तमिलनाडु (Tamil Nadu) की राजनीति में अगर किसी महिला नेता का नाम सबसे ज़्यादा श्रद्धा और विवादों दोनों के साथ लिया जाता है, तो वह हैं जे. जयललिता (J. Jayalalithaa)। अपने लाखों समर्थकों के लिए वह केवल एक नेता नहीं, बल्कि “अम्मा” (Amma) यानी माँ का रूप थीं। उनकी तस्वीरें तमिलनाडु की गलियों से लेकर सरकारी योजनाओं तक हर जगह दिखाई देती थीं। चाहे वह अम्मा कैंटीन (Amma Canteen) हो जहाँ सस्ता भोजन मिलता था, अम्मा वॉटर बॉटल (Amma Water Bottle), अम्मा सीमेंट (Amma Cement), अम्मा लैपटॉप (Amma Laptop) या यहाँ तक कि अम्मा दवाइयाँ (Amma medicines), हर जगह उनका चेहरा लोगों के बीच विश्वास और लोकप्रियता का प्रतीक बना रहा।
लेकिन यही जयललिता, जिन्हें जनता देवी की तरह पूजती रही, भ्रष्टाचार और काले धन के मामलों में जेल की सज़ा भी भुगत चुकीं थी। विडंबना यह है कि जिस महिला ने गरीबों के लिए योजनाओं की झड़ी लगाई, वही करोड़ों की बेहिसाब संपत्ति की मालिक निकलीं। सवाल यह है कि क्या किसी राजनेता को भगवान का दर्जा देना सही (It is right to give Jayalalitha status of God) है? क्या जनता की आँखों पर अंधभक्ति का पर्दा पड़ जाता है, जिससे वे नेता की गलतियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं? जयललिता का जीवन इसी विरोधाभास का प्रतीक है, जहाँ एक तरफ उन्होंने जनता का दिल जीता, वहीं दूसरी तरफ घोटालों और विवादों ने उनकी छवि को धूमिल किया।
तमिलनाडु की राजनीति (Politics of Tamilnadu) में जे. जयललिता (J. Jayalalithaa) को लेकर लोगों की सोच बेहद गहरी और भावनात्मक रही है। उनके समर्थक उन्हें सिर्फ़ एक नेता नहीं, बल्कि “अम्मा” यानी माँ का रूप मानते हैं। यही वजह है कि उनके जेल जाने पर लोग सड़कों पर उतरकर रोते-धोते नज़र आए थे, और यहाँ तक कि उनके उत्तराधिकारी ओ. पन्नीरसेल्वम ने भी शपथ लेते समय आँसू बहाए। जयललिता ने अपने करियर में एक अनोखा व्यक्तित्व पूजा (Personality Cult) खड़ा किया, जो उनके नाम से जुड़ी “अम्मा ब्रांड योजनाओं” (“Amma Brand Schemes”) के कारण और भी मज़बूत हुआ। सस्ती दरों पर मिलने वाला अम्मा फ़ूड, पानी, नमक और अन्य योजनाएँ उनकी छवि को गरीबों की मसीहा और महँगाई से राहत दिलाने वाली देवी बना देती थीं। आज तमिलनाडु के राजस्व खर्च का लगभग 37% हिस्सा सब्सिडी पर जाता है, जो इस बात का प्रमाण है कि उनकी राजनीति वेलफ़ेरिज़्म पर टिकी थी।
उनके समर्थक उन्हें “आदिपराशक्ति” (सर्वशक्तिमान शक्ति) कहते हैं, जो कि उनके 1971 की एक फ़िल्म का भी नाम था। पार्टी के पोस्टरों में उन्हें कभी देवी तो कभी एक निडर महिला के रूप में दिखाया गया। राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ वरदराजन के अनुसार, “अम्मा कल्ट” (Amma Cult) एक लेन-देन आधारित राजनीतिक संस्कृति पर टिका है, जहाँ नेता अपने समर्थकों को बड़े-बड़े परोपकारी काम देकर बदले में उनका समर्थन माँगते है। उनका जीवन भी किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं था पिता की आत्महत्या से लेकर एक प्रतिभाशाली छात्रा बनने तक, फिर 140 से अधिक फ़िल्मों में चमकती सितारा और आखिरकार राजनीति की शिखर तक पहुँची महिला थीं जयललिता। लेकिन साथ ही, उनके करियर में विवाद भी रहे, जिनमें सबसे बड़ा विवाद 10 मिलियन डॉलर से अधिक की बेहिसाब संपत्ति का था, जिसके चलते उन्हें जेल की सज़ा भी हुई।
