विश्व खुशहाली सूचकांक (World Happiness Index) दुनिया भर में लोगों की जिंदगी से संतुष्टि और खुशी को मापने का पैमाना है। इसे हर साल संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क (Sustainable Development Solutions network) द्वारा जारी किया जाता है। यह रिपोर्ट आमतौर पर 20 मार्च (अंतरराष्ट्रीय खुशहाली दिवस) पर जारी होती है।
इसमें अलग-अलग देशों के लोगों से सवाल पूछे जाते हैं कि वे अपनी जिंदगी को 0 से 10 तक किस अंक पर आंकते हैं। इस स्केल को कैन्ट्रिल लैडर (Cantril Ladder) कहा जाता है। इसके साथ ही शोधकर्ता छह बातों को भी ध्यान में रखते हैं, प्रति व्यक्ति आय (GDP), सामाजिक सहयोग (Social Support), स्वस्थ जीवन प्रत्याशा (Healthy life expectancy), जीवन में आज़ादी (Freedom to make life choices), उदारता और भ्रष्टाचार की धारणा (Perceptions of corruption) इन्हीं आधारों पर यह तय होता है कि कौन-सा देश कितना खुशहाल है।
विश्व खुशहाली सूचकांक 2025 में भारत (India) को 147 देशों में से 118वां स्थान मिला है। पिछली बार भारत 126वें स्थान पर था, यानी इस बार थोड़ी तरक्की हुई है। लेकिन 118वां स्थान यह दिखाता है कि भारत अभी भी खुशहाली के मामले में पीछे है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि भारत अपने कई पड़ोसियों और संघर्ष झेल रहे देशों से भी पीछे है। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान (Pakistan) 109वें स्थान पर है और यूक्रेन (Ukraine) और पैलेस्टाइन (Palestine) जैसे देशों की स्थिति भी भारत से बेहतर रही। इससे साफ है कि भारत की आर्थिक तरक्की सीधे लोगों की खुशी में बदल नहीं रही है।
भारत की रैंकिंग इतनी नीचे क्यों है?
भारत की रैंकिंग यह बताती है कि यहाँ सिर्फ़ तेज़ आर्थिक विकास (Economic Development) से लोगों का जीवन बेहतर नहीं हो रहा। देश में आर्थिक असमानता (Economic Inequality) बहुत गहरी है। कुछ लोग बहुत अमीर हैं, लेकिन बड़ी आबादी अभी भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रही है।
सामाजिक सहयोग और सुरक्षा प्रणाली कमज़ोर है, जिससे ग़रीब और मज़लूम वर्गों को मुश्किल हालात में सहारा नहीं मिल पाता। मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान बहुत कम है, और इसे लेकर समाज में अब भी कलंक (स्टिग्मा) है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार (Corruption) और संस्थाओं पर भरोसे की कमी भी लोगों की संतुष्टि को घटाती है। शिक्षा (Education), स्वास्थ्य (Health) और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाओं की कमी आम लोगों की जिंदगी पर सीधा असर डालती है। यही कारण है कि भारत (India) खुशहाली की दौड़ में पिछड़ जाता है।
हर साल की तरह इस बार भी फिनलैंड (Finland), डेनमार्क (Denmark) और आइसलैंड (Ireland) जैसे नॉर्डिक देश शीर्ष पर हैं। इन देशों की सफलता का राज़ सिर्फ़ पैसा नहीं है, बल्कि उन्होंने ऐसी व्यवस्थाएँ बनाई हैं जो लोगों की खुशहाली सुनिश्चित करती हैं।
इन देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ (Healthcare facilities) और मज़बूत वेलफ़ेयर सिस्टम मौजूद हैं। लोग भरोसा कर सकते हैं कि मुश्किल समय में सरकार और समाज उनका साथ देगा। वहाँ भ्रष्टाचार बहुत कम है, इसलिए जनता सरकार और संस्थाओं पर भरोसा करती है।
साथ ही, इन देशों में मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) को गंभीरता से लिया जाता है, और समुदाय में लोगों के लिए मदद उपलब्ध रहती है। वहाँ काम और निजी जीवन का संतुलन भी बेहतर है और समानता और आज़ादी को अहमियत दी जाती है। यही वजह है कि वहाँ के लोग सुरक्षित, समर्थित और सम्मानित महसूस करते हैं।
भारत (India)अगर भविष्य में अपनी रैंकिंग बेहतर करना चाहता है तो उसे केवल आर्थिक विकास पर ध्यान देने के बजाय लोगों की वास्तविक ज़रूरतों पर निवेश करना होगा। सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत करना ज़रूरी है।
मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश और जागरूकता फैलाना भी बेहद अहम है। इससे समाज में कलंक कम होगा और लोगों की जिंदगी बेहतर बनेगी। इसके साथ ही, समावेशी नीतियाँ बनानी होंगी ताकि अमीरी-गरीबी की खाई कम हो और विकास का फायदा सभी वर्गों तक पहुँचे।
भ्रष्टाचार घटाना और शासन में पारदर्शिता (Transparency) लाना भी बेहद ज़रूरी है, क्योंकि लोगों का भरोसा बढ़े बिना खुशहाली संभव नहीं है। इसके अलावा, ग़रीब और कमजोर वर्गों के लिए मज़बूत सामाजिक सुरक्षा तंत्र बनाना होगा।
क्या यह मापदंड सही हैं?
हालाँकि विश्व खुशहाली सूचकांक (World Happiness Index) एक भरोसेमंद रिपोर्ट मानी जाती है, लेकिन यह पूरी तरह परफ़ेक्ट नहीं है। खुशी एक बेहद व्यक्तिगत भावना है, और लोग अलग-अलग संस्कृतियों, परिस्थितियों और उम्मीदों के आधार पर इसे अलग-अलग ढंग से आंकते हैं।
जो छह मापदंड इस्तेमाल किए जाते हैं, जैसे आय (Income), सामाजिक सहयोग, आज़ादी (Freedom) या भ्रष्टाचार (Corruption), वे ज़रूरी तो हैं, लेकिन यह पूरी तस्वीर नहीं दिखाते। भावनात्मक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहलू कई बार इसमें शामिल नहीं हो पाते।
फिर भी, यह रिपोर्ट उपयोगी है क्योंकि यह यह दिखाती है कि नीतियाँ और सामाजिक ढाँचे लोगों की जिंदगी पर कितना असर डालते हैं। यानी भले ही यह 100% सटीक न हो, लेकिन यह सरकारों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि असली तरक्की सिर्फ़ पैसों से नहीं, बल्कि लोगों की खुशहाली से होती है।
निष्कर्ष
भारत (India) का विश्व खुशहाली सूचकांक 2025 में 118वां स्थान यह साबित करता है कि अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। थोड़ी तरक्की हुई है, लेकिन केवल GDP या आर्थिक विकास से लोग खुश नहीं हो सकते।
असली खुशहाली तब आएगी जब लोगों को भरोसा, सेहत, शिक्षा, समान अवसर और मानसिक शांति मिलेगी। नॉर्डिक देशों की तरह भारत भी अगर इन बातों को अपनी प्राथमिकता बनाए, तो वह न सिर्फ़ आर्थिक रूप से मज़बूत बल्कि एक सचमुच खुशहाल समाज बन सकता है। (Rh/BA)