1951 में स्थापित नोखा विधानसभा सीट पर अब तक 17 चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस को 6 बार, भाजपा को 4 बार, जनता पार्टी को 3 बार, जबकि जनता दल और राजद को 2-2 बार जीत मिली है।
1985 तक यहां कांग्रेस (Congress) और जनता पार्टी के बीच मुख्य मुकाबले रहे। 1952 से 1969 तक कांग्रेस ने लगातार चार बार जीत हासिल की। इसके बाद 1969 के चुनाव में जनता पार्टी ने विजय प्राप्त की। हालांकि, 1972 में कांग्रेस ने फिर से वापसी की। अगले दो चुनाव (1977, 1980) में जनता पार्टी ने फिर से परचम लहराया।
कांग्रेस ने 1985 का चुनाव अपने नाम लिया, लेकिन वह पार्टी के लिए आखिरी जीत साबित हुई। उसके बाद से कभी नोखा में कांग्रेस को जनता ने वापसी नहीं करने दी। इसके बाद के चुनाव (1990, 1995) जनता दल के नाम रहे।
2000 का दौर आया तो भाजपा ने नोखा में अपनी जमीन मजबूत की। उस साल पार्टी को पहली बार जीत मिली थी और फिर 2010 तक लगातार चार चुनाव जीते। 2005 में दो बार चुनाव हुए थे और दोनों बार भाजपा को जीत मिली थी।
2015 में राजद ने नोखा में अपना खाता खोला और 2020 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में इस सीट को बरकरार रखा। इस बार राजद के पास नोखा में जीत की हैट्रिक लगाने का मौका है। हालांकि, यहां से भाजपा की जगह जदयू चुनाव लड़ रही है, जिसने अभी तक नोखा में कोई जीत हासिल नहीं की।
राजद ने नोखा से मौजूदा विधायक अनीता देवी पर फिर से भरोसा जताया है। जदयू ने नागेंद्र चंद्रवंशी को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं, जन सुराज पार्टी से नसरुल्लाह खान चुनावी मैदान में उतरे हैं, जिससे नोखा विधानसभा सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बन चुका है।
नोखा विधानसभा क्षेत्र में विक्रमगंज, नासरीगंज और दाऊदनगर जैसे कुछ कस्बे हैं, जो यहां की जनता के लिए मुख्य बाजार हैं।
धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो नोखा विधानसभा के नोखा नगर में मां काली का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहां आस्था का मुख्य केंद्र तेंदुआ गांव में पहाड़ पर स्थित भगवान शिव का मंदिर है। बताया जाता है कि इस मंदिर से बनारस और गया के बीच की दूरी लगभग बराबर है। यहां मेला भी लगता है और दूर-दूर से लोग पूजा करने आते हैं।
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