यह सेंसर बता सकता हैं होम्योपैथिक दवा की गुणवत्ता

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आणविक होम्योपैथी के लिए एक बड़ी सफलता

स्वास्थ्य

यह सेंसर बता सकता हैं होम्योपैथिक दवा की गुणवत्ता

यह सेंसर भोपाल के शासकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में पदस्थ डॉ निशांत नम्बिसन और सीएसआईआर भोपाल में पदस्थ डॉ हरिनारायण भार्गव ने तैयार किया है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

न्यूजग्राम हिंदी: चिकित्सक के परामर्श पर मरीज दवाओं का सेवन करता है, मगर उपयोग में आने वाली दवाओं की गुणवत्ता के परीक्षण की कोई सुविधा हासिल नहीं है। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी भोपाल (Bhopal) के दो चिकित्सकों ने ऐसा सेंसर तैयार किया है जिसके जरिए होम्योपैथिक दवा की गुणवत्ता का परीक्षण किया जा सकता है। साथ ही उसकी असरकारक क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है।

यह सेंसर भोपाल के शासकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में पदस्थ डॉ निशांत नम्बिसन और सीएसआईआर भोपाल में पदस्थ डॉ हरिनारायण भार्गव ने तैयार किया है। यह पूरी तरह स्वदेशी तौर पर विकसित किया गया और प्रयोगात्मक सेंसर है। यह ऐसा सेंसर है जिसके माध्यम से दवा की पहचान संभव है साथ ही दवा की गुणवत्ता का भी आसानी से पता लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं दवा की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए होम्योपैथिक दवाओं को चार्ज किया जा सकता है।

शोधकर्ता और जीएचएमसी के प्रोफेसर डॉ नम्बिसन बताते हैं कि यह आणविक होम्योपैथी के लिए एक बड़ी सफलता है। यह दुनिया का पहला ऐसा सेंसर विकसित किया गया है जो होम्योपैथिक दवा की गुणवत्ता का पता लगा सकता है। इतना ही नहीं इस सेंसर के जरिए होम्योपैथिक दवाओं को और कारगर बनाने की दिशा में भी यह सहायक है।

गौरतलब है कि अभी तक अति सूक्ष्म होम्योपैथिक दवाओं की पहचान करने की कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है। इस सफलता को होम्योपैथिक दवा की गुणवत्ता के प्रमाणीकरण के क्षेत्र में बड़ा कदम माना जा सकता है।

वहीं सीएसआईआर के डॉ भार्गव का कहना है कि अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि होम्योपैथिक दवाइयों को विद्युत चुंबकीय ऊर्जा से उत्तेजित कर उनकी पहचान तब भी करना संभव है, जब दवा बहुत कम मात्रा में होती है।

डॉ निशांत नम्बिसन और सीएसआईआर भोपाल में पदस्थ डॉ हरिनारायण भार्गव

शोधकर्ताओं का मानना है कि बीमारी से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण प्राकृतिक ऊर्जा (प्रतिरक्षा)को पुनर्जीवित करके रोगियों में विभिन्न बीमारियों के इलाज में प्रभावी हो सकती है।

इस सफलता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि जर्मनी की संस्था कैम्पस ने न केवल इसे सराहा है बल्कि मिलकर मल्टी सेंट्रिक स्टडी का प्रस्ताव भी दिया है।

--आईएएनएस/PT

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