Indian Royals Stories : जब त्रावणकोर रियासत का राजा नाबालिग थे तब उनके जगह महारानी सेथु लक्ष्मीबाई उनकी ओर से सत्ता संभालती थीं। (Wikimedia Commons) 
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महारानी को एक दीवान से हो गया था प्यार, उनके प्यार के चर्चे वायसराय हाउस तक भी पहुंची

वो महारानी से मिले और उन पर मोहित हो गए, चूंकि अंग्रेज अधिकारियों से सीपी रामास्वामी के रिश्ते बहुत अच्छे थे, इस कारण उन्होंने ऐसा प्रबंध कराया कि वो राज्य में दीवान बनकर आ गए।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Indian Royals Stories : आजादी से पहले दक्षिण में एक त्रावणकोर रियासत थी, जो बहुत विकसित थी। आजादी के उपरांत जब भारत में इस बड़ी रियासत के विलय की बात आई तो इसने विलय से इंकार कर दिया। यहां का राजा अपने मंत्री सर सीपी रामास्वामी की बात मानता था। सर रामास्वामी के एक- दो फैसले बहुत विवादास्पद भी रहे थे, जिसे लेकर उनकी शिकायत ब्रिटेन तक पहुंची थी। रामास्वामी से वहा की महारानी को प्रेम हो गया था। दीवान जर्मनीदास ने अपनी किताब “महारानी” में विस्तार से बताया है। आइए जानते है पूरी कहानी।

जर्मनीदास लिखते हैं कि जब त्रावणकोर रियासत का राजा नाबालिग थे तब उनके जगह महारानी सेथु लक्ष्मीबाई उनकी ओर से सत्ता संभालती थीं। उस जमाने में इसे रिजेंट कहा जाता था। राज्य के मंत्री सर सीपी रामास्वामी एक बहुत ही प्रभावशाली व्यक्ति थे। यहां तक कि ये भी चर्चाएं थीं कि वो फोन से वायसराय विलिंगटन की पत्नी से भी बहुत सारी प्रेम वार्ताएं करते हैं। रामास्वामी पेशे से एक वकील थे।

महारानी सेथु लक्ष्मीबाई की सुंदरता के चर्चे हर तरफ थे जब सीपी रामास्वामी पहली बार त्रावणकोर आए तो वो महारानी से मिले और उन पर मोहित हो गए। (Wikimedia Commons)

बहुत खुबसूरत थी महारानी

महारानी सेथु लक्ष्मीबाई की सुंदरता के चर्चे हर तरफ थे जब सीपी रामास्वामी पहली बार त्रावणकोर आए तो वो महारानी से मिले और उन पर मोहित हो गए, चूंकि अंग्रेज अधिकारियों से सीपी रामास्वामी के रिश्ते बहुत अच्छे थे, इस कारण उन्होंने ऐसा प्रबंध कराया कि वो राज्य में दीवान बनकर आ गए। मंत्री बनकर आने के बाद रामास्वामी ने विधवा रानी से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दिए। महारानी को भी अच्छा लगने लगा उनका साथ और दोनों के बीच बहुत जल्दी प्रेम संबंध बन गए उनकी ये प्रेम कहानी रियासत में सभी के ज़ुबान पर था।

कैसे त्रावणकोर भारत में मिल गया?

आजादी के दौरान जब सीपी रामास्वामी ने युवा महाराजा को अपने असर में लेकर त्रावणकोर को स्वतंत्र घोषित कर दिया तो वहां की जनता क्षुब्ध हो गई, इस दौरान रामास्वामी पर एक व्यक्ति ने चाकू से जानलेवा हमला किया। जिससे गहरे घाव आ गए इसके तुरंत बाद त्रावणकोर भारत में मिल गया। त्रावणकोर के विलय के बाद महारानी मद्रास चली गईं। करीब 25 सालों तक महारानी वहीं रही। 1985 में वहीं उनका निधन हो गया। त्रावनकोर ने महारानी के राज के दौरान काफी तरक्की की, जिसमें रामास्वामी का भी हाथ था। हालांकि भारत की आजादी के बाद सीपी रामास्वामी लंदन चले गए। वहीं कई देशों के राष्ट्रप्रमुखों से उनके अच्छे रिश्ते थे।लंदन में ही 1966 में उनका निधन हो गया।

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