10 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) ने पाकिस्तान (Pakistan) के राष्ट्रपति (President) आयूब खान (Ayub Khan) के साथ ताशकेंट समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध को खत्म करने के लिए हुआ था। समझौते के कुछ ही घंटे बाद रात में शास्त्री जी की तबीयत बिगड़ गई। आधिकारिक बयान में कहा गया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उसी रात उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन उनके परिवार और कई अन्य लोगों का मानना है कि कहानी इतनी सीधी नहीं थी।
शास्त्री जी की मौत को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या यह वाकई हार्ट अटैक था या इसमें कोई साज़िश थी। उनका शरीर नीला पड़ गया था, जिससे ज़हर देने की आशंका जताई गई। उनके परिवार ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि मौत अचानक और संदिग्ध हालात में हुई थी।
उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने भी कहा था कि उन्हें लगता है कि शास्त्री जी को ज़हर दिया गया था। परिवार का मानना था कि सही जांच कभी नहीं हुई और सच सामने नहीं आ पाया।
इतना बड़ा मामला होने के बावजूद शास्त्री जी का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया। यही कारण है कि कई लोग मानते हैं कि असली वजह छिपा दी गई। अगर पोस्टमार्टम होता, तो मौत का सच साफ हो सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और रहस्य और गहराता गया।
ताशकेंट (Tashkent) में मौजूद लोगों ने बताया कि शास्त्री जी की तबीयत अचानक बिगड़ी और उन्होंने पानी मांगा। लेकिन उनके शरीर पर नीले धब्बे दिखाई दिए, जो सामान्य हार्ट अटैक में नहीं होते। यह बात संदेह को और बढ़ा देती है।
एक इंटरव्यू में शास्त्री जी (Shastri Ji) के बेटे अनिल शास्त्री ने भी कहा कि मौत की परिस्थितियां बेहद संदिग्ध थीं और जांच की जरूरत थी। उनका मानना है कि सच कभी पूरी तरह सामने नहीं आया।
विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) की फिल्म द ताशकंद फाइल्स (Tashkent Files) भी इन्हीं सवालों के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में दिखाया गया कि कैसे अलग-अलग लोग शास्त्री जी की मौत को लेकर अलग-अलग थ्योरी सामने रखते हैं। फिल्म ने इस बहस को और बड़ा कर दिया कि क्या हमें इस मौत का सच कभी पता चल पाएगा या नहीं।
लाल बहादुर शास्त्री का नाम भारतीय राजनीति में ईमानदारी और सादगी का प्रतीक माना जाता है। "जय जवान जय किसान" (Jai Jawan, Jai Kisan) का नारा देने वाले शास्त्री जी का इस तरह रहस्यमयी तरीके से चले जाना आज भी देशवासियों के मन में सवाल छोड़ता है।
इतिहासकारों और परिवार के सदस्यों की राय है कि अगर सही तरीके से जांच हुई होती, तो शायद सच सामने आ जाता। लेकिन दशकों बाद भी यह एक ऐसा रहस्य है, जिसका जवाब भारतीय जनता अब तक तलाश रही है।
निष्कर्ष
लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की रहस्यमयी मौत सिर्फ एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि भारत के इतिहास की गुत्थी है। ताशकंद समझौते के बाद उनका अचानक चले जाना, पोस्टमार्टम न होना, शरीर पर नीले निशान और परिवार की शंकाएं, ये सब मिलकर इसे और रहस्यमयी बनाते हैं। अनिल शास्त्री सहित उनके परिवार की बातों से साफ है कि सच को जानने की कोशिश अधूरी रह गई। आज भी लोग पूछते हैं, क्या शास्त्री जी की मौत वाकई दिल के दौरे से हुई थी, या इसके पीछे कोई गहरी साज़िश थी?
(Rh/BA)