Indian Currency: सरकार ने 360 करोड़ करेंसी बाहर छपवाने का फैसला किया था जिसमें 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया था।(Wikimedia Commons)
Indian Currency: सरकार ने 360 करोड़ करेंसी बाहर छपवाने का फैसला किया था जिसमें 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया था।(Wikimedia Commons) 
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90 के दशक में भारतीय रुपए को देश के बाहर छपवाने की आ गई थी नौबत, जानिए ऐसा क्यों हुआ

न्यूज़ग्राम डेस्क

Indian Currency: भारत के इतिहास में कई ऐसी घटनाएं है जिसे जानकर हैरानी होती है आज हम ऐसी ही एक घटना के बारे में आपको बताएंगे। दरहसल, 08 मई 1997 के दिन एक खास फैसला लिया गया, जो पहली बार हुआ। जिसमें सरकार ने भारतीय करेंसी को विदेश में छपवाने का फैसला किया था। इसके बाद से सालों तक भारतीय करेंसी बाहर से छपकर आती रही। 1997 में भारतीय सरकार को लगा की देश की आबादी और आर्थिक गतिविधियां तेजी से बढ़ गई हैं। इसके समाधान के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवाह के लिए ज्यादा करेंसी की जरूरत पड़ेगी और भारत के दोनों करेंसी छापाखाने बढ़ती मांग को पूरा करने में पर्याप्त नहीं थे।

1996 में एचडी देवेगौडा प्रधानमंत्री बने। देवेगौडा ने इन्हीं सब कारणों से इंडियन करेंसी को बाहर छापने का फैसला लिया। आजादी के बाद ये पहला और आखिरी मौका था जब भारतीय करेंसी विदेश में छपने की नौबत आई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से मंत्रणा करने के बाद केंद्र सरकार ने अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय कंपनियों से भारतीय नोटों को छपवाने का फैसला किया ये बहुत मंहगा सौदा था। भारत को इसके लिए कई हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़े।

1996 में एचडी देवेगौडा प्रधानमंत्री बने। देवेगौडा ने इन्हीं सब कारणों से इंडियन करेंसी को बाहर छापने का फैसला लिया। (Wikimedia Commons)

आलोचना के बाद खोली गई करेंसी छापाखाना

सरकार ने 360 करोड़ करेंसी बाहर छपवाने का फैसला किया था जिसमें 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया था। देश में इस बात के बाद इसकी बहुत आलोचना हुई थी। इसके बाद बाहर नोट छपवाने का काम जल्दी ही खत्म कर दिया गया। इस समाधान के लिए भारत सरकार ने दो नई करेंसी प्रेस खोलने का फैसला किया। उन्होंने 1999 में मैसूर में करेंसी छापाखाना खोला गया तो वर्ष 2000 में बंगाल में। इससे भारत में नोट छापने की क्षमता बढ़ गई।

कहां से आता था करेंसी का कागज

करेंसी के कागजों की मांग पूरी करने के लिए देश में ही 1968 में होशंगाबाद में पेपर सेक्यूरिटी पेपर मिल खोली गई, जिसकी क्षमता 2800 मीट्रिक टन है, लेकिन इसके बावजूद भी इतनी क्षमता हमारे कुल करेंसी उत्पादन की मांग को पूरा नहीं पाती, लिहाजा हमें बाकी कागज ब्रिटेन, जापान और जर्मनी से मंगाना पड़ता था। परंतु बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए होशंगाबाद में नई प्रोडक्शन लाइन डाली गई। मैसूर में दूसरे छापेखाने ने काम शुरू किया। अब करेंसी के लिए कागज की सारी मांग यहीं से पूरी होती है।

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