3 दिसंबर 1884 के दिन देश के प्रथम राष्ट्रपति और भारत रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद जी का जन्म बिहार (Bihar) के सीवान जिले में हुआ। उन्होंने देश में 3 बार राष्ट्रपति की उपाधि संभाली और भारतीय लोकतंत्र को नयी दिशा दिखाई। वह अपने सादे व्यक्तित्व और मधुरभाषी होने के लिए जाने जाते थे। उनके सादगी के कायल आम से ख़ास सभी थे।
कल उनकी जयंती पर देश के महान सपूत को याद कर देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेगा और सभी उनके आदर्शो को जीवन में उतारने का संकल्प करेंगे।
हालांकि इस उत्साह के बीच कुछ कड़वी सच्चाई भी है जो अक्सर लोग देखना भूल जाते है।
सिवान जिले के जीरादेई गांव में राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) का जन्म हुआ था। यहाँ के लोग अभी भी उन्हें बाबू कहकर बुलाते है। गांव के करीब रेलवे स्टेशन तो है मगर यहाँ आज भी बड़ी ट्रेनें नहीं रूकती। कई बार किये गए ग्रामीणों के आंदोलनों के बाद भी समस्या जस की तस है।
राजेंद्र प्रसाद, जिन्होंने खुद अर्थशास्त्र (Economics) में MA किया था और जिनके पिता फ़ारसी और संस्कृत के विद्वान थे उनके गांव में आज भी एक लाइब्रेरी नहीं है। प्रशासन की ओर से लाइब्रेरी खोलने की बात ज़रूर कही गयी और ग्रामीणों ने इसके लिए अपनी ज़मीन भी दान में दी मगर इस दिशा में आगे कोई कदम नहीं उठाया गया।
इतना ही नहीं, राजेंद्र प्रसाद के पैतृक मकान को राज्य सरकार द्वारा पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा भी हुई थी मगर हुआ कुछ नहीं। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में बिजली, पानी और सड़क के साथ स्वास्थ्य व्यवस्था की भी कमी है। जीरादेई के लोगो को शिक्षा और चिकित्सा के लिए आज भी जिला मुख्यालय जाना पड़ता है।
आपको बता दे कि इस गांव को बीजेपी (BJP) के पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव ने गोद लिया था।
(RS)