बिहार से आज़ादी के 25 साल बाद भी क्यों जरूरतों के लिए लड़ रहें है झारखंड के आदिवासी? जानें क्या है स्थिति!

आज झारखंड (Jharkhand) को बिहार से अलग हुए पूरे 25 साल हो चुके हैं। झारखंड सन 2000 में बिहार से अलग होकर भारत का 28 वां राज्य बना। झारखंड और बिहार दोनों की जरूरतें, मांगे, रहन-सहन और क्षेत्र सभी एक दूसरे से काफी अलग थे और इसी कारण झारखंड को बिहार से अलग होना पड़ा।
आदिवासी समाज (Tribal Society Of Jharkhand) की तसवीर अपने जंगलों को बचाते हुए
आदिवासी समाज (Tribal Society Of Jharkhand) बिहार से अलग होकर और अपना एक अलग राज्य पाकर खुश है?Sora Ai
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आज झारखंड (Jharkhand) को बिहार से अलग हुए पूरे 25 साल हो चुके हैं। झारखंड सन 2000 में बिहार से अलग होकर भारत का 28 वां राज्य बना। झारखंड और बिहार दोनों की जरूरतें, मांगे, रहन-सहन और क्षेत्र सभी एक दूसरे से काफी अलग थे और इसी कारण झारखंड को बिहार से अलग होना पड़ा। लेकिन सवाल यह है कि बिहार से अलग होने के 25 साल बाद भी क्या झारखंड आज एक सक्षम राज्य बन पाया (25 Years Of Jharkhand Independence) है? झारखंड का आदिवासी समाज जो हमेशा से पीड़ित रहा और अपने हक के लिए लगातार लड़ता रहा क्या आज यह आदिवासी समाज (Tribal Society Of Jharkhand) बिहार से अलग होकर और अपना एक अलग राज्य पाकर खुश है? क्या आदिवासी समाज के सपने उनके अधिकार उनके हक उन्हें मिले? चलिए थोड़ा विस्तार से इसके बारे में जानते हैं।

झारखंड के आदिवासी समाज की स्थिति कैसी है?

झारखंड राज्य बनने का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदायों (Tribal Community) के अधिकारों और उनके संसाधनों की रक्षा करना था लेकिन 25 साल बाद भी झारखंड (Jharkhand) के आदिवासियों की स्थिति कई मामलों में चिंताजनक है। उन्हें अपनी जमीन जंगल और खनिज संसाधनों पर अक्सर विवाद और जबरदस्ती का सामना करना पड़ा है। रोजगार हो या फिर शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरत के लिए भी आदिवासी समाज आज काफी पिछड़ा नजर आता है।

आदिवासी महिलाएं पानी के लिए संघर्ष करती हैं
आदिवासी समाज की बात की जाए तो उनके लिए साधारण सी जरूरत की चीज भी काफी चुनौती पूर्ण हो गई है।Pixabay

हालांकि पूरा झारखंड ही इन मामलों में काफी पीछे है लेकिन यदि आदिवासी समाज की बात की जाए तो उनके लिए साधारण सी जरूरत की चीज भी काफी चुनौती पूर्ण हो गई है। आपको बता दें कि आदिवासी समुदाय अपने अधिकारों और जीवन शैली की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष कर रहा हैं उनका संघर्ष सिर्फ रोजमर्रा की जरूरतें या शिक्षा स्वास्थ्य तक ही कायम नहीं है बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और अपनी पहचान बनाए रखने की लड़ाई भी जारी है।

झारखंड में आदिवासियों को न्याय नहीं मिलता

झारखंड में आदिवासियों को न्याय (Did Tribals Get Justice In Jharkhand?) न मिलने की एक गहरी कहानी है। राज्य के खनिज समृद्ध जंगलों में हो रहे विशाल कोयला और लोह अयस्क खनन के चलते बड़ी संख्या में आदिवासी अपने पारंपरिक घरों और जंगलों से विस्थापित हो गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1951 से 1995 के बीच लगभग 1503017 लोग विस्थापित हुए जिनमें से 80– 90% आदिवासी थे। पकड़ी बरवाडी कोयला परियोजना में 19 गांव को जबरन खाली कराया गया लेकिन मुहावरे और पुनर्स्थापना की व्यवस्था अक्सर अधूरी रही।