जे. जयललिता (J. Jayalalithaa) ने मात्र 16 साल की उम्र में फ़िल्मों में कदम रखा और जल्द ही तमिल सिनेमा की सबसे चर्चित अभिनेत्रियों में शुमार हो गईं। 140 से अधिक फ़िल्मों में काम करते हुए वे दर्शकों के दिलों में एक चमकते सितारे के रूप में बस गईं। लेकिन उनका असली जीवन मोड़ तब आया जब उनकी मुलाक़ात तमिलनाडु के लोकप्रिय अभिनेता और राजनेता एम. जी. रामचंद्रन (Politician M. G. Ramachandran) से हुई। एमजीआर सिर्फ़ उनके सह-अभिनेता ही नहीं, बल्कि मार्गदर्शक भी बने। राजनीति में उनकी मज़बूत पकड़ और जनता से गहरा जुड़ाव देखकर जयललिता ने भी राजनीति की राह पकड़ी। एमजीआर ने उन्हें अपनी पार्टी एआईएडीएमके (AIADMK) में शामिल किया और जयललिता जल्द ही पार्टी का अहम चेहरा बन गईं। फ़िल्मों की लोकप्रियता और भाषण कला ने उन्हें राजनीति में भी तेजी से आगे बढ़ाया और देखते ही देखते वे एक साधारण अभिनेत्री से तमिलनाडु की “अम्मा” बन गईं।
तमिलनाडु में जे. जयललिता (J. Jayalalithaa) को लेकर आम जनता में बहुत श्रद्धा थी, लेकिन ऐसे कई मामले हैं जहाँ उन पर भ्रष्टाचार, गैर-कानूनी सम्पत्तियों के मालिक होने और कार्यालय का दुरुपयोग करने के आरोप लगे।
सबसे प्रमुख मामला है Disproportionate Assets Case (1991-96)। इस केस में उन पर, उनकी साथी वी.के. ससिकला, उनके भतीजे व अन्य लोगों ने मिलकर जयललिता की आय के मुकाबले बहुत अधिक पूंजी (Assets) जमा करने का आरोप था। इसमें बैंक खाते, बंगले, जमीनें, सोना-चांदी, लग्ज़री वस्तुएँ आदि शामिल थे।
दूसरा बड़ा मामला TANSI Land Acquisition Case है, जिसमें उनकी कंपनी और उनकी करीबी शशिकला ने राज्य सरकार की एक इकाई की जमीन कम मूल्य पर खरीदी, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ।
तीसरा है Pleasant Stay Hotel Case जिसमें एक होटल को कुटाईकनाल में सात मंजिला इमारत बनाने की अनुमति देने का आरोप था। नियमों के अनुसार इतनी ऊँची इमारत नहीं बन सकती थी। जयललिता और उनके सहयोगियों पर यह आरोप लगा कि उन्होंने सरकारी नियमों की अवहेलना की।
चौथा है Colour TV Scam Case जिसमें गाँवों के पंचायत भवनों के लिए कलर टीवी खरीदने में अनियमितता और किकबैक का आरोप था। जयललिता, ससिकला और अन्य साथी आरोपों में शामिल थे, लेकिन बाद में इस मामले में उन्हें मुक्त कर दिया गया।
इन सभी मामलों में जयललिता के साथ वी.के. शशिकला का नाम अक्सर सामने आया। कुछ मामलों में कोर्ट ने उन्हें दोषी पाया, कुछ मामलों में बाद में मुकदमे खत्म हुए या उन्हें बरी किया गया। इन विवादों ने उनके राजनैतिक जीवन को प्रभावित किया, लेकिन समर्थकों में उनकी लोकप्रियता को पूरी तरह खत्म नहीं कर पाए।
अम्मा यानी मां, एक मां अपने त्याग और बलिदानों के लिए जानी जाती है। हालांकि इसमें कोई दो राह नहीं है कि जयललिता ने अपने जीवनकाल में तमिलनाडु की जनता के लिए बहुत कुछ किया, गरीबों के लिए उन्होंने मात्र 1 रुपए में भोजन की व्यवस्था करवाई लेकिन इन सब के बाद एक नेता को भगवान का दर्ज देना न उनकी पूजा करना थोड़ा अजीब लगता है।
