मां को कोर्ट तक घसीटा ले आया बेटा, वजह बना मां के लिए सिर्फ ₹2000 का मासिक खर्च!

एक जवान बेटा सिर्फ ₹2000 महीने की मदद से बचने के लिए अदालत में अपनी वृद्ध मां के खिलाफ लड़ रहा था। जज ने जब ये मामला सुना तो भावनाओं को रोक न सके और खुले शब्दों में कहा "शर्म आनी चाहिए, "मां ने तुम्हें ज़िंदगी दी, और तुम उसे कुछ सौ रुपये देने में भी गुरेज कर रहे हो?"
बेटा जब बड़ा हुआ, तो मां को दो वक़्त की रोटी देने से भी मुंह मोड़ने लगा। [Sora Ai]
बेटा जब बड़ा हुआ, तो मां को दो वक़्त की रोटी देने से भी मुंह मोड़ने लगा। [Sora Ai]
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कभी मां ने अपनी भूख छिपा कर बेटे को खिलाया, कभी खुद गीले में सोई ताकि बेटा सूखे में चैन से सो सके। वही बेटा जब बड़ा हुआ, तो मां को दो वक़्त की रोटी देने से भी मुंह मोड़ने लगा। केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) में हाल ही में एक ऐसा ही मामला सामने आया जिसने न सिर्फ न्यायपालिका को हिला दिया, बल्कि पूरे समाज के सामने एक आईना रख दिया। एक जवान बेटा सिर्फ ₹2000 महीने की मदद से बचने के लिए अदालत में अपनी वृद्ध मां के खिलाफ लड़ रहा था। जज ने जब ये मामला सुना तो भावनाओं को रोक न सके और खुले शब्दों में कहा "शर्म आनी चाहिए, "मां ने तुम्हें ज़िंदगी दी, और तुम उसे कुछ सौ रुपये देने में भी गुरेज कर रहे हो?"

 एक जवान बेटा सिर्फ ₹2000 महीने की मदद से बचने के लिए अदालत में अपनी वृद्ध मां के खिलाफ लड़ रहा था। [Pixabay]
एक जवान बेटा सिर्फ ₹2000 महीने की मदद से बचने के लिए अदालत में अपनी वृद्ध मां के खिलाफ लड़ रहा था। [Pixabay]

यह मामला सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं है, यह हमारी बदलती सोच, खोते संस्कारों और रिश्तों की गिरती कीमत का दुखद उदाहरण है। क्या वाकई आज का समाज इतना बेरहम हो गया है कि मां को भी अपने अधिकार के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़े?

बेटे से न्याय की उम्मीद लिए अदालत की चौखट पर बैठी मां

यह चौंकाने वाला मामला केरल के कोट्टायम (Kottam District Of Kerala) जिले से सामने आया है, जहां एक 100 साल की वृद्ध मां बीते कई वर्षों से अपने बेटे से सिर्फ ₹2000 की मासिक सहायता पाने के लिए अदालत में लड़ रही है। यह महिला साल 2020 से अपने बेटे के खिलाफ केस लड़ रही है, जिसमें उसने कोर्ट से गुज़ारिश की थी कि उसका बेटा हर महीने उसे 2000 रुपये दे ताकि वह अपने बुढ़ापे में दो वक़्त की रोटी जुटा सके। लेकिन बेटे ने इस मामूली रकम को देने से भी इनकार कर दिया और इस मामले को ऊपरी अदालत तक घसीट लाया।

बेटे से न्याय की उम्मीद लिए अदालत की चौखट पर बैठी मां  [Pixabay]
बेटे से न्याय की उम्मीद लिए अदालत की चौखट पर बैठी मां [Pixabay]

इस केस की सुनवाई केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) में हुई, जहां जज भी बेटे की सोच और रवैये से स्तब्ध रह गए। जज ने टिप्पणी करते हुए कहा, "हमें शर्म आ रही है, मां ने पाल पोसकर बड़ा किया और अब वो केवल ₹2000 से भी बचना चाहता है? यह केस न सिर्फ कानून का मामला है, बल्कि यह उस सामाजिक विघटन का संकेत है जहां संस्कार, करुणा और रिश्तों की अहमियत खोती जा रही है। एक मां जिसने अपने जीवन की सारी पूंजी बेटे की परवरिश में लगा दी, आज उसी बेटे के हाथों अपमानित हो रही है, वह भी ₹2000 के लिए।

मां का सहारा बनने से क्यों भाग रहा है बेटा?

