शास्त्री जी की जयंती पर यह सवाल तो लाज़मी है

9 जून 1964 को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त हुए। (Wikimedia Commons)
9 जून 1964 को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त हुए। (Wikimedia Commons)
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"जय जवान जय किसान" का नारा लगा कर किसानों की आवाज़ बुलंद करने वाले शास्त्री जी का कहना था कि, आपस में लड़ने से अच्छा है, गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ा जाए। आज उन्हीं की जयंती पर, भारत का ये लेखक उन्हें नमन करता है।

यूँ तो ट्विटर पर भी कई सियासी दिग्गजों ने उनकी सराहना की है। उनके सादे व्यक्तित्व और विचारों को महान बताया है। परन्तु क्या ये वही लोग नहीं जिनकी योजनाओं में किसानों का हित ढूंढ पाना, छलनी में दूध चढ़ाने जैसा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर ये वीडियो शेयर करते हुए शास्त्री जी के देश प्रेम की बातें की हैं। उन्होंने कहा कि वो खादी के फटे पुराने कपड़े भी इसलिए सहेज के रखते थे क्यूंकि उसमें किसी का परिश्रम छिपा होता है।

गृह मंत्री अमित शाह ने भी उनके निडर और दूरदर्शिता जैसे गुणों को बहुमूल्य बताया है। किसानों को सशक्त करने के उनके कार्य का, आदरपूर्वक ज़िक्र किया है।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उनके त्याग पूर्ण जीवन को नमन किया है।

अब इनके यह विचार मात्र ट्विटर तक सिमित हैं या इनकी शासन नीतियों का हिस्सा भी। यह तो आने वाला कल ही बताएगा क्यूंकि आज खेतों की बजाए रैलियों में पसीना बहाने वाले किसानों का हाल तो कुछ और ही दर्शाता है।

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