पॉकेटिंग रिलेशनशिप (Pocketing Relationship) के पीछे की मनोविज्ञान और डिजिटल दबाव की असल कहानी AI Generated
Love and Relationships

हम अपने प्यार को क्यों छुपाते हैं: इंस्टाग्राम के दौर में Pocketing का सच

जब प्यार सच्चा होता है तो उसे छुपाने की ज़रूरत क्यों पड़ती है? क्या सोशल मीडिया पर पोस्ट न करना “लव की कमी” है या बस एक निजी सीमा? आइए समझते हैं पॉकेटिंग रिलेशनशिप (Pocketing Relationship) के पीछे की मनोविज्ञान और डिजिटल दबाव की असल कहानी।

Bhavika Arora

  • क्यों लोग अपने प्यार को दूसरों से छुपाते हैं

  • सोशल मीडिया ने रिश्तों की परिभाषा कैसे बदल दी

  • प्राइवसी, शर्म और सोशल वैलिडेशन के बीच संतुलन कैसे बनाएं

‘Pocketing Relationship’ क्या है?

पॉकेटिंग रिलेशनशिप (Pocketing Relationship) का मतलब होता है, जब कोई अपने पार्टनर को अपनी ज़िंदगी के बाकी हिस्सों से छुपाकर रखता है। वो अपने दोस्तों, परिवार या सोशल मीडिया (social media) पर आपके बारे में बात नहीं करता। ऐसा लगता है जैसे रिश्ता किसी गुप्त कोने में कैद है।

बहुत से लोग इसे “रेड फ्लैग” (Red flag) मानते हैं, लेकिन मनोविज्ञान की नज़र से देखें तो हर बार इसका मतलब धोखा नहीं होता। कभी-कभी ये किसी के मन के डर, ट्रॉमा (Trauma) या समाज की उम्मीदों का नतीजा होता है।

1. डर और जजमेंट: प्यार के पीछे छुपा डर

कुछ लोग अपने रिश्ते को छुपाते हैं क्योंकि उन्हें जज किए जाने का डर होता है। कई बार एक व्यक्ति के करीबी आपके पार्टनर को जज करते है या आपके रिश्ते पर किसी ने कहा था, “लोग हमारी कहानी नहीं जानते, फिर भी राय बना लेते हैं।”

कई बार रिश्तों में उम्र, धर्म, जाति या स्टेटस का फर्क होता है। समाज में इस फर्क को देखकर लोग टिप्पणी करते हैं। ऐसे में कुछ लोग सोचते हैं कि “अगर किसी को पता चला तो सब बातें करने लगेंगे।” इस डर में वो अपने रिश्ते को बाहर की निगाहों से बचाना चाहते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, कुछ लोग बचपन से ही दूसरों की राय से बहुत प्रभावित होते हैं। वो चाहते हैं कि उनका रिश्ता “सुरक्षित” रहे, भले ही दुनिया को पता न चले।

2. कमिटमेंट या ट्रॉमा का असर

कभी-कभी पॉकेटिंग की वजह पिछला ट्रॉमा होता है। शायद किसी पुराने रिश्ते में उन्होंने खुद को बहुत एक्सपोज़ किया हो और बाद में धोखा खाया हो। या फिर अपने दोस्तों और करीबी लोगो को उसके बारे में बताया हो और वो रिश्ता सक्सेसफुल न रहा हो।

अब वो डरते हैं कि कहीं फिर वही सब न दोहराया जाए। कमिटमेंट (commitment) की दिक्कतें भी एक वजह हैं। कुछ लोग तब तक किसी को अपनी दुनिया में शामिल नहीं करना चाहते जब तक वो पूरी तरह तैयार न हों।

