Ganesh Chaturthi 2022: भूलकर भी न करें ये गलती, सहना पड़ सकता है अपयश  NewsGram Hindi
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Ganesh Chaturthi 2022: भूलकर भी न करें ये गलती, सहना पड़ सकता है अपयश

भगवान श्री कृष्ण ने नारद मुनि से पूछा कि ऐसा क्या कारण है कि गणेश चौथ के चाँद को दर्शन कर लेने मात्र से व्यक्ति को मिथ्या लालछन लग जाता है?

Prashant Singh

Ganesh Chaturthi 2022: इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व 31 अगस्त को पूरे देश भर में मनाया जा रहा है। इस दिन माना जाता है कि भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था। इसके अतिरिक्त एक और रोचक कथा भी पुराणों में आती है जिसके अनुसार इस दिन कोई व्यक्ति अगर भूल वश अथवा अनजाने में भी चंद्र दर्शन कर लेता है तो उसे अपयश के कलंक का सामना करना पड़ता है। हालांकि इसके निवारण हेतु हमारे आचार्यगणों ने कई उपाय भी बताए हैं। जैसे सिद्धिविनायक व्रत, स्यमन्तक मणि की कथा, इत्यादि का श्रवण व्यक्ति को इसके प्रभाव से बचा सकता है।

पुराणों के अनुसार नंदकिशोर जी ने सनत्कुमारों को स्यमन्तक मणि की कथा सुनाई और बताया कि कैसे भगवान श्री कृष्ण ने मात्र अनजाने में ही गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन कर लिया था, जिसके परिणाम स्वरूप उनको भारी लालछन सहना पड़ा। उनपर राजा सत्राजित के भाई प्रसेनजित से स्यमन्तक मणि छीनकर उसकी हत्या कर देने का लालछन लगा था। जब भगवान श्री कृष्ण ने सिद्धिविनायक व्रत किया तब जाकर सत्य सबके सामने उद्धृत हुआ। भगवान कृष्ण ने स्यमन्तक मणि खोजकर लाया और प्रसेनजित के हत्या का रहस्य बताया। इसके बाद ही वो इस असह्य लालछन से छुटकारा पा सके।

जब भगवान श्री कृष्ण ने इसके पीछे छिपे रहस्य के बारे में नारद मुनि से पूछा कि ऐसा क्या कारण है कि गणेश चौथ के चाँद को दर्शन कर लेने मात्र से मुझे मिथ्या लालछन लगा?

तब नारद जी ने विस्तार में बताते हुए कहा कि एक बार ब्रह्मा जी ने गणेश जी की तपस्या करके उनसे सृष्टि की रचना करने की अनुमति मांगी। भगवान गणेश वरदान देकर वहाँ से प्रस्थान कर गए। इधर चंद्र देव की उत्पत्ति हुई जिन्होंने अनजाने में भगवान गणेश को पहचान नहीं और उन्हें देखकर उनके विचित्र काया का उपहास उड़ाया। इससे दुःखी एवं क्रोधित होकर भगवान गणेश ने चंद्र देव को श्राप दे दिया कि उन्हें क्षय हो जाए। चंद्र देव डरकर मानसरोवर के कुमुदिनियों में जा छिपे। देवताओं के बार-बार अनुनय विनय और व्रत उपवास से प्रसन्न होकर चंद्रमा को क्षमा कर दिया पर यह भी कहा कि यह श्राप पूर्ण रूप से निष्क्रिय नहीं हो सकता अतः, भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि में जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा उसे अपयश का कलंक सहना पड़ेगा। अतः इस दिन को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। यही कारण था कि भगवान श्री कृष्ण को भी इस गलती की सजा झेलनी पड़ी।

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