वीपी मेनन का जन्म 30 सितंबर 1893 को केरल के ओट्टापलम के एक छोटे से गांव पनमन्ना में हुआ था।  IANS
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वीपी मेनन ने आजाद भारत के निर्माण में निभाई ऐतिहासिक भूमिका, रियासतों को एक धागे में पिरोया

नई दिल्ली, स्वतंत्र भारत के निर्माण में जब सरदार वल्लभभाई पटेल ने 562 रियासतों को एकीकृत करने का अभियान चलाया तो उनके सहयोगी के रूप में वीपी मेनन की भूमिका अमिट रही।

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वप्पाला पंगुन्नी मेनन (Vappala Pangunni Menon) एक साधारण नौकरशाह थे, जिन्होंने असाधारण कूटनीति से भारत को विखंडन से बचाया। सरदार पटेल की दृढ़ता और मेनन की चतुराई ने मिलकर वह चमत्कार रचा, जिसका श्रेय आज भी सरदार पटेल को ही मिलता है, लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि बिना मेनन के यह एकीकरण असंभव था।

वीपी मेनन का जन्म 30 सितंबर 1893 को केरल के ओट्टापलम के एक छोटे से गांव पनमन्ना में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल के प्रधानाचार्य थे और मेनन अपने बारह भाई-बहनों में सबसे बड़े थे।

ब्रिटिश राज (British Raj) में वीपी मेनन (VP Menon) ने ब्रिटिश राज के दौरान भारत सरकार के सचिव के रूप में काम शुरू किया और बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के राजनीतिक सलाहकार बने एवं राज्यों के मंत्रालय में सचिव के पद पर रहे, जहां उन्होंने सरदार पटेल के साथ मिलकर 500 से अधिक रियासतों को भारत में एकीकृत किया। विभाजन के समय जब कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच गतिरोध था, तब मेनन ने ही माउंटबेटन, नेहरू और पटेल को विभाजन का प्रस्ताव सुझाया। उन्होंने एक्सेशन इंस्ट्रूमेंट का मसौदा तैयार किया, जो रियासतों को भारत या पाकिस्तान से जुड़ने का कानूनी आधार देता था।

1947 में आजादी के बाद सरदार पटेल को स्टेट्स मिनिस्ट्री का जिम्मा सौंपा गया। इस दौरान वीपी मेनन उनके सचिव बने। ब्रिटिश राज खत्म होने के बाद रियासतें स्वतंत्र हो गईं, लेकिन अधिकांश राजा आजाद रहना चाहते थे। जूनागढ़, हैदराबाद जैसी रियासतें पाकिस्तान की ओर झुकी थीं, लेकिन सरदार पटेल ने कठोर रुख अपनाया और वीपी मेनन ने कूटनीति का सहारा लिया। वे राजाओं के दरबारों में घूमे, उन्हें भारत से जुड़ने के लाभ बताए।

सबसे कठिन मामला जूनागढ़ का था। नवाब पाकिस्तान जाना चाहता था, लेकिन हिंदू बहुल आबादी विरोध में थी। वीपी मेनन ने सरदार पटेल के निर्देश पर जनमत संग्रह करवाया, जिससे जूनागढ़ भारत में विलय हो गया।

हैदराबाद (Hyderabad) में निजाम ने सशस्त्र प्रतिरोध किया, लेकिन सरदार पटेल और वीवी मेनन के प्रयास से हैदराबाद का विलय हुआ। जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह ने तो एक्सेशन साइन करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद वीपी मेनन में उन्हें विलय के लिए तैयार किया।

जम्मू-कश्मीर में भी वीपी मेनन की भूमिका निर्णायक रही। महाराजा हरि सिंह विलय को लेकर स्पष्ट नहीं थे। 26 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी कबायलियों के हमले के बाद वीपी मेनन ने हरि सिंह से मुलाकात की। उन्होंने एक्सेशन साइन करवाया।

वीपी मेनन ने बाद में 'द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स' पुस्तक में इन घटनाओं का वर्णन किया है। वीपी मेनन की सफलता का राज उनकी विनम्रता और समझ थी। वे राजाओं को धमकी न देकर, उनके हितों का ख्याल रखते हुए विलय का प्रस्ताव रखते थे। उनके प्रयासों से तमाम राजसी परिवारों ने अपने रियासतों का भारत में विलय किया। भारत का एकीकरण वीपी मेनन की कूटनीति का जीता-जागता प्रमाण है।

देश के एकीकरण के अहम योगदान देने वाले वीपी मेनन ने 31 दिसंबर 1965 को 72 साल की उम्र में बेंगलुरु में अपनी अंतिम सांस ली थी लेकिन उनकी विरासत और भी जीवंत है।

[SS]

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