प्यार जितना जरूरी है, उससे भी कहीं ज़्यादा ज़रूरी ट्रस्ट होता है। Pexels
जीवन शैली

जानिए रिश्तों में भरोसा बढ़ाने के 7 आसान और प्रभावी मनोवैज्ञानिक तरीके

अक्सर लोग मानते हैं कि अगर दो लोगों के बीच सच्चा प्यार है, तो उनका रिश्ता हमेशा मजबूत रहेगा। लेकिन असलियत यह है कि प्यार जितना जरूरी है, उससे भी कहीं ज़्यादा ज़रूरी ट्रस्ट होता है। प्यार किसी रिश्ते की शुरुआत हो सकता है, लेकिन उसे निभाने की ताकत सिर्फ़ विश्वास में होती है।

Shivani Singh

रिश्तों में प्यार होना बहुत जरूरी है, लेकिन प्यार के रिश्ते में विश्वास होना भी उतना ही ज़रूरी है जितना की प्यार में रहना। विश्वास हर रिश्ते का जड़ होता है। चाहे वो प्यार का हो, दोस्ती का हो, या फिर प्रोफ़ेशनल वर्ल्ड में आप उतर रहे हो। विश्वास की ज़रूरत हर जगह होती है, एक रिश्ते को लम्बे समय तक ले जाने के लिए।

अक्सर लोग मानते हैं कि अगर दो लोगों के बीच सच्चा प्यार है, तो उनका रिश्ता हमेशा मजबूत रहेगा। लेकिन असलियत यह है कि प्यार जितना जरूरी है, उससे भी कहीं ज़्यादा ज़रूरी ट्रस्ट होता है। प्यार किसी रिश्ते की शुरुआत हो सकता है, लेकिन उसे निभाने की ताकत सिर्फ़ विश्वास में होती है।

हमारे जीवन में न जाने कितने रिश्ते बनते है और टूटते है। ये रिश्ते कोई भी हो सकते है चाहे प्यार के हो, दोस्ती के या फिर हमारे परिवार में भी। मगर हम किसी भी रिश्ते की बात करें, तो उस संबंध में विश्वास (Trust) का होना सबसे इम्पोर्टेन्ट हो जाता है। हां, ये बात भी है की भरोसा हमे दूसरों के सामने कमजोर भी बनाता है लेकिन साथ ही किसी पर भरोसे की वजह से आप अपनी मन की बात भी शेयर करते है। कभी-कभी हमारे जीवन में ऐसा समय आता है कि समझ ही नहीं आता उस वक़्त की जो बात हमारे मन में चल रही है वो हम किसको बताए ? और ऐसे में वो इंसान हमारे दिल के बोझ को हल्का करने का लिए काम आता है जिस पर हमे भरोसा होता है कि यह इंसान से हम वो बात शेयर कर सकते है।

जब आप किसी पर भरोसा करना चाहते हैं, तो सबसे पहला कदम है सच बोलना और बातों को न छुपाना।

अब अच्छाई और बुराई तो हर चीज़ में होती ही है लेकिन सिर्फ अच्छी चीज़े ही आपसे हो या आपके पास आए, तो इसके लिए आपको भरोसा तो करना है लेकिन किसी पर भी ज्यादा नहीं क्योकि जरूरत से ज्यादा अधित चीज़े हमेशा ही हानिकारक होती है। अब आप कहेंगे कि इसको हम कैसे पहचानेंगे की हमारा भरोसा किसी पर ज्यादा है या जितना ज़रूरी है उतना ही है। तो इसका जवाब आपके पास खुद है, जब भी आप किसी इंसान पर भरोसा करे तो उतनी ही बातें बताए जितना आपको लगे कि इस बात को बताने से हमारा कोई आगे चल कर नुक्सान नहीं होगा। देखिए विश्वास होना और करना तो जरूरी है लेकिन साथ ही खुद भी सचेत रहना जरूरी है।

लेकिन प्रश्न यह है कि कैसे हम अपने आस-पास के लोगों पर भरोसा करना सीखें, खासकर तब जब हमने पहले कभी धोखा खाया हो या अनुभव कम हों। तो निचे सात तरीके दिए है जिससे आप समझेंगे कि भरोसा क्यों और कैसे होता है।

1. ईमानदारी और स्पष्ट-बात करना

जब आप किसी पर भरोसा करना चाहते हैं, तो सबसे पहला कदम है सच बोलना और बातों को न छुपाना। जब आप अपनी बातों में पारदर्शिता दिखाते हैं। अपने विचार, भावनाएँ, और सीमाएँ, तो ऐसे बिहैवियर सामने वाले को संदेश देता है कि आप भरोसे-योग्य हैं। आपको बता दें कि भरोसे का मूल अर्थ है कि " सामने वाले पर इतना भरोसा होना कि वह इंसान आपको किसी भी तरह से नुकसान नहीं करेगा"।

और मनोवैज्ञानिक रूप में भी यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जब आप कोई ऐसा व्यवहार अपनाते है जिससे होने वाला नकारात्मक परिणाम की संभावना कम हो जाता है तब इसे जोखिम-बहिष्कार (Risk-Reduction) की प्रक्रिया कहते है।

