पुराने आरोप और EC की विश्वसनीयता पर संदेह
याद करें कि पिछले वर्षों में भी विरोधी पार्टियों ने चुनाव आयोग पर निष्पक्षता से समझौता करने का आरोप लगाया है। उदाहरण के तौर पर, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) ने जूनून से कहा कि वोटों की गिनती रोककर कई उनकी पार्टी के उम्मीदवारों की जीत को छीना गया। इसके अलावा, मुख्य चुनाव आयुक्त के मनोनीत होने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठे हैं, सेना में हस्तक्षेप की ताज़ा आलोचना इसी संदर्भ में हुई थी
हालिया आरोप: राहुल गांधी का Vote Chori दावा
8 अगस्त को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने "vote chori" (वोट चोरी) का वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र जैसे राज्यों में चुनाव आयोग और भाजपा के बीच मिलीभगत के कारण चुनावों का स्वरूप बदला गया।
उन्होंने आरोप लगाया कि लाखों "मिस्ट्री वोटर" चुनावी आंकड़ों में अचानक शामिल किए गए।
प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने भी आरोपों की सत्यता पर सवाल उठाए और कहा कि आयोग द्वारा डेटा उपलब्ध न कराना और केवल हलफनामे की मांग करना "भ्रष्टाचार" को उजागर करता है।
चुनाव आयोग के जवाब: जबाबदेही बनाम आरोप
EC ने आरोपों को “बेसलेस और गैर-जिम्मेदाराना” करार दिया, और कहा कि राहुल गांधी को जो लिखित शिकायत भेजी (12 जून को), उस पर कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ है।
आयोग ने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से मांग की कि या तो वे अपने आरोपों का हलफनामा (declaration/oath) भरें, या फिर पूरे देश से माफी मांगें।
माध्यम से आलोचना भी हो रही है जैसे—आज की आर्थिक टाइम्स ने लिखा कि ये आरोप लोकतंत्र के लिए “थरमोन्यूक्लियर फ्यूमिगेशन” जैसा असर कर सकते हैं, और आयोग को तुरंत स्पष्टता देनी चाहिए।
11 अगस्त: दिल्ली मार्च और मंत्री का इस्तीफा
11 अगस्त को, लगभग 300 विपक्षी सांसदों ने संसद से गृहमंत्रालय की ओर मार्च किया, चुनाव आयोग के जवाबदेही की मांग करते हुए। इसी दौरान राहुल गांधी और अन्य नेताओं को थोड़ी देर के लिए हिरासत में लिया गया।
इसी दिन, कर्नाटक के सहयोग मंत्री केएन राजन्ना (K.N. Rajanna) ने इस्तीफा दे दिया। उनका कहना था कि जब कांग्रेस सत्ता में थी, तभी भी मतदाता सूची में असंगतियां थीं—जिसने पार्टी के वर्तमान रुख को कमजोर कर दिया।
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2018 के मामले की याद
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamalnath) ने याद दिलाया कि 2018 में भी मतदाता सूची में गड़बड़ियों की बात उठी थी—जैसे duplicate एंट्री, मृत या स्थानांतरित मतदाता, संदिग्ध फोटो आदि। तब आयोग ने 9,664 अंतर-निर्मंडल और 8,278 अंतर-सीमा एंट्रीज़, और 24 लाख संदिग्ध मतदाताओं को डिलीट करने की बात मानी थी।
क्यों ज़रूरी है इस मामले पर ध्यान देना?
लोकतंत्र की नींव टूट रही है — जब जनता वोट देने में भरोसा न रखे, तो पूरी व्यवस्था पर संकट आता है।
EC की निष्पक्षता पर सवाल — यदि संस्थानों में पक्षपात का डर हो, तो जनता का विश्वास डगमगा जाता है।
पारदर्शिता की मांग — हल्फनामे, डेटा की उपलब्धता, और स्वतंत्र जांच मांगने वाले सवाल उठ रहे हैं।
निष्कर्ष: लोकतंत्र की परीक्षा
यह "vote Chori" विवाद सिर्फ चुनाव आयोग के खिलाफ नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा का मामला बन चुका है। विपक्षी एकता, आरोपों की गंभीरता, आयोग की जवाबदेही पर बहस, सब मिलकर यह संकेत दे रहे हैं कि भारत को स्वतंत्र, विश्वसनीय व पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया की आवश्यकता है।
मजदूरी की पुकार स्पष्ट है:
चुनाव आयोग को न्यायसंगत, पारदर्शी और जवाबदेह होना होगा।
विपक्ष को भी ठोस सबूत और कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
जनता का भरोसा ही लोकतंत्र की असली जीत है। [Rh/BA]