कई लोग जयललिता (J. Jayalalithaa) को अम्मा इसलिए मानते हैं क्योंकि उनकी कल्याणकारी योजनाएँ गरीब लोगों के लिए बहुत मददगार रही हैं जैसे “अम्मा कैंटीन”, सस्ता खाना, मुफ्त पानी, नमक और दवाइयाँ। ये योजनाएँ आम आदमी के जीवन को आसान करती थीं और उनकी विश्वास की वजह भी बन गई थीं। समर्थकों का मानना है कि उन्होंने राज्य की गरीब आबादी के लिए ऐसी योजनाएँ शुरू कीं जिनका असर तुरंत दिखा। वजह से लोगों ने उन्हें माँ की तरह अपनाया। जयललिता के समर्थक कहते हैं कि “अम्मा ब्रांड” सिर्फ प्रचार नहीं बल्कि सशक्त कल्याण राज्य की पहचान है जहाँ सरकार सीधे लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करती है।
वहीं आलोचक कहते हैं कि “व्यक्तित्व पूजा” (personality cult) लोकतंत्र के लिए खतरा है। जब नेता का नाम, चेहरे और प्रतीक इतना बड़ा हो जाए कि सब कुछ उसी के इर्द-गिर्द घूमे, तो विचार, चर्चा और जिम्मेदारी कम हो जाती है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या अम्मा-ब्रांड योजनाएँ सिर्फ उतनी दी गयी थीं जितना प्रचार के लिए ज़रूरी था? और क्या समाज या नीति-निर्माण की दीर्घकालीन ज़रूरतों पर ध्यान दिया गया या केवल लोकप्रिया कार्य किये गए? कुछ विश्लेषकों ने माना कि जयललिता की भारी निजीकरण और सत्ता का केंद्रीकरण (centralization of power) इस “अम्मा” छवि को बनाए रखने में काम किया।
5 दिसंबर 2016 का दिन तमिलनाडु के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। इसी दिन जयललिता का निधन हुआ और मानो पूरा राज्य शोक में डूब गया। अस्पताल से उनकी मृत्यु की खबर निकलते ही हजारों की भीड़ चेन्नई की सड़कों पर उमड़ पड़ी। लोग खुलेआम बिलखने लगे, महिलाएँ जमीन पर लोटकर रोने लगीं और पुरुषों ने सिर पर हाथ मारते हुए मातम मनाया। उनके समर्थकों के लिए यह किसी अपने परिजन को खो देने जैसा था। चेन्नई से लेकर तमिलनाडु के छोटे-छोटे कस्बों तक हर जगह गम का माहौल छा गया। कई समर्थकों ने आत्महत्या तक कर ली, कुछ ने भूख हड़ताल शुरू कर दी। जयललिता को “अम्मा” (Amma) कहने वाली जनता के लिए उनकी मौत किसी युग का अंत था। उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए और पूरे राज्य ने इस बात को साबित कर दिया कि जयललिता सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि जनता के दिलों की धड़कन थीं।
“अम्मा” का दर्जा देना पूरी तरह रूढ़िवादी नहीं है, क्योंकि जयललिता ने वाकई कई लोगों की ज़रूरतें पूरी कीं लेकिन साथ ही यह दर्जा एक तरह की सार्वजनिक अपेक्षा और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक भी है। सवाल यह नहीं सिर्फ यह है कि उन्होंने क्या किया, बल्कि इस पावती (cult) के सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक प्रभाव क्या होंगे जब प्रेम और श्रद्धा इतनी बढ़ जाए कि आलोचना या पारदर्शिता कम हो जाए। जयललिता का विवादों से भरा सफर इस बात को दर्शाता है कि “पुजनीय” नेता भी पूरी तरह त्वरितरूपेण दोषों और मानवीय कमियों से परे नहीं हो सकते। [Rh/SP]