उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजधानी लखनऊ (Lucknow) में एक जगह है जिसे अंबेडकर पार्क (Ambedkar Park) कहा जाता है। कहा जाता है कि यह अंबेडकर पार्क उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती जी (Former Chief Minister Mayawati) ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर (Baba Saheb Bhimrao Ambedkar) को सम्मानित करने के लिए बनवाया था। लेकिन यदि आप अंबेडकर पार्क में जाएंगे तो वहां बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की मूर्ति किसी कोने में पड़ी मिलेगी और पूरा पार्क एक पॉलिटिकल प्रचार (Political Campaign) का मंच जैसा नजर आएगा।
मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती जी ने हमेशा इन खर्चों पर रोक लगाने की कोशिश की लेकिन जब उन्होंने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर (Baba Saheb Bhimrao Ambedkar) को समर्पित इस पार्क का निर्माण करवाया तो उन्होंने अपने पॉलिटिकल प्रचार की कोई कसर नहीं छोड़ी। इस पार्क में सुश्री मायावती जी की मूर्ति काफी बड़ी और अंबेडकर जी की मूर्ति की तुलना में काफी विशाल है साथ ही इस पार्क में बहुजन समाजवादी पार्टी का प्रचार चिन्ह हाथी भरपूर मात्रा में नजर आएगा। इस पार्क को देखकर सवाल मन में आता है कि मायावती जी ने जो दलितों की मसीहा थी क्या सच में दलितों के लिए कुछ किया?
मायावती (Mayawati) का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली के एक दलित-जाटव परिवार में हुआ था, उनके पिता प्रभु दास डाक विभाग में कार्यरत थे और माता का नाम रामरती था। बचपन से ही उन्होंने समाज में जातिगत भेदभाव और असमानता को महसूस किया, यही कारण था कि वे शिक्षा को अपनी ताकत मानती थीं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए. की पढ़ाई की और इसके बाद बी.एड. व एलएल.बी. की डिग्री हासिल की। उनका सपना एक सफल IAS अधिकारी बनने का था ताकि वे समाज में बदलाव ला सकें, लेकिन किस्मत ने उनके लिए राजनीति का रास्ता चुना। साल 1977 में दलितों के प्रख्यात नेता कांशीराम (Leader Kanshiram) उनसे मिलने उनके घर आए और उनकी भाषण देने की क्षमता तथा नेतृत्व की प्रतिभा से प्रभावित हुए।
कांशीराम ने मायावती को भरोसा दिलाया कि वे राजनीति में आकर दलितों और वंचित वर्ग की सशक्त आवाज़ बन सकती हैं। इसी प्रेरणा से वे 1984 में बनी बहुजन समाज पार्टी (BSP) से जुड़ गईं। शुरुआत में उन्होंने पार्टी संगठन में काम किया, 1985 में पहला चुनाव लड़ा, भले हार मिली, लेकिन 1989 में बिजनौर से जीतकर संसद पहुँचीं। इस तरह मायावती का राजनीतिक सफर शुरू हुआ, जो आगे चलकर उन्हें उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनने तक ले गया।
मायावती (Mayawati) का राजनीतिक सफर संघर्षों से भरा रहा। जब वे 1984 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) से जुड़ीं, तब पार्टी अभी नई थी और केवल दलितों व पिछड़ों की आवाज़ के रूप में पहचानी जाती थी। 1985 का चुनाव उन्होंने लड़ा लेकिन हार गईं। फिर 1989 में बिजनौर से लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुँचीं और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।
इस दौरान वे लगातार कांशीराम (Kanshiram) के मार्गदर्शन में पार्टी संगठन को मजबूत करती रहीं। उन्होंने गाँव-गाँव जाकर बहुजन समाज को जागरूक करने और “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” (“The greater the number, the greater the share”) का नारा देने में अहम भूमिका निभाई। धीरे-धीरे BSP का आधार दलितों से बढ़कर पिछड़े, अल्पसंख्यक और अन्य वर्गों तक फैलने लगा। 1993 में समाजवादी पार्टी और BSP ने मिलकर चुनाव लड़ा और अच्छी सफलता हासिल की। इसी गठबंधन के दम पर मायावती पहली बार 1995 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और यह ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि वे न सिर्फ़ दलित समाज से बल्कि पूरे भारत की राजनीति में मुख्यमंत्री बनने वाली पहली दलित महिला बनीं ( Mayawati became the first Dalit woman to become Chief Minister)। यह सफर आसान नहीं था, विरोध, साजिशें और जातिगत राजनीति उनके सामने बार-बार आईं, लेकिन उनकी जिद, मेहनत और कांशीराम का सहयोग उन्हें राजनीति की बुलंदी तक ले गया।