एक व्यक्ति कोयला का पहाड़ तोड़ ता हुआ
झारखंड में आदिवासियों को न्याय (Did Tribals Get Justice In Jharkhand?) न मिलने की एक गहरी कहानी है। Pixabay

झारखंड की एक महिला पूनम देवी जिन्हें विस्थापन के बाद नौकरी की बात कर उम्मीद दिया गया लेकिन फैक्ट्री बंद हो गई और फिर उन्हें न सिर्फ अपनी जमीन खोनी पड़ी बल्कि पहचान के संकट से भी जूझना पड़ा। इसके अलावा झारखंड की आर्थिक और गरीबी की तस्वीर भी स्पष्ट है लगभग 46% आदिवासी आज भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीते हैं और उनकी जमीनों का कानूनी हक जैसे ग्राम सभा की सहमति के अधिकार पेसा एक्ट (PESA Act) अक्सर अनदेखा किया जाता है।

झारखंड में आदिवासी लड़कियों और मुस्लिम शादी की परतें

झारखंड में हाल‑फिलहाल आदिवासी लड़कियों की मुस्लिम पुरुषों से बढ़ रही शादियों को कुछ लोग सिर्फ “प्यार” नहीं, बल्कि जमीन हड़पने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं। स्थानीय रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई मुस्लिम युवक आदिवासी लड़कियों के साथ शादी कर उनकी जमीनों पर कब्ज़ा कर लेते हैं क्योंकि आदिवासी जमीनें कानूनी रूप से उनकी मूल पहचान के नाम पर सुरक्षित होती हैं। प्रतिबंधित संगठन पीएफआई (Popular Front of India) इस राह का इस्तेमाल कर झारखंड में लगभग 10,000 एकड़ आदिवासी ज़मीनें हासिल कर रहा है। कुछ नेताओं का आरोप है कि ये विवाह “आरक्षित सीटों” पर चुनाव जीतने और वोट बैंक बनाने की साजिश का हिस्सा हैं।

कई आदिवासी समुदायों में यह डर मजबूत हो गया है कि ऐसी शादियों से उनकी सांस्कृतिक पहचान, जमीन‑जगह और राजनीतिक शक्ति धीरे-धीरे कम हो सकती है। हालांकि यह पूरी कहानी एकतरफा नहीं है कुछ मामलों में प्रेम विवाह या धार्मिक स्वतंत्रता की दलीलें भी सामने आती हैं लेकिन कई स्तरीय जांच और सावधानी की जरूरत है, ताकि आदिवासी लड़कियों के अधिकारों का शोषण न हो सके और उनके हितों की रक्षा की जा सके।

आज क्या है आदिवासियों की स्थिति?

आज झारखंड में आदिवासी समुदाय की स्थिति काफी उलझी हुई है कुछ क्षेत्र में होने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार का लाभ मिला है जबकि कई जगह उनकी स्थिति अभी भी कमजोर है। बेरोजगारी गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी उनके जीवन में बड़ी चुनौतियां बनी हुई है। खनन और औद्योगीकरण के चलते जंगल और जमीन पर उनका अधिकार लगातार खतरे में है इसके बावजूद आदिवासी अपने अधिकारों और जीवन शैली की रक्षा के लिए भी लगातार संघर्ष कर रहे हैं। सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए विभिन्न सरकारी योजनाएं और कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं लेकिन उनका प्रभाव काफी सीमित है और इसका लाभ वह नहीं उठा पा रहे हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो झारखंड के आजादी के 25 साल बाद भी आदिवासियों का संघर्ष जारी है और यह केवल विकास ही नहीं बल्कि उनकी पहचान संस्कृति और अधिकारों की रक्षा का प्रतीक है।[Rh]

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