न्यूज़ग्राम हिन्दी: Tajmahal के 22 कमरों को खोल कर सर्वे करने के लिए जहां हिन्दू पक्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहा है वहीं आम जनता के बीच इस रहस्य को लेकर काफी बाते चल रही हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि इन 22 कमरों में 700 से भी अधिक ऐसे चिह्न मिलते हैं जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि यहाँ एक मंदिर था। आइए जानते हैं इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक की लिखी पुस्तक 'ताजमहल तेजोमहालय शिव मंदिर है' और अन्य इंटरनेट स्त्रोतों के द्वारा उन सभी रहस्यों को। यहाँ बात दें कि यह वही किताब है जिसके आधार पर डॉ. रजनीश सिंह ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी और जवाब में हाई कोर्ट ने उन्हें फटकारते हुए कहा है कि वो पीआईएल का दुरुपयोग ना करें, उचित जानकारी इकट्ठी करके आएं।
यदि Tajmahal के संरचना को देखें तो आप पाएंगे कि इसकी संरचना के ठीक बाहर एक भूमिगत मार्ग है जो फर्श पर है और जालीदार दरवाजे से बंद किया गया है। कोई अंदर ना देख पाए इसके लिए अंदर एक लकड़ी के तख्ते से धक दिया गया है। वैसे यदि आप ताजमहल के अंदर जाते हैं तो आपको एक और विशाल मार्ग मिलेगा जो भूमिगत होता है, पर उस दरवाजे को भी बंद कर दिया गया है। कहते हैं कि वहाँ शाहजहाँ और मुमताज की कब्रें हैं जिसके कारण वहाँ रुकना, बात करना और फोटो खींचना वर्जित है। यहाँ प्रश्न ये उठता है कि जब ऊपर कब्र है ही तो नीचे कब्र होने का क्या औचित्य है? इसके साथ ही प्रश्न यह भी उठ रहा है कि क्या पूरा महल संगमरमर से बना है? वैसे तो कहा जा रहा है कि ऊपर और नीचे के दोनों ही कक्ष संगमरमर से बने हुए हैं।
सभी जानते हैं कि Tajmahal के पीछे से ही यमुना नदी प्रवाहित होती है और उस तरफ कोई जाता नहीं है। यदि उधर जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि ताजमहल का आधार कई फीट ऊंचा है और यह संगमरमर से नहीं बल्कि लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है। नदी के किनारे एक भूमिगत मार्ग भी है जो बलुआ पत्थर से निर्मित है। इतना ही नही ताजमहल के चारों तरफ कि संरचनाएं भी लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है। इसके साथ ही बाहर का फर्श भी लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है।
इन आधारों के अलावा यह दावा भी सामने आता है कि तहखाने और ताजमहल की अन्य संरचनाएँ ताजमहल से बहुत पहले कि हैं जोकि लाल पत्थर और से बनी हुई है। शाहजहाँ ने केवल गुंबद बनवाया है और एक ऐसा वास्तु संशोधन किया जो इतिहास के बेहतरीन संशोधनों में से एक है।
पदशाहानामा नामक पुस्तक में इस बात कि पुष्टि मिलती है कि शाहजहाँ ने ताजमहल को खाली भूमि पर नहीं बनवाया था। बल्कि वहाँ पहले से आसपास ढांचे थे। शाहजहाँ ने राजा जय सिंह से उनकी पुश्तैनी महल खरीदकर उस स्थान पर सफेद संगमरमर कि इमारत खड़ी कि। यहाँ बात दें कि पदशाहानामा पुस्तक शाहजहाँ के दरबारी इतिहासकारों द्वारा लिखी गई है।
इस पुस्तक के अलावा अमेरिका के वास्तुशास्त्री प्रो. मार्विन एच मिल्स ने 1974 में एक रिसर्च के दौरान ताजमहल के कई हिस्सों की तस्वीरें ली। और ताजमहल के पीछे जो भूमिगत दरवाजा है उसमें से एक लकड़ी का टुकड़ा निकालकर उन्होंने रेडियो कार्बन डेटिंग के लिए अमेरिका भेज था। जांच में बात सामने आई कि वो लकड़ी ताजमहल के निर्माण से 250 वर्ष पुराना है। यह रिपोर्ट जब समाचार पत्र में छापा गया तो उस दरवाजे को हटकर उसकी जगह ईंट और पलस्तर से बंद कर दिया गया। विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दी गई विडिओ को देखिए।
इन सब के बीच ताजमहल से 2 मील दूर आगरा का किला भी सुर्खियों में आ जाता है। क्यूंकी यहाँ के एक शिलालेख पर इसका पुराना नाम बदलगढ़ होने कि पुष्टि मिलती है। इतिहासकारों का मानना है कि इस किले को भी अकबर के द्वारा संशोधित किया गया है जिसका प्रमाण साफ तौर पर देखा जा सकता है। यहाँ भी एक भूमिगत मार्ग है जिसे जालीदार दरवाजे से ढँक गया है। इसमें स्थित अष्टकोण स्तम्भ समेत कई हिन्दू मंदिरों के चिह्न हैं।
इसके अलावा ताजमहल के आस-पास के स्थानीय लोगों का मानना है कि ताजमहल के भूमिगत क्षेत्र में देवताओं के मंदिर थे और इस कारण से वे इसे बादलगढ़ मंदिर के रूप में बताते हैं।
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एक फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताजमहल के निचले कमरों में गैर-मुसलमानों को जाने कि इजाजत नहीं थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि वहाँ चौंधिया देने वाली चीजें थी, जबकि यदि अगर ऐसा होता तो वो शान से सबको दिखाता। बल्कि वहाँ लूटी गई संपत्ति रखी गई थी, जिसे वो नहीं चाहता था कि कोई उसे देख पाए।
Edited By: Prashant Singh