दलितों को समाज में हमेशा से एक अलग नजरिया के साथ देखा जाता है पहले के समय में जातिय भेदभाव इतना हुआ करता था कि निम्न वर्ग या छोटे वर्ग के लोगों को एक कमरे में आने तक नहीं दिया जाता था अगर कोई बड़ा वर्ग का इंसान कुर्सी पर बैठा है तो दलित या अछूत वर्ग (Dalit or untouchable class) को जमीन पर बैठना पड़ता था और कि कुछ इसी प्रकार का रवैया मायावती की कैबिनेट (Mayawati's Cabinet) में भी देखने को मिला। ऐसा कहा जाता है कि मायावती ने कैबिनेट में एक मीटिंग के दौरान सभी मंत्रियों को जमीन पर बैठा दिया और खुद कुर्सी पर बैठकर उनसे बातें करने लगीं। एक रिपोर्ट में उद्धृत है कि उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में दलितों के खिलाफ अपराध और अत्याचारों में वृद्धि हुई जिनके मामलों में सरकार की सख़्ती से कार्रवाई नहीं हुई, जिससे यह आरोप लगा कि मायावती की सरकार दलित मेद्य में अपेक्षित बदलाव नहीं ला सकी। दूसरी रिपोर्टों में ये कहा गया कि दलित नेताओं को “नाम मात्र” के पद दिए गए, लेकिन वास्तविक शक्ति नहीं मिली, लेकिन ये भी तमाम अटकलें हैं, फ़र्क़ ज़्यादातर राजनीतिज़ियनों और मीडिया विश्लेषकों के मतों पर आधारित हैं, बजाय प्रमाणित दस्तावेजों के।
मायावती (Mayawati) जब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाने के लिए कई बड़े फैसले लिए। उन्होंने कानून-व्यवस्था सुधार को प्राथमिकता दी और पुलिस प्रशासन को सख़्ती से निर्देश दिए कि अपराधियों पर तुरंत कार्रवाई हो। इसके अलावा उन्होंने दलित स्मारक और पार्क निर्माण पर ज़ोर दिया, जिसके तहत नोएडा और लखनऊ में अंबेडकर पार्क (Ambedkar Park) व कांशीराम स्मारक (Kanshi Ram Memorial) जैसे भव्य निर्माण कराए गए। यह कदम दलित गौरव बढ़ाने के रूप में देखा गया लेकिन साथ ही इन पर सरकारी ख़जाने से अरबों रुपये खर्च होने की वजह से मायावती को आलोचना का सामना भी करना पड़ा।
उन्होंने “नोएडा स्कैंडल” (Noida Scandal) जैसे विवादों से बचने के लिए खुद नोएडा न जाने का फ़ैसला लिया, जिसे उनके सख़्त प्रशासनिक तौर-तरीक़ों का हिस्सा माना गया। हालाँकि उनके कार्यकाल में गेस्ट हाउस कांड (guest house scandal) और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगातार सामने आते रहे। आलोचकों का कहना था कि मायावती ने सत्ता का इस्तेमाल राजनीतिक शक्ति बढ़ाने और अपने चारों ओर व्यक्तित्व-पूजा का माहौल बनाने में किया। कुल मिलाकर उनका मुख्यमंत्री कार्यकाल निर्णयों और विवादों का मिला-जुला दौर रहा, जिसने उन्हें भारतीय राजनीति में एक बेहद प्रभावशाली लेकिन विवादित चेहरा बना दिया।
मायावती जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने दलितों और पिछड़ों के उत्थान को अपनी राजनीति का केंद्र बनाया। उन्होंने अंबेडकर ग्राम विकास योजना (Ambedkar Village Development Scheme) शुरू की, जिसके तहत उन गाँवों को प्राथमिकता दी गई जहाँ दलित आबादी अधिक थी और वहाँ सड़क, बिजली, पानी और आवास की सुविधाएँ दी गईं। इसके साथ ही मायावती आवास योजना और कांशीराम शाहरी गरीब आवास योजना के ज़रिए शहरी और ग्रामीण गरीबों को मकान उपलब्ध कराए गए। दलित छात्रों के लिए छात्रवृत्ति, बालिका शिक्षा सहायता योजनाएँ और साइकिल वितरण जैसी योजनाएँ भी लागू की गईं, ताकि शिक्षा तक उनकी पहुँच आसान हो।
