नेपाल (Nepal) की राजधानी काठमांडू (Kathmandu) में रहने वाली एक 21 वर्षी की कुनसांग कभी सोच भी नहीं सकती थीं कि उनकी 17 साल की बहन दोलमा, एक ऐसे खतरनाक जाल में फंस चुकी है, जिसे सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए। यह कहानी किसी फिल्म का सस्पेंस नहीं, बल्कि नेपाल में चल रहे एक असली और घिनौने अपराध की हकीकत है, नाबालिग़ लड़कियों (Minor girls) के अंडाणु बेचने (Egg trafficking) का काला कारोबार।
एक सोशल मीडिया पोस्ट से खुला राज़
एक दिन कुनसांग ने अपनी बहन दोलमा का मोबाइल और सोशल मीडिया अकाउंट देखने का मन बनाया। वह अक्सर बहन की ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखती थीं। दोलमा के स्नैपचैट पर उन्हें एक तस्वीर दिखी एक हाथ में ड्रिप लगी हुई थी। यह नज़ारा बस एक सेकंड का था, लेकिन कुनसांग के दिल में सवाल उठा, ये क्या हो रहा है? अपनी बहन के बारे में जानने की इच्छा की वजह से उन्होंने और खोजबीन की। इंस्टाग्राम मैसेज और चैट में "एग डोनेशन" और "क्लीनिक विज़िट" जैसे शब्द दिखाई दिए। एक लड़की, जो खुद को एजेंट बता रही थी, उनकी बहन और उसकी दोस्त जैस्मिन से बातें कर रही थी। यही वह पल था, जब कुनसांग को समझ आया कि मामला गंभीर है।
इंटरनेट पर रिसर्च के बाद कुनसांग को पता चला कि दोलमा और जैस्मिन, दोनों को बिचौलियों ने पैसे के लालच में अंडाणु बेचने (Egg trafficking) के लिए तैयार कर लिया था। ये बिचौलिए आईवीएफ (In Vitro Fertilization) क्लीनिक से जुड़े थे, जहां अंडाणु और शुक्राणु के जरिए बच्चे पैदा करने की प्रक्रिया होती है। जो दंपती खुद से बच्चा पैदा करने में असमर्थ होते हैं, वो इन क्लीनिकों में दान किए गए अंडाणुओं का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन नेपाल (Nepal) में यह कारोबार बिना कड़े कानून और निगरानी के चल रहा था, जिससे नाबालिग़ लड़कियों (Minor girls) का शोषण आसान हो गया था।
कैसे पहुंचा यह मामला पुलिस तक
दोलमा और जैस्मिन दोनों नाबालिग़ थीं, मात्र 17 साल की। एजेंट ने उनकी उम्र 22 साल बताकर उन्हें क्लीनिक ले गए और उनके नकली नामों से रजिस्टर किया। जब दोनों परिवारों को सच्चाई पता चली, तो उन्होंने एजेंट से सीधी बात की और फिर पुलिस के पास गए। दोलमा के पिता नॉरबू बताते हैं, “क्लीनिक में डॉक्टर ने कहा कि हमारे पास पूछताछ का कानूनी आधार नहीं है। तब हम मानव अंग तस्करी ब्यूरो पहुंचे। वहां के अधिकारियों ने भी कहा कि यह उनके लिए नया मामला है।” मामला जल्द ही मीडिया में पहुंचा और पूरे देश में आक्रोश फैल गया। इस घटना ने नेपाल में फर्टिलिटी क्लीनिकों पर निगरानी की कमी और कानून में खामियों को उजागर कर दिया।
नेपाल (Nepal) पुलिस के सीआईबी प्रमुख चंद्र कुबर खापुंग के मुताबिक, बिचौलियों को हर अंडाणु निकालने पर करीब 330 डॉलर मिलते थे, जिसमें से लड़कियों को बहुत ही कम पैसा दिया जाता था। अंडाणु निकालने की प्रक्रिया दर्दनाक होती है। पहले 10 दिन तक लड़कियों (Minor girls) को हार्मोन इंजेक्शन दिए जाते है, ताकि अंडाणु पूरी तरह विकसित हो जाएं। फिर बिना पिता माता की अनुमति के सर्जरी करके अंडाणु निकाले जाते है। यह प्रक्रिया न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक रूप से भी बेहद पीड़ादायक होती है और गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करती है। पुलिस को यह भी पता चला कि अस्पताल के रिकॉर्ड में फर्जी नाम और उम्र लिखी जाती थी। कुछ लड़कियां, जिन्हें पहले अंडाणु बेचने के लिए फुसलाया गया था, बाद में खुद एजेंट बन गईं और दूसरी लड़कियों को इस जाल में फंसाने लगीं।
