भारत एक ऐसा देश है, जिसकी पहचान सिर्फ उसकी संस्कृति, त्योहारों और भाषाओं से नहीं, बल्कि उसके शहरों के नामों से भी होती है। (Sora AI) 
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शहरों के नाम का राज: ‘पुर’, ‘आबाद’ या ‘बाद’, ‘गढ़’ और ‘गंज’ आखिर क्यों जुड़े होते हैं ?

भारत के शहरों के नामों में जुड़े ‘पुर’ (Pur), ‘आबाद’ (Aabad) या ‘बाद’, ‘गढ़’ (Garh) और ‘गंज’ (Ganj) जैसे शब्द सिर्फ नाम नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और भूगोल की निशानी हैं। ये प्रत्यय वैदिक युग, मुगलकाल, किलों की परंपरा और प्राचीन बाजारों की कहानियां समेटे हुए हैं, जो हर शहर की अलग पहचान बताते हैं।

न्यूज़ग्राम डेस्क

भारत एक ऐसा देश है, जिसकी पहचान सिर्फ उसकी संस्कृति, त्योहारों और भाषाओं से नहीं, बल्कि उसके शहरों के नामों से भी होती है। आपने कानपुर, हैदराबाद, अलीगढ़, जयपुर, इलाहाबाद, मुरादाबाद, राजकोट, दरियागंज जैसे नाम जरूर सुने होंगे। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इन नामों के आखिर में ‘पुर’ (Pur), ‘आबाद’ (Aabad), ‘गढ़’ (Garh) या ‘गंज’ (Ganj) क्यों जुड़ा हुआ है ? ये शब्द सिर्फ नाम का हिस्सा नहीं, बल्कि इतिहास, भाषा और संस्कृति के निशान हैं। आइए, इन्हें एक-एक करके समझते हैं।

‘पुर’ – वैदिक युग से आज तक

भारत के कई शहरों के नाम में ‘पुर’ जुड़ा हुआ है, जैसे रायपुर, कानपुर, गोरखपुर, नागपुर, जयपुर, उदयपुर आदि। ‘पुर’ (Pur),शब्द की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह संस्कृत से निकला है और इसका जिक्र ऋग्वेद में भी मिलता है। वैदिक काल में ‘पुर’ या ‘पुरा’ का अर्थ था – शहर, नगर या किला। उस समय जब कोई राजा नई बस्ती या किले की स्थापना करता था, तो उसके नाम में ‘पुर’ जोड़ दिया जाता था। उदाहरण के लिए, जयपुर का नाम राजा जयसिंह, उदयपुर का नाम उदयसिंह और ग्वालियर का पुराना नाम ग्वालिपुर से जुड़ा है।

दिलचस्प बात यह है कि ‘पुर’ (Pur),शब्द का असर सिर्फ संस्कृत या भारत तक सीमित नहीं रहा। इसका असर अरबी भाषा में भी देखा गया, और यह शब्द अफगानिस्तान, ईरान और दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में भी शहरों के नाम में पाया जाता है। आजकल ‘पुरा’ का उपयोग कई जगह मोहल्लों या बस्तियों के नाम में भी देखने को मिलता है।

‘पुर’ शब्द वैदिक युग से चला आ रहा है, जिसका अर्थ है शहर या किला। (Sora AI)

‘आबाद’ या ‘बाद’ – पानी और खुशहाली का प्रतीक

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई शहरों के नाम ‘आबाद’ (Aabad) या ‘बाद’ पर खत्म होते हैं। जैसे – हैदराबाद, अहमदाबाद, फैजाबाद, इलाहाबाद, मुरादाबाद, इस्लामाबाद, जलालाबाद। ‘आबाद’ शब्द फारसी से आया है। फारसी में ‘आब’ का मतलब पानी होता है, और ‘आबाद’ (Aabad) का मतलब है – ऐसी जगह जहां पानी मौजूद हो, फसल उगाई जा सके और लोग बस सकें।

प्राचीन समय में पानी के स्रोत के पास बसाहट करना जरूरी था, क्योंकि पानी जीवन और खेती, दोनों के लिए जरूरी था। उदाहरण के लिए, मुरादाबाद रामगंगा नदी के किनारे बसा है, इलाहाबाद गंगा-यमुना के संगम पर और गाजियाबाद हिंडन नदी के पास।इतिहासकार बताते हैं कि मुगलकाल में जब किसी नई बस्ती या शहर का नाम रखा जाता था, तो किसी राजा, बादशाह या अमीर के नाम के साथ ‘आबाद’ जोड़ दिया जाता था। इससे शहर को पहचान मिलती थी और शासक की छाप भी बनी रहती थी। जैसे फिरोजाबाद का नाम मुगल शासक फिरोज शाह के नाम पर पड़ा।