इसके अलावा, मायावती ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू करने और लंबित पदों की भर्ती कराने में विशेष ध्यान दिया, जिससे दलित युवाओं को अवसर मिले। वहीं, उन्होंने लखनऊ और नोएडा में कई दलित स्मारक और पार्क बनवाए, जिन पर डॉ. भीमराव अंबेडकर और कांशीराम जैसे नेताओं की मूर्तियाँ स्थापित की गईं। यह प्रतीकात्मक कदम दलित समाज के लिए आत्मसम्मान का स्रोत बना। दलित आज मायावती को इसलिए सम्मान देते हैं क्योंकि उन्होंने न सिर्फ़ उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिया, बल्कि आत्मगौरव और सामाजिक पहचान भी दिलाई। उनके शासन ने दलितों को यह विश्वास दिलाया कि सत्ता में उनकी भी हिस्सेदारी हो सकती है।
मायावती को दलित समाज में आज भी एक प्रतीक और नेतृत्वकर्ता माना जाता है। उनके कार्यकाल के दौरान लागू की गई शिक्षा और आवास योजनाएँ दलितों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आईं, जैसे कि छात्रवृत्तियाँ, साइकिल वितरण और ग्रामीण आवास परियोजनाएँ। इसने दलितों को आत्मसम्मान और सामाजिक पहचान दी। मायावती का यह विचार कि “दलितों को केवल वोट बैंक न समझा जाए, बल्कि उन्हें सत्ता में वास्तविक भागीदारी मिले”, उनके समर्थकों के बीच उन्हें बेहद लोकप्रिय बनाता है।
वहीं, वे दलित राजनीति में सशक्त नेतृत्व और संगठन शक्ति के लिए जानी जाती हैं। उनका नारा “जिसकी संख्या भारी, उसकी हिस्सेदारी उतनी” दलित और पिछड़े वर्गों में सामूहिक जागरूकता और समर्थन पैदा करता है। आलोचकों की बातों के बावजूद, दलित उनके प्रति आस्था रखते हैं क्योंकि उन्होंने समाज में बदलाव और न्याय के लिए सत्ता का इस्तेमाल किया। उनकी सोच और कार्यशैली ने दलितों में यह विश्वास जगा दिया कि उनके अधिकार और सम्मान के लिए राजनीति में सक्रिय रूप से लड़ना संभव है।
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मायावती, जो दलितों की राजनीति की प्रमुख नेता मानी जाती हैं, पर उनके मुख्यमंत्री रहते कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मामलों में शामिल हैं:
ताज कॉरिडोर घोटाला: 2002-2003 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने ताजमहल के पास पर्यटकों की सुविधाओं के लिए ताज कॉरिडोर परियोजना (Taj Corridor scam) शुरू की थी। इस परियोजना में पर्यावरणीय मंजूरी के बिना निर्माण कार्य शुरू करने का आरोप मायावती पर लगा। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने इस मामले की जांच की, लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने अभियोजन की अनुमति नहीं दी, जिससे मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
असमान संपत्ति का मामला: 2003 में, CBI ने मायावती के खिलाफ असमान संपत्ति का मामला दर्ज किया था (Unequal Property Case), जिसमें उनके घोषित आय से अधिक संपत्ति होने का आरोप था। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने 2012 में इस मामले को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि मामला राजनीतिक प्रेरित था।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) घोटाला: मायावती के मुख्यमंत्री रहते, यूपी में NRHM के तहत स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवंटित धन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का आरोप लगा। दो मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की हत्या और अन्य अधिकारियों की संदिग्ध मौतों ने इस घोटाले को उजागर किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस मामले में यूपी सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए।
इन मामलों ने मायावती की छवि पर सवाल उठाए हैं, हालांकि उन्होंने हमेशा इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया है। इन विवादों के बावजूद, मायावती की राजनीतिक पकड़ दलित समाज में मजबूत बनी रही है। [Rh/SP]