹2 में इलाज (Treatment for ₹2) कर गरीबों के मसीहा बने, वो अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने बिना लालच के हज़ारों ज़िंदगियों को सहारा दिया। उनका निधन समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वो सच्चे अर्थों में करुणा और सेवा की मिसाल थे।
₹2 में इलाज कर गरीबों के भगवान बने डॉक्टर रायरू गोपाल अब नहीं रहे।             (Sora AI)
₹2 में इलाज कर गरीबों के भगवान बने डॉक्टर रायरू गोपाल अब नहीं रहे। (Sora AI)
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"डॉक्टर वही, जो बिना लालच के इलाज करे।" यह वाक्य अगर किसी पर सटीक बैठता है, तो वो हैं केरल के मशहूर चिकित्सक डॉ. ए.के. रायरू गोपाल, जिन्हें लोग श्रद्धा और प्रेम से "₹2 (Treatment for ₹2) वाले डॉक्टर" कहते थे। 80 वर्ष की उम्र में आयु संबंधी बीमारियों के चलते उनका निधन हो गया। उनके निधन से न सिर्फ केरल बल्कि पूरे देश ने एक ऐसे डॉक्टर को खो दिया जिसने दया, सेवा और सादगी को चिकित्सा का असली आधार बनाया।

उनका अंतिम संस्कार 3 अगस्त को कन्नूर के पय्यम्बलम में किया गया। श्रद्धांजलि देने वालों में आम लोग ही नहीं, राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन भी शामिल थे, जिन्होंने उन्हें "जनता का डॉक्टर" कहकर सम्मान दिया।

डॉ. गोपाल (Doctor Rairu Gopal)ने अपने जीवन के 5 दशक चिकित्सा सेवा में बिताए। अपने लंबे करियर में उन्होंने ₹2 (Treatment for ₹2) के मामूली शुल्क में करीब 18 लाख मरीज़ों का इलाज किया, वह भी बिना किसी दिखावे, प्रचार या अपेक्षा के। शुरुआती दिनों में उन्होंने कन्नूर के तालाप क्षेत्र में स्थित एलआईसी ऑफिस के पास क्लिनिक से काम शुरू किया। 35 साल वहाँ सेवा देने के बाद उन्होंने अपने पैतृक निवास ‘लक्ष्मी’ में क्लिनिक शिफ्ट कर लिया। उनका इलाज सिर्फ दवा तक सीमित नहीं था, बल्कि वह अपने मरीजों को आत्मीयता, सम्मान और भरोसा भी देते थे। उनके पास आने वाले ज़्यादातर मरीज दिहाड़ी मज़दूर, बुज़ुर्ग और छात्र होते थे, जो इलाज के लिए लंबी लाइन में सुबह होने से पहले ही आकर बैठ जाते थे।

डॉ. ए.के. रायरू गोपाल का निधन एक युग का अंत है, ऐसा डॉक्टर फिर शायद ही कभी मिले।   (Sora AI)
डॉ. ए.के. रायरू गोपाल का निधन एक युग का अंत है, ऐसा डॉक्टर फिर शायद ही कभी मिले। (Sora AI)

डॉ. गोपाल का जीवनचर्या एक डॉक्टर से ज़्यादा एक तपस्वी जैसी थी। वह रोज़ सुबह 2:15 बजे उठते थे। पहले अपनी गौशाला की सफाई, फिर दूध बांटना, उसके बाद प्रार्थना और अख़बार पढ़ने का समय होता था। और फिर सुबह 3:00 बजे से ही मरीज़ों को देखना शुरू कर देते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि उनके मरीज दिनभर मजदूरी करते हैं और समय की क़ीमत उनके लिए बहुत अधिक है। एक दिन में 300 तक मरीज़ देखना उनके लिए आम बात थी, और उन्होंने कभी अपनी परामर्श फीस बढ़ाने पर ज़ोर नहीं दिया। बाद के वर्षों में जब मरीज ज़्यादा हुए तो उन्होंने ₹2 से फीस बढ़ाकर ₹40–₹50 की, लेकिन हमेशा ध्यान रखा कि दवाइयाँ सस्ती हों और मरीजों पर आर्थिक बोझ न पड़े।

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डॉ. गोपाल (Doctor Rairu Gopal) ने कभी किसी दवा कंपनी से उपहार, स्पॉन्सरशिप या कमीशन नहीं लिया। उन्होंने हमेशा जनरल, कम कीमत वाली दवाइयाँ लिखीं और मुनाफा कमाने की मानसिकता से पूरी तरह दूर रहे। उनका मानना था, "डॉक्टर को मरीज की सेवा करनी चाहिए, न कि कंपनियों की। उनकी सेवा यात्रा में उनकी पत्नी डॉ. शकुंतला ने हमेशा उनका साथ निभाया। क्लिनिक में एक सहायक के साथ-साथ परिवार के सदस्य, बेटा डॉ. बालगोपाल, बहू डॉ. तुषारा और बेटी विद्या, सभी समय-समय पर उनकी सेवा में हाथ बंटाते रहे।

 उनके क्लिनिक की लाइनें लंबी होती थीं, लेकिन फीस मात्र ₹2, इतना सस्ता इलाज कहीं और नहीं मिलता था।
(Sora AI)
उनके क्लिनिक की लाइनें लंबी होती थीं, लेकिन फीस मात्र ₹2, इतना सस्ता इलाज कहीं और नहीं मिलता था। (Sora AI)

डॉ. गोपाल खुद भी एक डॉक्टर परिवार से थे। उनके पिता डॉ. ए. गोपालन नांबियार ने उन्हें बचपन में ही समझा दिया था कि चिकित्सा लाभ के लिए नहीं, सेवा के लिए होती है। उनके दोनों भाई, डॉ. वेणुगोपाल और डॉ. राजगोपाल, भी इसी आदर्श को मानते हुए डॉक्टर बने। डॉ. गोपाल के निधन पर केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने गहरा दुख जताया और उन्हें सच्चे अर्थों में "जनता का डॉक्टर" बताया। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने उन्हें याद करते हुए लिखा कि "वह सिर्फ एक डॉक्टर नहीं, इंसानियत के प्रतीक थे।" उनके मरीजों ने बताया कि डॉक्टर साहब से इलाज करवाना एक आशीर्वाद जैसा था। न पर्ची की चिंता, न फीस की टेंशन, सिर्फ सच्चे मन से इलाज और सेवा।

डॉ. ए.के. रायरू गोपाल (Doctor Rairu Gopal) का जीवन एक ऐसी प्रेरणा है, जो मेडिकल पेशे को सिर्फ कमाई का जरिया नहीं बल्कि सेवा का माध्यम मानती है। उन्होंने जो किया, वह आज के समय में विरले ही देखने को मिलता है। उनकी यह विरासत आने वाले समय में उन डॉक्टरों को दिशा दिखाएगी जो अपने पेशे को समाजसेवा बनाना चाहते हैं। डॉ. रायरू गोपाल अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी सेवा, सादगी और करुणा की गूंज हमेशा ज़िंदा रहेगी। [Rh/PS]

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