3. सोशल मीडिया और दिखावे का नया दबाव

आज के ज़माने में प्यार सिर्फ दो लोगों के बीच नहीं रह गया। वो अब इंस्टाग्राम (instagram) स्टोरीज़, कपल रील्स और “CoupleGoals” तक फैल गया है। अगर कोई अपने पार्टनर की फोटो पोस्ट नहीं करता, तो लोगों को लगता है कि “कुछ गड़बड़ है।” पर क्या सच में हर प्यार को डिजिटल सबूत की ज़रूरत है? कई बार कोई रिश्ता इसलिए पब्लिक नहीं होता क्योंकि दोनों चाहते हैं कि वो सच्चा, निजी और शांत रहे।

जैसा एक रिलेशनशिप एक्सपर्ट कहता है “हर प्यार को लाइक्स की ज़रूरत नहीं होती, कुछ रिश्ते बस दिल के लिए बने होते हैं, पब्लिक शो के लिए नहीं।”

“हर प्यार को लाइक्स की ज़रूरत नहीं होती, कुछ रिश्ते बस दिल के लिए बने होते हैं, पब्लिक शो के लिए नहीं।”

4. जब पॉकेटिंग प्यार की सुरक्षा बन जाती है

अगर कोई अपने रिश्ते को छुपाता है क्योंकि वो दुनिया के नेगेटिव असर से बचाना चाहता है, तो ये पॉकेटिंग नहीं बल्कि इमोशनल बाउंड्री (emotional boundry) है। हर किसी को अपने रिश्ते को पब्लिक करने की ज़रूरत नहीं होती।

कुछ प्यार उतने ही खूबसूरत होते हैं जब वो सिर्फ दो दिलों के बीच रहते हैं, न कि कैमरे के सामने। इस तरह का छिपाना झूठ नहीं, बल्कि शांति की चाह है। वो चाहते हैं कि उनका रिश्ता बातों से नहीं, अहसासों से जिए जाए।

5. लेकिन कब बनता है ये खतरा?

अगर कोई आपको इसलिए छुपा रहा है क्योंकि वो शर्मिंदा है, या दूसरों से आपको छिपाना चाहता है, तो वो पॉकेटिंग टॉक्सिक (toxic) बन जाती है। अगर महीनों तक वो आपको अपने दोस्तों या परिवार से न मिलवाए, या आपको सिर्फ तब बुलाए जब कोई न देखे, तो ये दूसरे व्यक्ति के लिए गलत है।

6. प्राइवसी बनाम पब्लिक प्रेशर

हर रिश्ता अलग होता है। कुछ लोगों के लिए पब्लिक दिखाना प्यार की निशानी है, जबकि कुछ के लिए साइलेंस में शांति है। असल बात है कम्युनिकेशन (communication), अगर दोनों एक-दूसरे की सोच समझते हैं, तो चाहे रिश्ता दिखे या न दिखे, भरोसा कायम रहता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

पॉकेटिंग रिलेशनशिप (pocketing relationship) की जड़ें मनोविज्ञान और आधुनिक समाज दोनों में हैं। कभी ये डर, शर्म और ट्रॉमा से पैदा होता है, तो कभी ये सिर्फ प्यार को बाहरी शोर से बचाने की कोशिश होती है।

सोशल मीडिया (social media) की दुनिया में जहाँ प्यार “लाइक” और “फॉलो” से मापा जाता है, वहाँ कभी-कभी सबसे असली रिश्ते वो होते हैं जो सिर्फ दो लोगों के बीच, बिना किसी पोस्ट या टैग के ज़िंदा रहते हैं। कभी-कभी प्यार को छिपाना कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी रक्षा करने का सबसे खूबसूरत तरीका होता है।

(Rh/BA)

बिहार की जनसभा में रवि किशन ने साधा इंडिया गठबंधन पर निशाना, कहा-'जहां जाएंगे डमरू बजेगा'

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता आज से 3 दिन का बिहार चुनाव प्रचार अभियान शुरू करेंगी

बिहार का विकास आईने की तरह साफ दिखाई देता है: सुधांशु त्रिवेदी

चुनावी रेवड़ी या रिश्वत ? बिहार में नोटों की बारिश से मचा बवाल!

4 नवंबर: जानें इस दिन से जुड़ी कुछ खास घटनाएं