अरावली मुद्दे पर अरनब गोस्वामी द्वारा सरकार और सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछना, उनके अब तक के टीवी रुख से अलग दिखाई देता है।
पर्यावरण जैसे विषय पर उनका यह रुख यह बहस खड़ी करता है कि क्या मुख्यधारा मीडिया अपने तरीके बदल रहा है।
यह घटनाक्रम भारतीय टेलीविजन पत्रकारिता में बदलते दर्शक और मीडिया संबंधों की ओर इशारा करता है।
अर्नब गोस्वामी (Arnab Goswami): भारतीय टेलीविजन पत्रकारिता का एक जाना-माना चेहरा हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत The Telegraph अख़बार से की और बाद में टीवी पत्रकारिता में कदम रखा। अर्नब गोस्वामी ने Times Now में बतौर एंकर पहचान बनाई, जहाँ Newshour जैसे डिबेट शो ने उन्हें आक्रामक और तेज़ तेवरों वाले पत्रकार के रूप में खुद को स्थापित किया। साल 2017 में उन्होंने अपना चैनल Republic TV शुरू किया, जिसने उन्हें और अधिक ताक़तवर मीडिया चेहरा बना दिया। हालाँकि 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद, उन पर यह आरोप लगने लगे कि उनका चैनल सरकार से सवाल पूछने की जगह सत्ता का समर्थन करता है। इसी दौर में अर्नब गोस्वामी और उनके चैनल की पहचान एक ऐसे मीडिया मंच के रूप में बनने लगी, जहाँ सवाल कम और समर्थन ज़्यादा दिखाई देता था।
Narendra Modi की सरकार बनने के बाद अर्नब गोस्वामी पर लगातार यह आरोप लगता रहा कि वे अपने चैनल पर सरकार की आलोचना से बचते रहे। विपक्ष पर आक्रामक डिबेट करते रहे और सरकार की नीतियों को सही ठहराने वाले सवाल ज़्यादा पूछे।
यही कारण है कि लंबे समय तक Republic TV को ‘गोडी मीडिया’ की श्रेणी में रखा गया। लगभग 11 वर्षों तक, सत्ता से तीखे सवाल पूछते हुए अर्नब गोस्वामी को शायद ही कभी देखा गया। पूरे दौर में मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्ता से सवाल पूछने की अपनी मूल भूमिका से दूर होता नज़र आया, और अर्नब गोस्वामी उसी प्रवृत्ति का सबसे प्रमुख चेहरा बनकर उभरे।
अरावली पहाड़ियाँ भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक हैं। ये दिल्ली-NCR को रेगिस्तान बनने से बचाने, भूजल रिचार्ज और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। ऐसे समय में जब दिल्ली-NCR पहले ही प्रदूषण, जल संकट और जलवायु असंतुलन से जूझ रहा है, अरावली से जुड़ा हर फैसला बेहद संवेदनशील हो जाता है। इसी अरावली मुद्दे पर अरनब गोस्वामी ने पहली बार सरकार और न्यायपालिका से सीधे सवाल किए।
उन्होंने न केवल Supreme Court of India के फैसले पर सवाल उठाए, बल्कि सरकार और पर्यावरण मंत्रालय से भी जवाब माँगा। अर्नब गोस्वामी ने यह सवाल उठाया कि क्या 20 करोड़ साल पुरानी अरावली पहाड़ियों को केवल तकनीकी परिभाषाओं में बाँधकर उनके संरक्षण को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है? क्या विकास के नाम पर पर्यावरण को पीछे धकेलना ही एकमात्र रास्ता बचा है?यह वही अर्नब हैं, जिन्होंने अब तक शायद ही कभी सरकार और सिस्टम को एक साथ कठघरे में खड़ा किया हो।
यह बदलाव इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि मोदी सरकार के लगभग 11 साल पूरे होने के बाद पहली बार अर्नब गोस्वामी ने पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सीधे सत्ता और संस्थाओं से जवाब माँगा। इस सवाल ने एक और बहस को जन्म दिया— क्या मुख्यधारा मीडिया अब दर्शकों के बदलते मूड को समझने लगा है? आज दर्शक सिर्फ़ शोर और आरोप नहीं चाहता, बल्कि सत्ता से जवाबदेही चाहता है। डिजिटल मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारों के बढ़ते प्रभाव ने टीवी न्यूज़ चैनलों पर दबाव बनाया है कि वे भी सवाल पूछें, वरना उनकी विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म हो सकती है। यही कारण है कि अर्नब गोस्वामी का यह बदला हुआ सुर केवल एक व्यक्तिगत बदलाव नहीं, बल्कि मीडिया की बदलती रणनीति का संकेत भी माना जा रहा है।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है, क्या यह मीडिया की एक नई रणनीति है, क्योंकि अब जनता खुद सवाल पूछने लगी है? क्या यह अर्नब गोस्वामी की अपनी छवि सुधारने की कोशिश है? या फिर यह सिर्फ TRP और वायरल होने का एक नया तरीका है? या क्या सच में अब मुख्यधारा मीडिया को पत्रकारिता की असली कीमत समझ में आने लगी है? यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि अर्नब गोस्वामी पूरी तरह बदल गए हैं,लेकिन इतना साफ़ है कि अगर सवाल पूछना आज ‘ब्रेकिंग न्यूज़ (Breaking News)’ बन गया है, तो यह भारतीय मीडिया की मौजूदा हालत पर अपने आप में एक बड़ा सवाल है।
(Rh/PO)