हमारे समाज में किन्नरों (Transgender) को लेकर हमेशा से एक अजीब-सा डर और रहस्य जुड़ा रहा है।  Sora Ai
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किन्नरों के अंतिम संस्कार की अनकही कहानी: क्यों मानी जाती है अजीब?

हमारे समाज में किन्नरों को लेकर हमेशा से एक अजीब-सा डर और रहस्य जुड़ा रहा है। लोग कहते हैं कि किन्नरों का आशीर्वाद जीवन को खुशहाल बना सकता है और उनका श्राप बर्बादी तक पहुँचा सकता है। यही वजह है कि लोग उनसे मिलने पर खुशी से पैसे दे देते हैं, लेकिन भीतर ही भीतर उनसे दूरी भी बनाए रखते हैं।

न्यूज़ग्राम डेस्क

हमारे समाज में किन्नरों (Transgender) को लेकर हमेशा से एक अजीब-सा डर और रहस्य जुड़ा रहा है। लोग कहते हैं कि किन्नरों (Transgender's Blessings) का आशीर्वाद जीवन को खुशहाल बना सकता है और उनका श्राप बर्बादी तक पहुँचा सकता है। यही वजह है कि लोग उनसे मिलने पर खुशी से पैसे दे देते हैं, लेकिन भीतर ही भीतर उनसे दूरी भी बनाए रखते हैं। पर यह डर केवल उनकी तालियों और तेवरों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी ज़िंदगी और मौत की परंपराओं में भी गहराई से जुड़ा है। सबसे रहस्यमय बात यह है कि जब कोई किन्नर मरता है तो उसका अंतिम संस्कार आम लोगों की तरह नहीं किया जाता। कहा जाता है कि किन्नरों का दाह-संस्कार (Cremation of Transgender People) रात के अंधेरे में गुप्त तरीके से किया जाता है, ताकि कोई बाहरी व्यक्ति उसे देख न सके। कई मान्यताएँ यह भी कहती हैं कि मरने के बाद भी उनकी आत्मा लोगों को प्रभावित कर सकती है। यही कारण है कि इनके अंतिम संस्कार को लेकर समाज में तरह-तरह की कहानियाँ और डर पनपते हैं। किन्नरों के बारे में जितनी जिज्ञासा है, उतना ही रहस्य भी। सवाल यह है कि क्या यह डर सच है, या फिर सिर्फ सदियों पुराने अंधविश्वासों की गूंज?

क्यों डरते हैं लोग किन्नर समाज से?

किन्नर (Transgender) भी हमारे जैसे ही इंसान हैं हँसते हैं, रोते हैं, सपने देखते हैं और रिश्तों को जीते हैं।

किन्नर (Transgender) भी हमारे जैसे ही इंसान हैं हँसते हैं, रोते हैं, सपने देखते हैं और रिश्तों को जीते हैं। लेकिन समाज ने उन्हें हमेशा "अलग" मानकर दूरी बनाई। यही दूरी समय के साथ डर और रहस्य में बदल गई। लोग मानते हैं कि किन्नरों (Transgender) का आशीर्वाद बहुत शुभ होता है और उनका श्राप भारी पड़ सकता है। यही कारण है कि शादियों, बच्चे के जन्म या किसी बड़े मौके पर लोग उनके आशीर्वाद के लिए उन्हें बुलाते हैं और श्रद्धा से उपहार देते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या वास्तव में किन्नरों में कोई अलौकिक शक्ति है, या यह सब केवल पीढ़ियों से चली आ रही मान्यताएँ हैं? सच तो यह है कि यह डर समाज की बनाई हुई सोच है। चूँकि किन्नरों का जीवन बाकी लोगों से अलग तरीके से गुज़रता है और उनकी बोली-चाली व रहन-सहन सामान्य से हटकर होती है, इसलिए लोग उन्हें रहस्यमयी मानने लगते हैं। असल में, लोग किन्नरों से नहीं, बल्कि "अलगपन" से डरते हैं। वे समझ नहीं पाते कि जो उनके जैसे नहीं दिखते या रहते, उनसे कैसे पेश आएँ। यही वजह है कि किन्नर समाज आज भी सामान्य होते हुए भी “असामान्य” समझा जाता है।

किन्नरों के अंतिम संस्कार की रहस्यमयी परंपराएँ

किन्नरों (Transgender) के जीवन की तरह उनकी मृत्यु और अंतिम संस्कार से जुड़ी परंपराएँ भी रहस्य और मान्यताओं से घिरी हुई हैं।

किन्नरों (Transgender) के जीवन की तरह उनकी मृत्यु और अंतिम संस्कार से जुड़ी परंपराएँ भी रहस्य और मान्यताओं से घिरी हुई हैं। आमतौर पर जब किसी साधारण इंसान की मृत्यु होती है तो उसके परिवारजन खुलेआम श्मशान या कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार करते हैं, लेकिन किन्नरों के साथ ऐसा नहीं होता। कहा जाता है कि उनके अंतिम संस्कार गुप्त रूप से रात के अंधेरे में किए जाते हैं। मान्यता है कि अगर किसी आम व्यक्ति ने किन्नर का शव देख लिया तो उसे अशुभ माना जाता है और उसके जीवन में संकट आ सकता है। इसी कारण, समाज से अलग-थलग रहकर किन्नर अपने साथी की अंतिम यात्रा पूरी करते हैं। कई जगहों पर यह भी माना जाता है कि उनके शव को जलाने के बजाय दफनाया जाता है ताकि उनकी आत्मा भटककर किसी को हानि न पहुँचा सके। कुछ मान्यताओं के अनुसार, किन्नरों की आत्मा बेहद शक्तिशाली मानी जाती है, इसलिए उनके अंतिम संस्कार में विशेष मंत्रोच्चार और गोपनीय रस्में की जाती हैं। यही कारण है कि बहुत कम लोग इन परंपराओं को अपनी आँखों से देख पाते हैं। दरअसल, ये मान्यताएँ डर से ज्यादा समाज की अज्ञानता और रहस्यप्रियता को दर्शाती हैं।

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आज के समय में किन्नर समाज को मिली मान्यताएँ और सरकारी पहल

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में किन्नरों को “थर्ड जेंडर” (“Third Gender”) के रूप में मान्यता दी

समय के साथ समाज और सरकार दोनों ने किन्नर समाज की स्थिति सुधारने के लिए कई कदम उठाए हैं। पहले जहाँ उन्हें केवल ताने और अलगाव झेलना पड़ता था, वहीं अब उन्हें संवैधानिक अधिकार और सामाजिक पहचान भी मिलने लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में किन्नरों को “थर्ड जेंडर” (“Third Gender”) के रूप में मान्यता दी, जिससे उन्हें शिक्षा, नौकरी और सरकारी योजनाओं में आरक्षण का लाभ मिलना शुरू हुआ। आज कई राज्यों में किन्नरों को पेंशन योजनाओं, स्वास्थ्य बीमा और स्वरोज़गार योजनाओं से जोड़ा गया है। चुनावों में भी उन्हें मतदान का अधिकार तो पहले से था, लेकिन अब किन्नर खुद प्रत्याशी बनकर लोकतंत्र का हिस्सा बन रहे हैं। समाज में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन उनकी कला, नृत्य और आशीर्वाद देने की परंपरा को सम्मान मिलने लगा है। हालांकि भेदभाव अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ, मगर बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ने से किन्नर समाज अपने पैरों पर खड़ा हो रहा है। यह साबित करता है कि अगर अवसर और सम्मान मिले, तो किन्नर भी समाज के हर क्षेत्र में योगदान दे सकते हैं। [Rh/SP]

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