<div class="paragraphs"><p>कर्नाटक का खेवनहार सिद्दरमैया या डी के शिवकुमार ? </p><p>(IANS)</p></div>

कर्नाटक का खेवनहार सिद्दरमैया या डी के शिवकुमार ?

(IANS)

 

कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार

राय

कर्नाटक का खेवनहार सिद्दरमैया या डी के शिवकुमार ?

न्यूज़ग्राम डेस्क

न्यूज़ग्राम हिंदी: कर्नाटक का खेवनहार सिद्दरमैया या डी के शिवकुमार? इस पर कांग्रेस का पार्टी-मंथन अभी जारी है। लेकिन हाल-फिलहाल क्या कर्नाटक में कांग्रेस के विजयी पंजे पर सीमावर्ती महाराष्ट्र की निवर्तमान महाअघाड़ी सरकार के पतन की शापित नज़रें गढ़ गई हैं? क्योंकि दक्षिण में कांग्रेस की बम्पर जीत के साथ ही प्रदेश कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों डी के शिवकुमार एवं सिद्दरमैया के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए भी घमासान अंदरखाते शुरू हो गया है। दोनों ने अपने-अपने स्तर पर पार्टी आलाकमान पर दबाव बनाना भी शुरू कर दिया है। ऊपर से भले ही दोनों नेता कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व व गांधी परिवार मे अपनी-अपनी आस्था दर्शा रहे हैं लेकिन अन्त:करण से दोनों की आस्था सिर्फ मुख्यमंत्री के तख्तोताज़ तक सीमित है।

कर्नाटक विस चुनाव में भले ही कांग्रेस ने 224 विस सीटों में से 136 सीटों पर जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया हो लेकिन यह इतिहास कितने दिन स्थापित रह पाएगा इसका फैसला कर्नाटक में मुख्यमंत्री नाम के चुनाव के साथ ही हो जाएगा। हालांकि, कर्नाटक में भाजपा सरकार के कथित भ्रष्टाचार से ज्यादा नंदिनी-अमूल दूध, भाषा व पीएसयूज विनिवेश-धर्मवाद तुल्य अह्म स्थानीय मुद्दें ही भाजपा की हार के प्रमुख कारण रहे। जिस कारण प्रदेश की जनता, किसान, व्यापारी और कर्मचारी वर्ग में भाजपा की सरकार के प्रति भारी रोष व्याप्त था। जिसके प्रति न तो भाजपा का प्रदेश नेतृत्व ने ध्यान धरा और न ही कांग्रेस द्वारा भाजपा के प्रति स्थापित इन स्थानीय मुद्दों-भ्रांतियों का निदान समय-सरकार रहते भाजपा का कोई नेता कर पाया। यह भी सत्य है कि कर्नाटक में आमजन सहित प्रत्येक वर्ग के लोग मोदी के नाम पर एकमत से सहमत हैं। लेकिन भाजपा के स्थानीय नेता-मंत्री सरकार में होने के बावजूद कोई करिश्माई असर राज्य की जनता के दिलों-दिमाग पर नहीं दिखा पाए। भाजपा का बसवराज बोम्मई को प्रदेश सरकार की कमान सौंपने का निर्णय भी मंशानुरूप फलीभूत नहीं हुआ।

कर्नाटक का खेवनहार सिद्दरमैया या डी के शिवकुमार ?(Twitter)

कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व कर्नाटक में मुख्यमंत्री चेहरे के चुनाव को लेकर पशोपेश में है। क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व ने यदि डी के शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद की कमान नहीं सौंपी तो इस बात की प्रबल संबावना है कि डी के शिवकुमार आगामी लोकसभा के 2024 के आम चुनाव के बाद अपने कद एवं मद की ताकत के बल पर महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे की भांति कांग्रेस से बगावत कर भाजपा के सहयोग से कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो जाएं। लेकिन यदि कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के दूसरे प्रबल दावेदार जननेता कहे जाने वाले सिद्दरमैया को उनकी कथित आत्मशपथ अनुसार अंतिम राजनीतिक सफर में मुख्यमंत्री के ताज़ से सम्मानित कर राजनीतिक सेवानिवृत्त नहीं दी गई तो विगत की भांति कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी को 5 साल के कार्यकाल को पूर्ण करने में अपने ही नेताओं की अंदरूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और टाईटैनिक की भांति पार्टी टूटने का खतरे से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

बहरहाल, अब यह यक्ष प्रश्न सबके सामने है कि क्या कर्नाटक में कांग्रेस बंपर बहुमत के बावजूद अपना पंचवर्षीय कार्यकाल पूर्ण करने में सफल हो पाएगी या उसका भी हश्र महाराष्ट्र की महाअघाड़ी सरकार की मानिंद कालांतर में शापग्रस्त हो तार-तार हो जाएगा। यह समय के गर्भ में है।

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