Shravan Month 2022: कैसे स्थापित हुआ Ghushmeshwar Mahadev Jyotirlinga?  Shree Ghushmeshwar Mahadev Jyotirlinga Mandir (Wikimedia Commons)
धर्म

Shravan Month 2022: कैसे स्थापित हुआ Ghushmeshwar Mahadev Jyotirlinga?

Shravan Month 2022: Ghushmeshwar Mahadev Jyotirlinga का दर्शन लोक-परलोक दोनों को ही संवार देता है।

Prashant Singh

Shravan Month 2022: सावन मास में हम पढ़ रहे हैं द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महिमा। इसी कड़ी में हम आज पढ़ेंगे यह अंतिम ज्योतिर्लिंग श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shree Ghushmeshwar Mahadev Jyotirling Mandir) के बारे में। इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर नाम से भी बुलाया जाता है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के दौलताबाद से बारह मील दूर वेरुळ गाँव के पास स्थित है।

पुराणों के अनुसार दक्षिण देश में देवगिरिपर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहता था। उनकी पत्नी का नाम सुदेहा था। दोनों पति-पत्नी में परस्पर बहुत प्रेम था। उन्हें वैसे तो कोई कष्ट नहीं था, पर दोनों की कोई संतान नहीं थी।

जब ज्योतिष-गणना करवाई गई तो पता चला कि सुदेहा को संतान सुख नहीं है। यह जानकर सुदेहा ने सुधर्मा को अपनी छोटी बहन से दूसरा विवाह करने का आग्रह किया।

पहले तो सुधर्मा ने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, पर पत्नी के जिद्द के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा। सुधर्मा अपनी पत्नी के छोटी बहन घुश्मा को ब्याह कर घर ले आए। घुश्मा भी अत्यंत विनीत और सदाचारिणी स्त्री थी, और भगवान शिव की भक्ति में तल्लीन रहती थीं। वो प्रतिदिन एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी सच्ची निष्ठा से पूजन करती थीं।

भगवान शंकर की कृपा से उसके गर्भ से एक अत्यंत सुंदर और स्वस्थ बालक ने जन्म लिया। इससे सुदेहा और घुश्मा दोनों के ही आनंद का पार न रहा। सबकुछ यथावत अच्छे से बीत रहा था कि तभी एक दिन सुदेहा के मन में एक कुविचार ने जन्म ले लिया। वो सोचने लगि कि उसका तो इस घर में कुछ है ही नहीं। जो है सबकुछ घुश्मा का ही है। ऐसे कई वर्ष बीत गए। बच्चा जवान हो गया और उसका विवाह भी हो गया।

इस सब कुविचार के जाल में सुधर्मा इस तरह से फंस गई कि उसने एक दिन घुश्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला। उसके शव को ले जाकर सुधर्मा ने उसी तालाब में फेंक दिया जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को विसर्जित किया करती थी।

जब सुबह हुई तो घर में कुहराम मच गया। पुत्रवधू भी सिर पीट-पीटकर रोने लगी। लेकिन इन सब चीजों से निष्प्रभावित घुश्मा नित्य की भाँति भगवान शिव की आराधना में तल्लीन रही। पूजा समाप्त करने के बाद वो पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में विसर्जित करने चल पड़ी। जब वो तालाब से लौटने लगी तो उसने देखा कि उसका बेटा तालाब से निकालकर आ रहा है। उसने आकर अपनी माता के चरणों में प्रणाम किया।

उसी समय भगवान शिव भी वहाँ प्रकट हो गए और घुश्मा से वर मांगने को कहने लगे। भगवान शंकर सुदेहा की घनौनी करतूत से अत्यंत क्रोध में थे। भगवान शंकर ने अपना हाथ में त्रिशूल उठाया लिया और उसका गला काटने को आगे बढ़े कि तभी घुश्मा ने हाथ जोड़कर भगवान शिव से कहा- 'प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी उस अभागिन बहन को क्षमा कर दें। निश्चित ही उसने अत्यंत जघन्य पाप किया है किंतु आपकी दया से मुझे मेरा पुत्र वापस मिल गया। अब आप उसे क्षमा करें और प्रभो!'

भगवान शिव ने घुश्मा की याचना स्वीकार करके सुधर्मा को क्षमा कर दिया और उसके प्रार्थना पर लोक-कल्याण के लिए वो वहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर निवास करने लगे। चूंकि वो सती शिवभक्त घुश्मा के आराध्य थे, अतः इस ज्योतिर्लिंग का नाम घुश्मेश्वर महादेव पड़ा।

घुश्मेश्वर महादेव का दर्शन लोक-परलोक दोनों को ही संवार देता है।

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