क्या भारत की मीडिया स्वतंत्र है? राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर जानें कि भारत की मीडिया का क्या है हाल?

भारत एक लोकतांत्रिक यानी डेमोक्रेटिक देश है यहां हर चीज की आजादी है लेकिन यह आजादी सिर्फ संविधान तक ही सीमित है।
क्या भारत की मीडिया स्वतंत्र है?  (Is the media in India free?) यह चित्र इस बात को दर्शाता है
मीडिया जो बोली, विचार प्रकट करने में स्वतंत्रता का दावा करता है क्या सच में वह स्वतंत्र है? (Is the media in India free?)Sora Ai
Published on
Updated on
3 min read

Summary

  • भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता की लड़ाई लंबे समय से चली आ रही है, ब्रिटिश शासन के दौरान वर्नाकुलर प्रेस एक्ट 1878 और इंडियन प्रेस एक्ट 1910 ने मीडिया पर नियंत्रण स्थापित किया।

  • आज की प्रेस कानूनी दमन, सेल्फ-सेन्सरशिप और डिजिटल मीडिया पर नियंत्रण जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है।

  • कुछ मामलों में पत्रकारों को उनकी रिपोर्टिंग की वजह से जान से हाथ धोना पड़ा, जैसे मुकेश चंद्राकर, संदीप कोठारी और शांतनु भौमिक की हत्याएँ।

भारत एक लोकतांत्रिक यानी डेमोक्रेटिक देश है यहां हर चीज की आजादी है लेकिन यह आजादी सिर्फ संविधान तक ही सीमित है। जब भी कोई व्यक्ति बोलने लिखने की स्वतंत्रता दिखाता है तब उस पर कई कारणों से दबाव डालकर उसका मुंह बंद करवा दिया जाता है। भारत का मीडिया जो बोली, विचार प्रकट करने में स्वतंत्रता का दावा करता है क्या सच में वह स्वतंत्र है? (Is the media in India free?) प्रेस न केवल खबरें फैलाता हैं बल्कि विचारों का विमर्श भी जन्म देता है जिससे लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया सशक्त होती है।

सवाल ये उठाता है कि स्वतंत्रता के नाम पर संवैधानिक अधिकार तो मौजूद है लेकिन क्या व्यवहार में पत्रकार बिना डर और किसी बाधा के सरकार या अन्य शक्तियों की आलोचना कर सकते हैं? हाल की घटनाएं कानूनी दमन और सेल्फ सेंसरशिप की खबरें इस विश्वास को चुनौतियों के दायरे में लाती है। तो आईए जानते हैं कि क्या वास्तव में भारत की प्रेस स्वतंत्र है?

एक नज़र प्रेस स्वतंत्रता के इतिहास पर

भारत की मीडिया के स्वतंत्रता पर सवाल कोई नया सवाल नहीं है बल्कि इतिहास के पन्नों में भी उसकी स्वतंत्रता पर सवाल उठे हैं और मीडिया या प्रेस को दबाने की कोशिश भी की गई है। जिनमें से सबसे प्रसिद्ध वर्नाकुलर प्रेस एक्ट 1878 (Vernacular Press Act 1878) था जिसने भारतीय भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों को सख्त सेंसरशिप और सरकारी निगरानी के दायरे में रखा गया, इसके तहत जिला मजिस्ट्रेट को प्रेस को बॉन्ड में डालने, जमानत देने और अंतरहीत सामग्री की समीक्षा करने का अधिकार था। इसके बाद इंडियन प्रेस एक्ट 1910 (Indian Press Act 1910) आया जो 1908 के न्यूज़ पेपर एक्ट जैसी प्रविधियां को दोबारा लागू करता था। यह एक्ट एडिटर से सिक्योरिटी मांगता था और सरकार को किसी भी अपमानजनक सामग्री के लिए समाचार पत्रों को बैन करने की शक्ति भी देता था।

कुछ ऐसी घटनाएं जो मीडिया की स्वतंत्रता पर सवाल उठाती हैं

  • पहले तो प्रेस पर कई प्रकार के प्रबंध थे लेकिन आज की प्रेस आजादी की कई गंभीर चुनौतियां से जूझ रही है। कुछ समय पहले ही न्यूज क्लिक नाम के एक न्यूज़ चैनल पर हुए सरकारी छापे जिसमें दिल्ली पुलिस ने UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के अंतर्गत पत्रकारों के घरों और दफ्तरों पर छापा मारा और इस कार्यवाही से यह डर पैदा हुआ कि स्वतंत्र डिजिटल मीडिया को निरस्त करने की कोशिश की जा रही है।

  • दूसरा बड़ा दबाव था सेल्फ सेंसरशिप का। कई पत्रकार खासकर बड़े और कारपोरेट मीडिया में काम करने वाले पत्रकार यह शिकायत करते हैं कि वह अपनी नौकरी खोने के डर से संवेदनशील (Sensitive) मुद्दों को रिपोर्ट करने से पहले कई बार सोचते हैं।

  • कश्मीर में पत्रकारों पर नियंत्रण का स्तर और भी अधिक गहरा है। कश्मीर के कई

    वेबसाइट और न्यूज़ मीडिया को बैन कर दिया गया क्योंकि वह कश्मीर की मौजूदा स्थिति पर तर्क रख रहे थे।

पत्रकारों पर जब हुए जानलेवा हमले

कई मामलों में भारतीय पत्रकारों को उनकी रिपोर्टिंग की वजह से जान से हाथ धोना पड़ा। उदाहरण के लिए स्वतंत्र पत्रकार मुकेश चंद्राकर भ्रष्टाचार उजागर करने के बाद 2025 में उनकी हत्या कर दी गई और उनका शरीर सेप्टिक टैंक में मिला। अवैध खनन और सैंड माफिया को रिपोर्ट करने वाले पत्रकार संदीप कोठारी को भी 2015 में अगवा कर जलाकर मार दिया गया था। इसी तरह त्रिपुरा में पत्रकार शांतनु भौमिक को सड़कों पर टैंक रोक घटनाओं की रिपोर्टिंग के दौरान चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी। यह घटना यह दर्शाती हैं कि भारत में पत्रकारों की सुरक्षा पर गंभीर संकट है और उनके काम की वजह से उन्हें जान का जोखिम उठना पड़ता है।

कुल मिलाकर भारत में प्रेस स्वतंत्रता संवैधानिक स्तर पर सुरक्षित है लेकिन व्यवहार में उसे गंभीर चुनौतियां झेलनी पड़ती हैं हालांकि देखा जाए तो यह पूरी कहानी नकारात्मक नहीं है स्वतंत्रता की लड़ाई अभी भी जारी है और मीडिया स्वराज को वापस पाने के लिए रास्ते मौजूद हैं। जैसे कानूनी सुधार, पाठक समर्थन, पत्रकार संगठन और नागरिक जागरूकता मिलकर इस मुक्त प्रेस की रेट मजबूत कर सकते हैं।[Rh]

क्या भारत की मीडिया स्वतंत्र है?  (Is the media in India free?) यह चित्र इस बात को दर्शाता है
बिहार से आज़ादी के 25 साल बाद भी क्यों जरूरतों के लिए लड़ रहें है झारखंड के आदिवासी? जानें क्या है स्थिति!

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com