एक ऐसी महिला जिन्होंने माउंट एवरेस्ट पर पांच बार चढ़ाई की, जिसने पांच दिनों के भीतर दो बार एवरेस्ट की शिखर को छूकर सबसे तेज़ दोहरी चढ़ाई का कीर्तिमान बनाया। उनके जन्मदिन पर यह कहानी उस साहस, संकल्प और निरंतरता की कहानी है, जो हर बार ऊंचाइयों से भी ऊंची रही, जिसने हर बार ऊंचाइयों को चुनौती दी और असंभव को संभव बना दिया।
अंशु जमसेनपा (Anshu Jamsenpa) को पद्म श्री (खेल श्रेणी) से सम्मानित किया गया। वे 119 पुरस्कार विजेताओं में शामिल रहीं, जिनमें सात पद्म विभूषण और 10 पद्म भूषण थे और अरुणाचल प्रदेश से अकेली पद्म पुरस्कार विजेता रहीं। इसके साथ ही राज्य से पद्म पुरस्कार पाने वालों की संख्या नौ हो गई।
एवरेस्ट (Everest) के शिखर तक पहुंचने का उनका सफर कई ऐतिहासिक पड़ावों से होकर गुजरा। अंशु जमसेनपा ने पहली बार 12 मई 2011 को माउंट एवरेस्ट फतह किया और इसके ठीक नौ दिन बाद 21 मई 2011 को दूसरी बार शिखर पर पहुंचीं। वर्ष 2013 में उन्होंने उत्तर पूर्वी भारत एवरेस्ट अभियान की सदस्य के रूप में, सुरजीत सिंह लीशंग के नेतृत्व में तीसरी बार एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी की। वर्ष 2017 उनके करियर का स्वर्णिम अध्याय साबित हुआ, जब वह एक ही सीजन में दो बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली विश्व की पहली महिला बनीं। यही नहीं, उन्होंने यह सफर मात्र पांच दिनों के भीतर पूरा किया, जो किसी महिला द्वारा सबसे ऊंची चोटी पर सबसे तेज दोहरी चढ़ाई का विश्व रिकॉर्ड है। यह उनकी पांचवीं सफल चढ़ाई थी और इसके साथ ही वह सबसे अधिक बार एवरेस्ट फतह करने वाली भारतीय महिला बन गईं।
अंशु जमसेनपा ने पर्वतारोहण की शुरुआत वर्ष 2009 में की थी। अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) की निवासी अंशु के जीवन की जड़ें अनुशासन और सेवा से जुड़ी हैं। उनके पिता इंडो-तिब्बत बॉर्डर पर पुलिस ऑफिसर रहे हैं, जबकि उनकी मां नर्स हैं। पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ उन्होंने अपने सपनों को भी समान मजबूती से संभाला। वह दो बच्चों की मां हैं और उनके पति त्सेरिंग वांग हैं। अंशु जमसेनपा स्वच्छ भारत अभियान की ब्रांड एंबेसडर भी रही हैं, जो समाज के प्रति उनके दायित्व को दर्शाता है।
उनकी ऐतिहासिक चढ़ाइयों में कई यादगार क्षण शामिल हैं। 19 मई को उन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की और रविवार सुबह 9 बजकर 15 मिनट पर शिखर तक पहुंचीं। यह चढ़ाई उन्होंने नेपाल के पर्वतारोहक फूरी शेरपा के साथ पूरी की। वह पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने पांचवीं बार एवरेस्ट फतह किया। इससे पहले, 2011 में उन्होंने दस दिनों के भीतर दो बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई कर सबको चौंका दिया था। इसके बाद, उन्होंने नेपाल की ओर से एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की और 18 मई 2013 को तीसरी बार इस सर्वोच्च शिखर पर पहुंचीं। लगातार दो बार एवरेस्ट पर चढ़ने जाने वाले पर्वतारोहियों को गुवाहाटी में दलाई लामा ने झंडी दिखाकर रवाना किया था, जो इस अभियान की ऐतिहासिक स्मृति बन गया।
अंशु जमसेनपा की उपलब्धियों को देश और दुनिया ने अनेक सम्मानों से नवाजा है। उन्हें 25 सितंबर 2018 को तेनजिंग नोरे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार प्रदान किया गया। इससे पहले, 2 जून 2012 को फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने उन्हें वुमन अचीवर ऑफ द ईयर घोषित किया। 31 जनवरी 2017 को गोएपी द्वारा उन्हें टूरिज्म आइकॉन ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही अरुणाचल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडीज ने उन्हें पीएचडी की उपाधि से सम्मानित किया। वर्ष 2018 में उन्हें तेनजिंग नॉर्गे नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड से भी नवाजा गया।
अंशु जमसेनपा का जीवन इस बात का प्रमाण है कि संकल्प, साहस और निरंतर प्रयास से कोई भी शिखर अजेय नहीं रहता। एवरेस्ट की ऊंचाई से उन्होंने दुनिया को यह संदेश दिया कि हौसले अगर बुलंद हों, तो इतिहास खुद रास्ता बना देता है।
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