2. लगातार भरोसेमंद की भावना को दिखाना

किसी भी व्यक्ति का भरोसा जीतने के लिए अपने व्यवहार में निरंतर वो भरोसेमंद की भावना या एक्शन को दिखाना बहुत जरूरी है। बस एक बार या दो बार अच्छे व्यवहार करना पर्याप्त नहीं होता, भरोसा पाने के लिए और किसी भी इंसान पर भरोसा करने के लिए ये बहुत जरूरी है की उसके एक्शन में कितना निश्चलता है। ये देखना बहुत जरूरी होता है कि व्यक्ति की बातें और कर्म मेल खाते है या नहीं।

जब आप कहते हैं “मैं कल आऊँगा” और कल आप आते हैं, फिर अगले दिन भी “मैं समय पर जवाब दूँगा” और आप देते हैं, तो सामने वाले में भरोसा करने का भाव पैदा होता है कि आप भरोसे करने योग्य व्यक्ति हैं। और इस तरह “प्रिडिक्टेबिलिटी” (predictability) और “डिपेंडबिलिटी” (Dependability) भरोसे के दो प्रमुख आयाम बन जाते हैं।

किसी भी व्यक्ति का भरोसा जीतने के लिए अपने व्यवहार में निरंतर वो भरोसेमंद की भावना या एक्शन को दिखाना बहुत जरूरी है।

3. समय दें और अपने अनुभव को शेयर करें

विश्वास किसी पर बस शब्दों से बोल कर नहीं होता, बल्कि अनुभवों से बनता है, जैसे उस इंसान से मिलकर समय बिताना, अपनी बातों को साझा करना, मदद करना। एक शोध बताते हैं कि जो लोग अधिक बार मिलते-जुलते हैं, उनके बीच भरोसा जल्दी बनता है।

जब आप किसी के साथ कठिन समय में होते हैं या छोटी-छोटी बातों में भरोसा दिखाते हैं, तो आपके बीच एक “सुरक्षित अंतरिक्ष” बनता है जहाँ व्यक्ति खुल-कर अपने आप बन सकता है। यही मनोवैज्ञानिक रूप से एमोशनल सेफ्टी (Emotional Safety) कहलाती है।

4. सीमाएँ समझना और दूसरे की सीमाओं का सम्मान करना

विश्वास यह नहीं कि आप हर समय एक-दूसरे के साथ ही रहे, बल्कि यह है कि दोनों की सीमाएँ और व्यक्तिगत स्वतंत्रता स्वीकार की जाएँ। अगर आप साथी की भावनात्मक, मानसिक या भौतिक सीमा को सम्मान देते हैं, तो ऐसे में वाकई भरोसे का माहौल बनता चला जाता है।

और यह बात एक मनोवैज्ञानिक दृष्टि से जुड़ा है जिसे अटैचमेंट थ्योरी (Attachment Theory) कहते है, जहां सुरक्षित अटैचमेंट तब बनता है जब व्यक्ति को भरोसा हो कि उसकी सीमाएँ सुरक्षित हैं।

विश्वास यह नहीं कि आप हर समय एक-दूसरे के साथ ही रहे, बल्कि यह है कि दोनों की सीमाएँ और व्यक्तिगत स्वतंत्रता स्वीकार की जाएँ।

5. जिम्मेदारी लेना और गलती स्वीकार करना

ये बात तो हम सब जानते है कि कोई भी व्यक्ति परफेक्ट नहीं होता। भरोसेमंद संबंधों में यह बात स्पष्ट है कि जब गलती होती है, तो उसे छुपाया नहीं जाता, बल्कि स्वीकार किया जाता है और उस में सुधार का प्रयास किया जाता है।

जब आप अपने हिस्से की गलती स्वीकारते हैं और सामने वाले को दिखाते हैं कि आप जिम्मेदारी ले रहे हैं, तो इससे यह संदेश जाता है कि आप भरोसे-योग्य हैं। यह मनोवैज्ञानिक रूप से विश्वास की ट्रस्ट रिपेयर (Trust Repair) की प्रक्रिया का हिस्सा होता है।

6. सहानुभूति और समझ दिखाना

जब हम किसी को यह महसूस कराते हैं कि हम उसकी भावनाओं को समझते हैं, तो वह व्यक्ति आपके सामने अधिक खुलता है और भरोसा करता है। इस तरह, सहानुभूति (Empathy) भरोसे का आधार बनती है।

यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जब हमें लगता है कि सामने वाला हमारा पक्ष ले रहा है, हमारा दर्द समझ रहा है, तो हमारा मन सुरक्षित महसूस करना शुरू करता है। और यही एहसास भरोसे की गहरी जड़ें जमाता है।

7. धीरे-धीरे खुलना और पूरे विश्वास को तुरंत न देना

विश्वास एक दिन में नहीं बनता। इसे धीरे-धीरे पाया जाता है, एक शोध बताते हैं कि नए संबंधों में तुरंत पूर्ण भरोसा देना जोखिम भरा हो सकता है। इसका मतलब यह है कि शुरुआत में छोटे परीक्षण करें, आप उन्हें थोड़ा-थोड़ा भरोसा दें, देखें कि वे कैसे प्रतिक्रिया देते हैं, फिर विश्वास बढ़ाएँ। इस तरह आप सुरक्षित और स्थायी भरोसा बना सकते हैं।

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