Baisakhi 2024: बैसाखी पर्व को सिख समुदाय नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। बैसाखी एक राष्ट्रीय त्योहार भी माना गया है मुख्य रूप से बैसाखी कृषि पर्व है। (Wikimedia Commons)  
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कब मनाई जाएगी बैसाखी? इसी दिन गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की रखी थी नींव

उत्तर भारत में खास कर पंजाब, बैसाखी पर्व को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है। इस उत्सव का स्वागत ढोल-नगाड़ों के साथ किया जाता है, सभी एक-दूसरे को बधाइयां देते हैं और झूम-झूमकर नाच गान करते हैं

न्यूज़ग्राम डेस्क

Baisakhi 2024: बैसाखी सिख धर्म का बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। यह खास त्योहार नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन को खालसा पंथ की स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सभी नए वस्त्र पहन कर भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करते हुए खुशियां मनाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार कभी-कभी यह त्योहार 13 अप्रेल और 14 अप्रेल को भी पड़ता है। इस वर्ष बैसाखी का पर्व 13 अप्रैल शनिवार के दिन मनाया जाएगा। बैसाखी पर्व को सिख समुदाय नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। बैसाखी एक राष्ट्रीय त्योहार भी माना गया है मुख्य रूप से बैसाखी कृषि पर्व है। यह पर्व किसान फसल काटने के बाद नए साल की खुशियां के रूप में मानते हैं।

कैसे मनाया जाता हैं बैसाखी का पर्व

उत्तर भारत में खास कर पंजाब, बैसाखी पर्व को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है। इस उत्सव का स्वागत ढोल-नगाड़ों के साथ किया जाता है, सभी एक-दूसरे को बधाइयां देते हैं और झूम-झूमकर नाच गान करते हैं। अतः बैसाखी का पर्व पंजाब के युवा वर्ग को उस भाईचारे की याद दिलाती है, जहां माता अपने 10 गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित करके सिख बनाती थी।बैसाखी के मौके पर घर पर विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान बनते हैं। घर पर पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है। गुरुद्वारे जाते हैं और वहां पाठ के साथ - साथ सेवा करते हैं।

घर पर पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है। गुरुद्वारे जाते हैं और वहां पाठ के साथ - साथ सेवा करते हैं। (Wikimedia Commons)

इसी दिन रखी गई थी खालसा पंथ की नींव

सन् 1699 में सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी थी। दरहसल, 'खालसा' खालिस शब्द से बना है जिसका अर्थ शुद्ध, पावन या पवित्र होता है। खालसा पंथ की स्थापना के पीछे गुरु गोविंद सिंह का मुख्य लक्ष्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था।इस पंथ के द्वारा गुरु गोविंद सिंह ने लोगों को धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव छोड़कर इसके स्थान पर मानवीय भावनाओं को आपसी संबंधों में महत्व देने की भी दृष्टि दी। इस कृषि पर्व की आध्यात्मिक पर्व के रूप में भी काफी मान्यता है। यह केवल पंजाब में ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत के अन्य प्रांतों में भी उल्लास के साथ मनाया जाता है।

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