कोर्ट में बेटे ने यह दलील दी कि उसकी मां पहले से ही अपने दूसरे बेटे के साथ रह रही हैं और उसके अन्य बच्चे भी आर्थिक रूप से सक्षम हैं, इसलिए उस पर भरण-पोषण की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए। लेकिन केरल हाईकोर्ट ने इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एक मां के कई बच्चे हो सकते हैं, लेकिन हर बच्चे की कुछ नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी होती है।

कोर्ट में बेटे ने यह दलील दी कि उसकी मां पहले से ही अपने दूसरे बेटे के साथ रह रही हैं [Sora Ai]
कोर्ट में बेटे ने यह दलील दी कि उसकी मां पहले से ही अपने दूसरे बेटे के साथ रह रही हैं [Sora Ai]

सिर्फ यह कह देना कि मां किसी और बेटे के साथ रह रही है, एक बेटे को उसकी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकता। साथ ही, हाईकोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि बेटे ने 2022 में फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए भरण-पोषण आदेश का अब तक पालन नहीं किया। अदालत ने इसे मानवता और कानून दोनों के खिलाफ बताया।

यह सिर्फ केरल की बात नहीं है... पूरे भारत में अकेलेपन से लड़ते हैं मां-बाप

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) में जिस तरह एक बेटा अपनी बुजुर्ग मां को सिर्फ 2000 रुपए देने से बचने के लिए अदालत में लड़ रहा है, वैसी घटनाएं भारत में आम होती जा रही हैं। दुख की बात ये है कि मां-बाप, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बच्चों की परवरिश में लगा दी, वही बुजुर्ग अब अपनों के बीच पराए बनते जा रहे हैं।

  • उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी में, एक बुजुर्ग दंपती को उनके बेटे ने सिर्फ इसीलिए घर से निकाल दिया क्योंकि वे अब कमाने में असमर्थ थे। दोनों पति-पत्नी रेलवे स्टेशन पर भीख मांगते हुए मिले।

  • दिल्ली (Delhi) में, 72 वर्षीय एक मां ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की क्योंकि उसका बेटा उसे सिर्फ एक कमरे में बंद करके रखता था और न खाना देता, न दवाई।

  • बिहार (Bihar) के पटना में, एक रिटायर्ड शिक्षक को उसके बच्चों ने मिलकर वृद्धाश्रम भेज दिया, ताकि वो उनकी "आज़ादी" में दखल न दे।

मां-बाप, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बच्चों की परवरिश में लगा दी, वही बुजुर्ग अब अपनों के बीच पराए बनते जा रहे हैं। [Pixabay]
मां-बाप, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बच्चों की परवरिश में लगा दी, वही बुजुर्ग अब अपनों के बीच पराए बनते जा रहे हैं। [Pixabay]

ऐसे हजारों मामले सामने आ चुके हैं जहाँ बुजुर्गों को अपने अधिकारों के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा। 'Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007' जैसे कानून जरूर हैं, लेकिन संवेदनशीलता और सम्मान अगर दिलों से ही खत्म हो जाए तो कानून भी कमज़ोर पड़ जाते हैं।

आंकड़े चीख-चीख कर कह रहे हैं… बुजुर्गों के लिए घर नहीं, संघर्ष की जगह बनते जा रहे हैं

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2023 के अनुसार, भारत में हर तीसरे दिन एक बुजुर्ग के साथ उसके अपने ही घर में हिंसा होती है। अधिकतर मामलों में आरोपियों में बेटे और बहुएं शामिल होती हैं। HelpAge India की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि, 71% बुजुर्गों ने कहा कि वे भावनात्मक उपेक्षा का सामना करते हैं। 35% बुजुर्गों ने स्वीकारा कि उन्हें शारीरिक, मानसिक या आर्थिक उत्पीड़न झेलना पड़ता है। सबसे ज़्यादा उपेक्षा मेट्रो शहरों में देखने को मिलती है। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कोलकाता में ये दर 50% से अधिक है।

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कुछ और हकीकतें जो रुला देती हैं

महाराष्ट्र के नागपुर में, 80 साल की एक मां को बेटे ने इसलिए पीटा क्योंकि उसने फोन पर देर तक बात की थी। मामला तब सामने आया जब पड़ोसियों ने वीडियो वायरल किया। वहीं राजस्थान के जोधपुर में, एक बुजुर्ग महिला को उसकी बहू ने खाना देने से मना कर दिया क्योंकि वो "काम की नहीं रही"। कोर्ट ने बहू पर कड़ी फटकार लगाई। पश्चिम बंगाल के हावड़ा में, 85 साल के बुजुर्ग ने रेलवे प्लेटफॉर्म पर पंखे के नीचे बैठकर जीवन काटने का वीडियो बनाया, जिसमें उन्होंने बताया कि बेटों ने घर से निकाल दिया।

भारत जैसे संस्कृति प्रधान देश में बुजुर्गों के साथ ऐसा व्यवहार न केवल कानूनी अपराध है, बल्कि संस्कारों की हत्या भी है। अब वक्त आ गया है जब न सिर्फ कानून, बल्कि समाज को भी आगे आकर बुजुर्गों को उनका हक और सम्मान लौटाना होगा। [Rh/SP]

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