सख्त कानून की जरूरत
इस मामले में तीन डॉक्टरों समेत पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन जांच पूरी होने तक उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया। नेपाल में अंडाणु या शुक्राणु दान करने की कोई तय आयु सीमा नहीं है। पुलिस यह मामला 2018 के बच्चों से जुड़े कानून के तहत चला रही है, जिसमें अधिकतम तीन साल की कैद और लगभग 550 डॉलर का जुर्माना है। लेकिन यह सजा इस बड़े अपराध के मुकाबले बेहद काम मानी जा रही है।
नेपाल (Nepal) में स्वास्थ्य मंत्रालय से मान्यता प्राप्त या उसका इंतजार कर रहे 50 से ज्यादा फर्टिलिटी क्लीनिक हैं। कई बिना लाइसेंस के भी काम कर रहे हैं। 2020 में आईवीएफ को विशेष चिकित्सा सेवा के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन लाइसेंस नवीनीकरण और मानकों का पालन सख्ती से नहीं हो रहा है। उसका नतीजा है देश में यह कारोबार बिना रोक-टोक चल रहा है और भारी मुनाफा कमा रहा है।
काठमांडू (Kathmandu) के ‘परोपकार मैटरनिटी एंड वूमेन हॉस्पिटल’ के निदेशक डॉक्टर श्री प्रसाद अधिकारी कहते हैं, की “हमारे पास कोई कानून नहीं है जो तय करे कि अंडाणु या शुक्राणु दान में क्या प्रक्रिया होनी चाहिए।” वो चाहते हैं कि केवल वयस्क, जो पूरी तरह मेडिकल जांच पास कर चुके हों, उन्हें ही दान की अनुमति हो। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर भोला रिजाल, जिन्होंने 2004 में नेपाल की पहली आईवीएफ डिलीवरी करवाई थी, वो लंबे समय से कड़े कानून की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है, “नीतियां ऐसी होनी चाहिए जो वंचित और ज़रूरतमंद लोगों तक सेवा पहुंचाएं, लेकिन शोषण न होने दें।”
सरकार की प्रतिक्रिया
नेपाल के स्वास्थ्य मंत्री प्रदीप पौडेल ने माना कि इस घटना ने स्वास्थ्य क्षेत्र में शासन की खामियां उजागर की हैं। उन्होंने कहा कि नए दिशानिर्देश जल्द लागू होंगे और दान की न्यूनतम उम्र तय करने में शादी की कानूनी उम्र (20 साल) को ध्यान में रखा जाएगा।
भारत में 23 से 35 साल की महिलाएं ही अंडाणु दान कर सकती हैं। एक महिला केवल एक बार दान कर सकती है। बिचौलियों के जरिए दान करवाना अपराध है, जिसमें 8 साल की जेल और 23,000 डॉलर तक का जुर्माना हो सकता है। ब्रिटेन में केवल 36 साल से कम उम्र की महिलाओं से अंडाणु लिए जाते हैं। पैसे या लाभ के बदले दान देना अपराध है। अमेरिका में 21 से 34 साल की स्वस्थ महिलाएं ही अंडाणु दान कर सकती हैं, और आनुवंशिक बीमारियों की जांच अनिवार्य है।
पीड़ित परिवारों का दर्द
दोलमा के पिता नॉरबू कहते हैं, “हम नहीं चाहते कि किसी और के साथ ऐसा हो। मेरी पत्नी का ब्लड प्रेशर बढ़ गया है, बेटी तनाव में है और डॉक्टर डिप्रेशन का खतरा बता रहे हैं।” कुनसांग का कहना है, “यह नाबालिग़ लड़कियों (Minor girls) के साथ सबसे अनैतिक अपराध है। यह सचमुच किसी फिल्म की कहानी जैसा लगता है, लेकिन यह असलियत है। दोषियों को जेल में डालना चाहिए।”
निष्कर्ष
नेपाल (Nepal) का यह मामला सिर्फ एक देश की कहानी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चेतावनी है। फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के नाम पर चल रहे इस गंदे धंधे में अगर कानून, निगरानी और नैतिकता नहीं होगी, तो नाबालिग़ (Minor girls) और कमजोर वर्ग हमेशा शोषण का शिकार बनेंगे। यह कहानी बताती है कि सोशल मीडिया की एक छोटी-सी तस्वीर भी कभी-कभी एक बड़े अपराध का पर्दाफाश कर सकती है, और सतर्कता ही सबसे बड़ा हथियार है। [Rh/PS]