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‘गढ़’ (Garh) – शक्ति और सुरक्षा की निशानी

‘गढ़’ (Garh) शब्द का अर्थ है, किला। भारतीय इतिहास में किले सिर्फ रहने की जगह नहीं थे, बल्कि ताकत और शासन के प्रतीक थे। राजपूत, मुगल और अन्य शासकों ने अपने साम्राज्य की रक्षा और शक्ति प्रदर्शन के लिए किलों का निर्माण किया। जिन शहरों में बड़े या महत्वपूर्ण किले बने, उनके नाम में ‘गढ़’ (Garh) जुड़ गया। उदाहरण के लिए अलीगढ़, आजमगढ़, रामगढ़। अलीगढ़ का नाम कई बार बदला गया पहले ‘कोल’, फिर जाट राजा सूरजमल के समय ‘रामगढ़’, और बाद में नजफ खान के कब्जे के बाद ‘अलीगढ़’। इस तरह ‘गढ़’ सिर्फ एक किले का संकेत नहीं, बल्कि सत्ता के बदलाव की कहानी भी सुनाता है।

‘आबाद’ फारसी भाषा से आया, जो पानी और रहने योग्य स्थान का प्रतीक है। (Sora AI)

‘नगर’, ‘कोट’, ‘प्रस्थ’, ‘नाथ’ और अन्य नाम

भारत में शहरों के नाम में सिर्फ ‘पुर’, ‘आबाद’ और ‘गढ़’ ही नहीं, बल्कि और भी कई शब्द पाए जाते हैं, जिनका अपना अपना महत्व होता है। नगर, संस्कृत में शहर के लिए प्रयोग होता है। जैसे – श्रीनगर, गांधीनगर, रामनगर। कोट/कोड, किले के लिए प्रयोग होता है । जैसे – राजकोट, पठानकोट, कोजीकोड। पत/प्रस्थ, जमीन या स्थान के लिए प्रयोग होता है। जैसे – पानीपत, सोनीपत, इंद्रप्रस्थ। नाथ, किसी धार्मिक स्थान या भगवान के नाम पर प्रयोग होता है । जैसे – बद्रीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ। एश्वर/इश्वर/एश्वरम, भगवान के लिए प्रयोग होता है। जैसे – रामेश्वरम, भुवनेश्वर, बागेश्वर। मेर, पहाड़ या ऊंचा स्थान के लिए प्रयोग होता है। जैसे – अजमेर, बाड़मेर, जैसलमेर।

‘गंज’ (Ganj), बाजार और भीड़ का प्रतीक

‘गंज’ (Ganj) एक और दिलचस्प प्रत्यय है, जो खासकर बाजारों और भीड़-भाड़ वाले इलाकों के नाम में मिलता है। जैसे – हजरतगंज (लखनऊ), दरियागंज (दिल्ली), मलकागंज (दिल्ली)। इस शब्द की जड़ें इंडो-ईरानियन भाषाओं में हैं, खासकर मीडियन भाषा में, जहां ‘गंज’ का मतलब खजाना रखने की जगह होता था। संस्कृत में ‘गंज’ (Ganj) शब्द ‘गज्ज’ से निकला, और बाद में इसका मतलब बदलकर बाजार या मंडी हो गया।

पुराने समय में जिन जगहों पर बाजार लगते थे, वहां शोर और भीड़-भाड़ होती थी, और उन इलाकों को ‘गंज’ (Ganj) कहा जाने लगा। उदाहरण के लिए – दिल्ली का दरियागंज, जो पहले यमुना नदी के किनारे लगने वाला बाजार था, या डिप्टीगंज, जहां आज भी बर्तनों का बड़ा बाजार लगता है।

‘गढ़’ शक्ति और किलेबंदी की पहचान है, जिसे शासकों ने अपनाया। (Sora AI)

शहरों के नाम सिर्फ जगह का परिचय नहीं देते, बल्कि वहां के इतिहास, भूगोल, भाषा और शासन की झलक भी दिखाते हैं। ‘पुर’ हमें वैदिक युग और संस्कृत की परंपरा से जोड़ता है, ‘आबाद’ मुगलकाल और फारसी संस्कृति की याद दिलाता है, ‘गढ़’ शक्ति और किलों के दौर की कहानी सुनाता है, जबकि ‘गंज’ (Ganj) हमें पुराने बाजारों और व्यापार की रौनक दिखाता है।

भारत के शहरों के नाम दरअसल समय की एक किताब हैं, जिसमें हर प्रत्यय (सफिक्स) एक अध्याय है। अगली बार जब आप किसी शहर का नाम सुनें, तो उसके आखिरी हिस्से को गौर से देखिए, शायद वह आपको उस जगह के अतीत की अनकही कहानी सुना दे। [Rh/PS]

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