उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई घटनाएं ऐसी हुई हैं जिन्होंने दलों के रिश्तों को हमेशा के लिए बदल दिया। [Wikimedia commons] 
राजनीति

गेस्ट हाउस कांड : जब मायावती पर हमला बना यूपी की राजनीति का टर्निंग पॉइंट

1995 के गेस्ट हाउस कांड (Guest house Incident) ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति में भूचाल ला दिया था। मायावती (Mayawati) पर हुए हमले ने सपा-बसपा गठबंधन को तोड़ दिया और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के साथ उनकी दशकों लंबी दुश्मनी की नींव रखी हो गई। यह घटना दलित राजनीति और महिला नेतृत्व की दिशा बदलने वाली साबित हुई।

न्यूज़ग्राम डेस्क

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति में कई घटनाएं ऐसी हुई हैं जिन्होंने दलों के रिश्तों को हमेशा के लिए बदल दिया। लेकिन 2 जून 1995 को लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में जो हुआ, उसने राजनीति को निजी दुश्मनी में बदल दिया। यह वही दिन था, जब बहुजन समाज पार्टी (BSP) की नेता मायावती (Mayawati) पर समाजवादी पार्टी (SP) समर्थकों ने हमला कर दिया और उसी पल से मायावती और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की राहें हमेशा के लिए अलग हो गईं।

मायावती और मुलायम सिंह की राजनीती की शुरुआत कैसे हुई ?

साल था 1995। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में उस समय सपा और बसपा की गठबंधन सरकार थी। समाजवादी पार्टी के प्रमुख थे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और बसपा की ओर से कांशीराम। यह गठबंधन ज्यादा समय नहीं चला, क्योंकि दोनों दलों के बीच विचारधारात्मक और नेतृत्व को लेकर मतभेद गहरे होते जा रहे थे। इसके बाद 23 मई 1995 को कांशीराम ने बीजेपी नेता लालजी टंडन को फोन किया और बसपा-बीजेपी गठबंधन पर चर्चा शुरू की। कांशीराम उस समय बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे। उनके पास मायावती (Mayawati) भी मौजूद थीं। यहीं उन्होंने मायावती (Mayawati) से पूछा कि क्या वे मुख्यमंत्री बनने को तैयार हैं। फिर जब मायावती (Mayawati) ने हामी भरी, तो उन्हें बीजेपी के समर्थन वाले दस्तावेज भी दिखाए गए।

गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम सिंह यादव के साथ मायावती की दशकों लंबी दुश्मनी की नींव रखी हो गई। [Wikimedia commons]

1 जून 1995 को मायावती (Mayawati) लखनऊ पहुंचीं और राज्यपाल मोतीलाल वोरा को चिट्ठी लिखकर सपा से समर्थन वापस लेने और बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया। सपा को यह कदम पसंद नहीं आया। अगले ही दिन, यानी 2 जून को गेस्ट हाउस कांड (Guest house Incident) हुआ। 2 जून को मायावती लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस (Guest house) में बसपा विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं। तभी सपा समर्थक गेस्ट हाउस के बाहर जमा होने लगे। बताया जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने अपने कुछ लोगों को भेजा ताकि बसपा के कुछ विधायकों को तोड़कर सपा की सरकार बचाई जा सके। गेस्ट हाउस के भीतर मायावती (Mayawati) और अन्य विधायक मौजूद थे। बाहर भीड़ बढ़ती गई और फिर हिंसा शुरू हो गई। दरवाजे पीटे गए, मायावती (Mayawati) को जातिसूचक और अपमानजनक गालियां दी गईं। भीड़ ने गेस्ट हाउस की बिजली और पानी काट दिया। मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। पुलिस के जवान वहां थे, लेकिन मुख्यमंत्री के आदेशों के चलते कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई।

इसके बाद लखनऊ के जिलाधिकारी राजीव खेर और कुछ वरिष्ठ अफसरों ने स्थिति को संभालने की कोशिश की। शाम तक अतिरिक्त पुलिस बल पहुंचा और लाठीचार्ज कर भीड़ को हटाया गया। तब जाकर मायावती (Mayawati) कमरे से बाहर आईं। इसके बाद राज्यपाल को पूरी जानकारी दी गई और बीजेपी, कांग्रेस, जनता दल और वामपंथी दलों के समर्थन से 3 जून 1995 को मायावती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वो देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। कांशीराम ने इस घटना को मायावती (Mayawati) की "सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा" बताया। मायावती (Mayawati) ने भी इसे अपनी आत्मकथा में विस्तार से लिखा कि कैसे उनके विधायकों का अपहरण करने और उन्हें शारीरिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई।

इस घटना की जांच के लिए रमेश चंद्र कमेटी बनाई गई। 89 पन्नों की रिपोर्ट में कमेटी ने इस हमले की योजना के लिए सीधे मुलायम (Mayawati) सिंह यादव को ज़िम्मेदार ठहराया। रिपोर्ट में कहा गया कि यह एक सोची-समझी साजिश थी और कुछ अफसरों को पहले से ही लखनऊ में तैनात कर दिया गया था। राजीव खेर जैसे अफसर जिन्होंने मुख्यमंत्री के आदेशों को नहीं माना, उन्हें उसी रात ट्रांसफर कर दिया गया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि यह हमला सत्ता के दुरुपयोग और राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित था।

इस घटना के करीब 24 साल बाद, 19 अप्रैल 2019 को सपा और बसपा ने लोकसभा चुनावों में गठबंधन किया। उसी दौरान मायावती (Mayawati)और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) एक ही मंच पर मैनपुरी की रैली में दिखाई दिए। इससे पहले, मायावती ने फरवरी 2019 में गेस्ट हाउस कांड से जुड़े केस वापस ले लिए थे। लेकिन यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चला। चुनावों के बाद बसपा ने सपा से गठबंधन तोड़ दिया और दोनों दल फिर से अलग हो गए।

गेस्ट हाउस कांड केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि मायावती के लिए यह आत्मसम्मान की लड़ाई थी। Wikimedia commons

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निष्कर्ष

गेस्ट हाउस कांड (Guest house Incident ) केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, यह सत्ता, अपमान और संघर्ष की कहानी थी। मायावती (Mayawati) के लिए यह आत्मसम्मान की लड़ाई थी, तो वहीं मुलायम सिंह (Mulayam Singh )के लिए सत्ता बचाने की कोशिश। इस घटना ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। आज जब हम उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति में सपा और बसपा के रिश्तों की बात करते हैं, तो गेस्ट हाउस कांड की छाया उसमें साफ दिखाई देती है। यह घटना बताती है कि राजनीति में विश्वास और सत्ता की लड़ाई कैसे व्यक्तिगत दुश्मनी में बदल सकती है। [Rh/PS]

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